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Hindi Essay on “Bharat Nirman me Rajnetao ka Yogdan”, ”भारत-निर्माण में राजनेताओं का योगदान” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

भारत-निर्माण में राजनेताओं का योगदान

Bharat Nirman me Rajnetao ka Yogdan

निर्माण दो-चार या दस-बीस वर्षों में नहीं हो जाया करता, बल्कि उसके लिए सैकड़ों हजारो वर्षों का समय लग जाता है। अत: भारत-निर्माण में राजनेताओं का योगदान, जैसे विषयों पर चर्चा करना न तो उचित विषय ही प्रतीत होता है, न उनके कार्यों और निर्माण को वास्तव में नापा-तोला ही जा सकता है। हमारे विचार में यहाँ इस शीर्ष का वास्तविक अभिप्राय स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के नेतृत्व वर्ग से है उन्होंने भारत के नव-निर्माण करने या उसे आधुनिक बनाने में क्या और कितने महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं।

किसी भी देश या राष्ट्र का निर्माण या फिर नव निर्माण करने से पहले एक विशेष प्रकार की मानसिकता, एक विशेष प्रकार की प्रवृत्ति और चरित्र के निर्माण की आवश्यकता हुआ करती है। उस राष्ट्रीय मानसिकता, प्रवृत्ति और चरित्र-निर्माण के बाद यदि स्थूल एवं बाहय रूप से नव-निर्माण का कार्य किया जाए, तभी वास्तव में भारत या किसी भी देश-राष्ट्र का वास्तविक निर्माण सम्भव हुआ करता है। खेद के साथ स्वीकार करना और कहना पडता है कि स्वतंत्रता-प्राप्ति से पहले देश का जो नेत वर्ग स्वतंत्रता-संघर्ष के लिए निरन्तर संघर्ष कर रहा था उस का ध्यान तो अवश्य इस प्रकार के निर्माणात्मक तत्त्वों की ओर था: पर स्वतंत्र हो जाने और महात्मा गान्धी के निधन के बाद इस प्रकार क सूक्ष्म निर्माण की ओर से भारतीय नेताओं का ध्यान क्रमशः जल्दी ही हटता गया। अब उनका लक्ष्य मात्र भौतिक दष्टि से सम्पन्न एक देश का निर्माण की ओर ही केन्द्रित कर ही रह गया। पर उस निर्माण को भी कतर कर अन्दर-ही अन्दर खोखला बना कर रख देने वाले इतने चहे पैदा होते गए, उस पर जानते हुए भी अनजान बन कर उनकी उपेक्षा की जाने लगी कि निर्माण का ढाँचा तो अवश्य ही खड़ा होता गया, पर उस निर्माण का वास्तविक लाभ जिन तक पहुँचना चाहिए था, उन तक न पहुंच जगह-जगह कुतरन को हुए उन चूहों के छोटे-बड़े बिलों में ही समाता गया।

स्वतंत्रता-प्राप्ति के तत्काल बाद ऐसे चूहे कम ही थे, जो दूसरों की आय जिस तरह भी कुतर कर अपनी जेबें भर रहे थे, निर्माण करने वालों को भी संरक्षण दकर नर्माण को भीतर से रेत भर खोखला रखने की खुली छूट दे दी, उस पर जब देश प्रधानमंत्री ने इस कुतरन-कार्य के विरोध में आवाज उठाने पर यह कहकर उसका एक तरह से राष्ट्रीयकरण ही कर दिया कि ‘देश का धन कहीं बाहर न जा कर पर हा तो रह रहा है, तो देश के सभी नेताओं, समर्थ और सम्बद्ध लोगो का एक फूट मिल गई कि वे देश का निर्माण करते-कराते समय देश का जितना मापन जाने देकर अपने घर में रख लें। बस फिर क्या था। एक-के बाद-एक कागजी निर्माण कार्य होने लगे। आज कहीं पीने के पानी की समस्या दूर करने के लिए कुआँ बनाया गया, ऐसी सूचना मिली। जब दो चार दिनों बाद नेता जी उस का निरीक्षण करने पहुंचे तो पता चला कि वह कुआँ तो इसी बीच किसी ने चुरा लिया है। वाह! है न कमाल की बात कुएँ का भी चोरी हो जाना।

यह बात नहीं कि नेताओं की कृपा से आधुनिक भारत का निर्माण नहीं हुआ है। निश्चय ही बहुत हुआ है, लेकिन यदि इसके साथ एक राष्ट्रीय चरित्र का भी निर्माण हा होता तो आज उद्घाटित किए जाने वाले बाँध-पुल अगले ही दिन रेत के टीले न बन जाते। डी० डी० ए० जैसी सरकारी संस्था द्वारा बिना नींव ही तीन-चार मंजिले फ्लेट न खड़े कर दिए जाते या फिर इस साल अलाट किया गया भवन अगले ही साल ऐसा न हो जाता कि जैसे सदियों पुराना हो। सरकारी सड़कें और भी कई जगह नेताओं के निर्माण के नमूने जगह-जगह देखे जा सकते हैं।

पिछले लगभग पाँच देशकों में निश्चय ही भारत ने बहुत प्राप्ति की है। नव निर्माण की भी कभी नहीं रही। हर क्षेत्र में देश आगे बढा है; फिर भी यह सब स्वीकारना पड़ रहा है कि इस अग्रगामिता; इस निर्माण और बढोतरी में आम आदमी कहीं भी नजर नहीं आता या तो इस का फल पहले से ही अमीर लोग और भी अमीर होकर भोग रहे हैं या सम्बद्ध सरकारी अमला, इंजीनियर, नियंत्रक, इन्स्पैक्टर आदि या फिर ऐसे राजनेता कि जिन्हें कभी पैदल चल पाने तक का शऊर नहीं था और वे इम्पाला तथा उसी प्रकार की कीमती गाड़ियों में चल रहे हैं। यदि बेचारे राष्ट्रीय चरित्र का भी पहले निर्माण कर के उसे भी निर्माण कार्यों में सम्मिलित कर लिया जाता, तो निश्चय ही नव-निर्माण का फल भारत के आम नागरिक तक पहुँच पाता।

निर्माण का अर्थ यदि मात्र बड़े-बड़े भवन खड़े कर देना होता है, तो भारत में छोटे-बड़े प्रत्येक नेता ने अपने तथा अपनों के लिए अनेक भवनों का निर्माण कर लिया है। ऐसे भवनों की भी कमी नहीं, जो राष्ट्र की सम्पत्ति कहे जाते हैं। बड़े-बड़े पल, बाँध, बिजलीघर, यहाँ तक कि नेताओं की नीतियों के फलस्वरूप ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी कई प्रकार के चमत्कारी निर्माण भारत में हो चुके हैं। जल, थल, आकाश सभी पर भारत की पहुँच और नियंत्रण है, इस सब में तनिक भी सन्देह नहीं है। इतना सब कर के भी भारत पर अराजकता और अराजक तत्त्वों का राज है; चारों ओर हिंसा, आपाधापी, भ्रष्टाचार का एक छत्र राज्य है, महंगाई के साम्राज्य का निरन्तर विस्तार ही होता जा रहा है; इस सब के जिम्मेदार भी तो वही नेता ही हैं, जिस पर भारत के नव-निर्माण की जिम्मेदारी है। सोचने की बात है कि नेताओं कि कृपा से नया बन रहा भारत आखिर जा रहा किस दिशा में है?

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