Hindi Essay on “Hum Sahitya kyo Padhte Hai” , ”हम साहित्य क्यों पढ़ते हैं?” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
हम साहित्य क्यों पढ़ते हैं?
Hum Sahitya kyo Padhte Hai
साहित्य को किसी भी मानव समुदाय और उसके द्वारा अर्जित की गई समृद्ध भाषा की अन्यतम उपलब्धि माना गया है। सामान्य तौर पर साहित्य के दो रूप माने गए हैंएक लोक साहित्य, जिस का लिखित रूप प्रायः नहीं होता, मुँह जबानी ही एक व्यक्ति से दूसरे के पास पहुँचा करता है। ऐसा होने से उसके मूल स्वरूप में प्रायः काफी अन्तर आ जाया करता है। एक प्रान्त या उप-प्रदेश का होने पर भी अन्य प्रान्तों या उपप्रदेशों में जाकर वहाँ की बोलियों के प्रभाव से वहीं का होकर रह जाया करता है। साहित्य का दूसरा स्वरूप किसी भाषा में लिखित हुआ करता है। पश्चिम के एक विद्वान डिक्वेशी ने इस लिखित साहित्य के भी दो स्वरूप उसके स्वभाव के कारण से स्वीकार किये हैं। एक उपयोगी या ज्ञान का साहित्य, दूसरा शक्ति का साहित्य। उपयोगी या ज्ञान के साहित्य के अन्तर्गत उन्होंने गणित, ज्ञान-विज्ञान, इतिहास, राजनीति आदि के उन सभी विषयों के लिखित और प्रकाशित रूपों को रखा है, जिन का अध्ययन व्यक्ति अपने व्यावहारिक जीवन और समाज की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए किया करता है। अधिकतर हम इसी प्रकार के विषयों को पढ़कर परीक्षाएँ दिया करते हैं। आम जीवन को चलाने के लिए उन्ही की आवश्यकता पड़ा भी करती है। दूसरा शक्ति का साहित्य उन्होंने कविता, कहानी तक उपन्यास, निबन्ध आदि ऐसे विषयों को कहा कि जिन का सम्बन्ध मनुष्यों के भावों और विचारों से हुआ करता है और जिनसे कम से कम पेट तो नहीं ही भरा करता हो। हाँ! भावों-विचारों के कारण मन-मस्तिष्क की गूख अवश्य मिटती है। साहित्य के इन दोनों सेको जान लेने के बाद अब हम लोग आसानी से पूछे गए प्रश्न का उत्तर दैट सकते है कि हम साहित्य क्यो पढ़ते हैं?
मनुष्य का जीवन अनेक प्रकार की कठिनाइयों, समस्याओं और प्रश्नों से भरा हुआ है। जीवन और समाज को चलाने के लिए प्रत्येक मनुष्य को कुछ न कुछ करना पड़ता। है। कोई मनुष्य क्या कर सकता है, उसकी रुचि और शक्ति क्या कर सकने की है. इसकी जानकारी उपयोगी या ज्ञान का साहित्य पढकर ही उसे प्राप्त हुआ करती है। इसी कारण अपनी भाषा का अ-आ आदि सीख कर, आगे बढ़ कर वह ज्ञान का साहित्य पढ़कर तरह-तरह की परीक्षाएँ पास किया करता है। उनके सहारे कई प्रकार के काम-धन्धे सीखा करता है, ताकि वह योग्य बनकर, कोई काम-धन्धा कर के अपना तथा अपने घर-परिवार का भरण-पोषण कर सके। यह उपयोगी या ज्ञान का साहित्य व्यक्ति को घर-परिवार, समाज, देश-विदेश में रहना; हर अवस्था में हर प्रकार का उचित व्यवहार करना, बुराई आदि से बचे रह कर और सत्यपक्ष पर चल कर घर-परिवार के साथ-साथ देश-जाति और सारी मानवता का हित-साधन करना सिखाता तो है ही, उस सब की प्रेरणा भी देता है। हम सभी जानते हैं कि आदिम अवस्था से निकल कर विश्व-मानव-समाज ने आज तो इतनी उन्नति और विकास किया है कि जल-थल और आकाश तक को अपनी मुट्ठी में कर लिया है। सृष्टि की रचना करने वाले अणुओं-परमाणुओं का विस्फोट कर उनकी शक्तियों को अपने इशारों पर नचाना औरम्भ कर दिया है। यह सब इस उपयोगी या ज्ञान क साहित्य के निरन्तर अध्ययन एवं परीक्षा के बल पर ही कर पाना संभव हो सकता है। घरता का दोहन कर के प्राप्त की जा रही ऊपर खनिज सम्पदाएँ, सागरीय सम्पदाएँ तथा अन्य जो कुछ भी आज मानव के पास विद्यमान है, उसकी सुख-समृद्धि का कारण है। यह सब ज्ञानमूलक साहित्य के निरन्तर अध्ययन-परीक्षण का ही परिणाम है। स्पष्ट है कि हम इस प्रकार का साहित्य क्यों पढ़ते हैं?
अब तनिक दूसरे प्रकार के अर्थात शक्ति के साहित्य के अध्ययन मनन की और आइये। यहाँ शक्ति से तात्पर्य शारीरिक शक्ति नहीं बल्कि मन-मस्तिष्क भाव-विचार की। शक्ति स है। ज्ञान का साहित्य हमारे मन मस्तिष्क की न तो भूख ही मिटा सकता है। न कुछ कर पाने की प्रेरणा ही प्रदान कर सकता है। ये दोनो काम शक्ति का साहित्य, जिसे ललित साहित्य भी कहा जाता है, केवल वही कर सकता है। वह हलके-फुल्के ढंग से हमारा मनोरंजन तो करता ही है, सारे तनाव भी स्वतः ही मिटा दिया करता है।
तनाव-रहित शान्त एवं प्रसन्न मन मस्तिष्क में ही कुछ अच्छा, कुछ और करने की स्वाभाविक प्रेरणा जागा करती है। इस प्रकार ललित साहित्य हमारी भावनाओं, विचारों हृदय और मस्तिष्क को मनोरंजन ढंग से सुख-चैन का सम्बल तो प्रदान किया ही करता है हमे तरो-ताजा बना या रख कर कुछ नया करने को स्फूर्त भी किया करता है। हमारे ध्यान में उन बुराइयो, कुरीतियो, कमियों आदि को भी लाया करता है, जो मानवता को व्यक्ति या समुह के स्तर पर कभी आगे नहीं बढ़ने दिया करतीं। वह हमारी सोई या गली-बिसरी शक्तियों को भी जगाकर हमारी भावनाओं को कुछ अच्छा, कुछ नया कर देने को उतना हित एवं उत्प्रेरित भी कर दिया करता है। फिर ऐसी बात भी नहीं कि शक्ति का यह (ललित) साहित्य हमें घर के बड़े बुजुर्गों या गुरु जनों के समान कुछ करने-धरने की प्रेरणा देता हो। नहीं, ऐसी बात कतई नहीं। यह तो बस, एक सच्चे मित्र के समान जीवन-समाज के सारे ऊँच-नीच, अच्छे-बुरे-रूप, हानि-लाभ, वास्तविक रूप में हमारे सामने रख दिया करता है। आगे हमारी मर्जी है कि हम उसमें से किस राह पर चल कर पार उतर जाएँ या बीच मंझधार में ही डूब जाएँ। शक्ति के साहित्य द्वारा ऐसा कर देने को ही वास्तव में यथार्थवाद कहते हैं। मनुष्य को सपनों की दुनिया में या तो धर्म ले जाया करता है या फिर यथार्थ भावों से रहित सपनों के भारत में आज तक न तो कोई रह पाया और न रह ही सकता है। इस धरती पर सुख-चैन से कैसे रहना चाहिए. शक्ति का ललित साहित्य अपने ढंग से हमें यही दिखाता है। इसी कारण हम इस तरह का साहित्य पढ़ते हैं।
जीवन में ज्ञान (का साहित्य) और शक्ति (का ललित साहित्य) का समन्वय कर के ही वास्तव में जिया जा सकता है। कोरा ज्ञान हमेशा भेटकाने वाला ही साबित हुआ करता है। इसी प्रकार शक्ति के साहित्य को कोमल कान्त ललित भावनाएँ भी जीवन को नहीं चला सकतीं। एक भावना का बढ़ और दूसरी का मन्द पड़ जाना ही हानि या विनाश का कारण बन जाया करता है। दोनों के समन्वय से ही मनुष्य का व्यक्ति और सामाजिक जीवन ठीक ढंग से, सन्तुलित रूप से चल सकता है। फिर ज्ञान-विज्ञान, भूगोल, गणित. इतिहास, राजनीतिशास्त्र और अर्थ शास्त्र आदि उपयोगी साहित्य के विषयों के साथ-साथ कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास आदि शक्ति के साहित्य के ललित विषयों का भी केन्द्र केदल मानव और उसकी मानवता का हित-साधन ही हुआ करता है। समाज का अंग होने के कारण व्यक्ति भी उसी में आ जाता है। सो हम चाहे ज्ञान का साहित्य पढ़ते हो, चाहे शक्ति का साहित्य, दोनों का चरमोद्देश्य मानवता का, जीवन समाज के प्रत्येक व्यक्ति का हित-साधन ही है। अब तो स्पष्ट हो गया न कि हम साहित्य क्यों पढते हैं?