Hindi Essay on “Mera Priya Kavi- Ramdhari Singh Dinkar ” , ”मेरा प्रिय कवि – रामधारी सिंह ‘दिनकर” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
मेरा प्रिय कवि – रामधारी सिंह ‘दिनकर
Mera Priya Kavi- Ramdhari Singh Dinkar
आदि काल से लेकर आज तक हिन्दी-साहित्य के क्षेत्र में अनेक कवि हो गुजरे हैं। इन सभी का अपना-अपना योगदान और महत्त्व है। कोई किसी से कम नहीं। सूरदास यदि सूर्य समान है, तो गोस्वामी तुलसीदास चन्द्र समान। किसी ने कहा है कि ‘सुरनारी गंग दोऊन भए, सुकविन के सरदार। किसी ने कबीर की प्रशंसा की है, तो किसी ने जायसी की। कोई केशवदास को उड्डगन (तारा) मानता है, तो कोई बिहारी की कविता को ‘नावक के तीर’ के समान गहरा कर सकने वाली बताकर उन सबसे सरस कहता है।
और कवि गढ़िया, नन्ददास जड़िया’ कहने वालों की भी कमी नहीं रही। इसी प्रकार प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा और मैथिलीशरण गुप्त आदि की श्रेष्ठता सिद्ध करने वालों की भी कमी नहीं है। ऐसा सब होते हुए भी जहाँ तक मेरा व्यक्तिगत प्रश्न है, मेरे लिए कविवर रामधारी सिंह ‘दिनकर’ से बढ़कर अन्य किसी कवि का कोई विशेष महत्त्व नहीं। इसका एकमात्र कारण मेरी दृष्टि में यह कह कर अवरेखित किया जा सकता है कि राष्ट्रीय यौवन और पुरुषार्थ का गायन करने वाला उन जैसा दूसरा कोई कवि न तो आज तक कोई हुआ है और न ही निकट भविष्य में होने की कोई सम्भावना ही है।
एक आलोचक के अनुसार उदात्त मानवीय पौरुष, भारतीय यौवन एवं राष्ट्रीय जन-भावनाओं के अभर गायक राष्ट्रकवि ‘दिनकर’ मूलतः छायावादी युग की ही देन माने जाते हैं। किन्तु इनके तीखे स्वरों को छायावाद, उसकी कोमलता को यह स्वयं आत्मसात र सके। अपनी ओजस्विता के कारण शीघ्र ही राष्ट्र धारा के कवियों में सर्वाधिक सबल व्यक्तित्व लेकर उभरे। छायावादी युग की दीवारों को फाँद कर इन्होंने अगले युग गतिवादी चेतनाओं को भी अपने विराट व्यक्तित्व में समा लिया था। जो हो, मेरे इस कवि का जन्म बिहार प्रान्त के मुंगेर जिले में स्थित सिमरिया नामक छोटे से गाँव में हुआ था।
हिन्दी, अंग्रेजी के साथ-साथ दिनकर ने संस्कृत, उर्दू, बंगला आदि भाषाओं कभी व्यापक अध्ययन किया। दर्शन, साहित्य, इतिहास और राजनीति शास्त्र में भी इनकी टेच गहरी थी। इसी कारण इन्हें समसामयिक राजनीतिक चेतना के साथ-साथ रफतिक चेतनाओं का भी अमर गायक माना गया है। भारतीय युवकों की हर प्रकार की चेतनाओ का अपनी कविता में प्रतिनिधित्व करते हुए इन्हें सहज ही देखा-परखा जा सकता है। जहाँ तक विभिन्न प्रकार के प्रभावों का प्रश्न है, उर्दु के इकबाल, बंगला के रवीन्ट अंग्रेजी के मिल्टन, कीट्स और शैली का इन पर विशेष प्रभाव माना जाता है। स्टम्य राष्ट्रीयता की दृष्टि से इनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को सर्वथा मौलिक और नितान्त मौलिक माना जाता है। पहले, क्रान्तिकारी, फिर गान्धीवादी और दार्शनिक तो बन गए. पर क्रान्ति की भावना ने मेरे इस कवि का साथ औरम्भ से अन्त तक कभी नहीं छोड़ा। तभी तो अपने-आप को इन्होंने एक बुरा गान्धीवादी हूँ’ ऐसा कहा है।
मेरा यह प्रिय कवि गान्धी हो जाने के बाद भी ईंट का जवाब पत्थर से देने पर ही विश्वास करता रहा। एक थप्पड़ खाने के बाद दूसरा गाल आगे कर देने वाली गान्धीवादी नीतियों पर मेरे इस प्रिय कवि को कतई विश्वास न था। इसीलिए तो अपनी प्रसिद्ध कविता ‘हिमालय’ में इन्होंने स्पष्ट कहा है किः
‘रे रोक युधिष्ठिर को न यहाँ
जाने दे उसको स्वर्ग धीर।
उसके स्थान पर गाण्डीवधारी अर्जुन और गदाधारी भीम को लौटा देने का अनुरोध किया है ताकि देश के द्रोहियों और अत्याचारियों से हिसाब-किताब बराबर किया जा सक। ‘हिन्दी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास’ के लेखक डॉ० तिलकराज शर्मा के अनुसार, “हमारे विचार में समूची राष्ट्रवादी काव्यधारा में जनता का आक्रोश, २च्छा-आकांक्षाएँ, ऊर्जास्विता और भारतीय यौवन की उन्माद हँकार यदि वास्तविक रूप कही रूपायित हो पाई हैं, तो वह केवल ‘दिनकर’ की रचनाओं में ही सम्भव हो पाया है।
मेरे इस प्रिय कवि ने आगे बढने अपने योग्य स्थान और महत्त्व पाने के लिए कई अकार के कष्ट सहे. कर्ड नौकरियाँ कीं। एक ओर यदि भागलपुर विश्वविद्यालय का फुलपातत्व निभाया, तो देश के शत्र अंग्रेजों के युद्ध विभाग में नौकरी भी की। इस प्रकार विपरीत स्थितियों से लगातार जूझते रहने के कारण विचारों-भावों के द्वन्द्व से जो खरा-सोना विचारों के रूप में निखर कर सामने आया वही मेरे इस प्रिय कवि प्रेरणादायक अमर कविता है। रेणुका, हुँकार, द्वन्द्व गीत, सामधेनी, रसवंती, बापू, कुरुक्षेत्र रश्मिरथी. उर्वशी, धूप और धुआँ, इतिहास के आँसू, नील कमल आदि इन के प्रमुख काल हैं। प्रबन्ध और मुक्तक दोनों काव्य शैलियों का उत्कर्ष इनकी रचनाओं में देखा जा सकता है। कुरुक्षेत्र में यदि युद्ध-शान्ति का प्रश्न उठाकर अपरिहार्य स्थितियों में युद्ध को आवश्यक बताया गया है, तो रश्मिरथी में अवैध सन्तान जाति-पाँति जैसे प्रश्नों पर विचार कर जाति नहीं गुणों की पूजा की प्रेरणा दी गई है। उर्वशी में मुक्ति से पहले काम पूर्ति को आवश्यक ठहराया गया है। इस प्रकार से तीन प्रबंध काव्य हैं। शेष सभी में इनके भिन्न ऊर्जास्वित भावों से भरी मुक्तक कविताएँ संकलित हैं। सन् 1962 के चीनी आक्रमण के अवसर पर । रची गई इन की ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ नामक रचना अपना उदाहरण आप है। ‘संस्कृति के चार अध्याय’ और ‘अर्द्धनारीश्वर’ जैसी इनकी गद्य रचनाएँ भी बड़ी महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं। इनकी साहित्य सेवा के कारण इन्हें सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा अन्य कई पुरस्कार प्रदान किये गए।
सन् 1974 में कराल काल ने मेरे इस प्रिय कवि को हम से भौतिक रूप से छीन अवश्य लिया; पर अपने काव्यों के माध्यम से अमर रह कर यह हमेशा प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।