Hindi Essay on “Muktsar ki Maghi” , ”मुक्तसर की माघी” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
मुक्तसर की माघी
Muktsar ki Maghi
मुक्तसर (जिला फरीदकोट) में माघी (माघ-मास का मेला) सिखों के दशम गुरु श्रीगुरु गोबिंद सिंह तथा उनके 40 अनुयायियों से संबंधित हैं।जिन्हें 40 मुक्ते (जीवनमुक्त पुरुष) भी कहा जाता है। यह 40 अनुयायी पंजाब के माझा क्षेत्र से थेयह मेला माघ-मास के पहले दिन (जनवरी में) मनाया जाता है।
सन् 1701 में श्रीगुरु गोबिंद सिंह तथा उनके बहुत से श्रद्धालु शिष्य आनंदपुर साहिब के किले के भीतर चारों ओर से मुगल सेना द्वारा घेर लिए गए थे। अन्न-जल समाप्त होता जा रहा था। तथा भूख के रूप में मृत्यु समक्ष खड़ी हुई नजर आ रही थी। अविराम घेराबंदी से कुछ सिखों का साहस शिथिल पड़ गया। उनमें से 40 सिखों ने गुरुजी को एक अवज्ञा पत्र (बेदावा) लिखकर दिया जिसके माध्यम से उन्होंने गुरुजी के प्रति अपनी निष्ठा तथा विश्वास भंग कर लिया। तथा उन्हें संकट में छोड़कर अपने-अपने घरों को लौट गए पर जब वे लोग घर पहुंचे तो उनकी स्त्रियों को यह जानकर बड़ा दुख पहुंचा कि उन्होंने गुरुजी से विश्वासघात किया है। उन्होंने अपने पतियों को बहुत अपमानित किया। एक स्त्री, जिनका नाम माई भागो, माता भाग्य कौर था।, ने पुरुषों के वस्त्र पहनकर मुगलों के साथ युद्ध करने का प्रण किया। और गुरुजी की सेवा में शामिल होने के लिए चल पड़ीं। यह देखकर उन 40 सिखों को बड़ी आत्मग्लानि हुई तथा उनके भीतर सोया हुआ। आत्म-सम्मान जाग उठावे सब माई भागो जी के पीछे-पीछे चल पड़े ताकि गुरुजी से क्षमा मांग सकें तथा पुनः उनकी सेवा में शामिल हो सकें।
जब वे खिदराना (मुक्तसर शहर का उस समय का नाम) पहुंचे तो उन्हें पता लगा कि मुगल सेनाएं गुरुजी का पीछा कर रही हैं। उन्होंने खिदराना के सरोवर के समीप मुगल सेना को ललकारा तथा उनका डटकर मुकाबला किया। इसी बीच गुरु गोबिंद सिंह जी वहां साथियों सहित आ पहुंचे तथा स्वयं भी युद्ध में कूद पड़े। गुरुजी ने देखा कि उनके 40 सिखों ने पूरी बहादुरी के साथ मुगल सेना का मुकाबला किया। और अंत में वे एक-एक करके शहीद हो गए। भाई महासिंह, जो उन 40 सिंहों का नेता था। अपने अंतिम श्वास ले रहा था। गुरुजी उसके पास पहुंचे भाई महासिंह ने गुरुजी से प्रार्थना की कि वे उसे तथा उसके अन्य साथियों को क्षमा कर दें। गुरुजी ने गहरा दुख प्रकट करते हुए। बेदावा फाड़ दिया और महासिंह तथा उनके साथियों को आशीर्वाद दिया। इसके उपरांत भाई महासिंह ने निश्चित होकर प्राण त्याग दिए। गुरुजी ने उन 40 बहादुर सिंहों का अपने हाथों से दाह संस्कार सम्पन्न किया। उस स्थान पर ही आज गुरुद्वारा शहीदगंज स्थापित है। गुरुजी ने उनको “मुक्त” (जीवनमुक्त पुरुषों) की संज्ञा दी। जिस सरोवर के तट पर उन्होंने शहादतें दी थीं, उसका नाम “मुक्तसर” अर्थात् मुक्तिप्रदाता सरोवर रखा। इसी पवित्र सरोवर के नाम पर शहर का नाम मुक्तसर पड़ा।
इस मेले में पंजाब के अतिरिक्त हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि से भी लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। माघी वाले दिन वे ब्रह्म मुहूर्त अर्थातू प्रभात के समय में उठकर सरोवर में स्नान करते हैं। उसके पश्चात वहां पर स्थित विभिन्न गरुद्वारों में जाकर माथा टेकते हैं।
श्री गुरु गोबिंद सिंह तथा 40 मुक्ते की यादगार में वहां पर अनेक गुरुद्वारे हैं। जिनमें प्रमुख हैं:
(1) गरुद्धारा टिब्बी साहिब: मुगलों के साथ युद्ध के दौरान श्री गोबिन्द सिंह ने इस स्थान से मुगल सेना पर तीरों की बौछार की थी।
(2) गुरुद्वारा रकाबगंज: मुगलों के साथ युद्ध के दौरान इस स्थान पर गुरुजी के घोड़े की रकाब
टूटकर गिर पड़ी थी। ।
(3) गुरुद्वारा दातुन साहिब: इस स्थान पर गुरुजी नित्यप्रति प्रातःकाल दातुन किया करते थे।
(4) गुरुद्वारा गड़वा साहिब: एक सुबह जब गुरुजी दातुन कर रहे थे तो एक मुसलमान ने चोरी-छिपे उन पर हमला कर दिया। गुरुजी ने अपने हाथ में पकड़े पानी के गड़वे (लौह-कमण्डल) के एक ही वार से उस मुसलमान को ढेर कर दिया। यह स्थान गुरुद्वारा दातुन साहिब के बिल्कुल निकट है।
(5) गुरुद्वारा मंजी साहिब: यह वह स्थान है। जहां पर 40 सिखों को गुरुजी ने मुक्ति प्रदान की थी। तथा उन्हें 40 मुक्तों की पवित्र संज्ञा प्रदान की थी।
(6) गुरुद्वारा शहीदगंज: यह गुरुद्वारा मंजी साहिब के समीप ही स्थित है। इस स्थान पर ही गुरुजी ने स्वयं अपने हाथों 40 मुक्ते का दाह संस्कार किया था।
(7) गुरुद्वारा तंबू साहिब: यह गुरुद्वारा मुक्तसर-सरोवर के समीप ही स्थित है। इस स्थान पर
गुरुजी ने झाड़ियों पर इस ढंग से कपड़े फैला दिए थे कि वे दूर से तंबू ही तंबू नजर आएं, जिससे मुगलों को भ्रम पड़े कि यहां बहुत ज्यादा सिख फौजें रुकी हुई हैं।
(8) गुरुद्वारा दुट्टी-गण्डी (टूटे हुए। को जोड़ने वाला) साहिब: यह वह स्थान है। जहां पर भाई महासिंह (चालीस मुत्तों का सरदार) ने गुरुजी के समक्ष विनती की थी। कि वे अपने सिंहों को क्षमा कर दें तथा गुरुजी ने अवज्ञा पत्र को फाड़ते हुए। उन्हें पुनः अपनी शरण में ले लिया। था।
माघी त्योहार के अवसर पर यहां एक बड़ी पशु-मण्डी भी लगाई जाती है। जिसमें भैंसों, गऊओं, घोड़ों और अन्य पशुओं के अतिरिक्त बड़ी संख्या में ऊंट भी क्रय तथा विक्रय किए जाते हैं। इस उद्देश्य से भी कुछ लोग विशेष तौर से, दूर-दूर से चलकर यहां आते हैं। माघी का यह त्योहार जहां खुशी के रंग बिखेरता है।वहां यह गुरु-पर्व की महानता को भी उजागर करता है।