Hindi Essay on “Jeevan me Pustako ka Mahatva”, “जीवन में पुस्तकों का महत्त्व” Complete Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
जीवन में पुस्तकों का महत्त्व
Jeevan me Pustako ka Mahatva
पुस्तकों का महत्त्व : जिस प्रकार तन को स्वस्थ रखने के लिये पौष्टिक भोजन की आवश्यकता है उसी प्रकार मन को स्वस्थ रखने के लिये सत्साहित्य की आवश्यकता है। पुस्तकों में निहित ज्ञान से ही मानव की मानसिक एवं बौद्धिक शक्तियों का विकासर होता है। जिन्होंने ग्रन्थावलोकन के महत्त्व को समझा है, वे नित्य कुछ समय ग्रन्थों के बीच अवश्य व्यतीत करते हैं। यदि किसी कारणवश वे किसी दिन ग्रन्थों का सत्संग प्राप्त नहीं करते, तो उस दिन उनको अभाव-सा प्रतीत होता है। पुस्तकें हमारे जीवन की पूरक हैं। इनके होते हुये हमें संगीसाथियों का अभाव नहीं खटकता । ग्रन्थ हमारे सगे मित्र और स्नेही सखा हैं। जीवन में जब तब अभाव से पीड़ित हो, जी घबराता हो, ऐसे समय जब स्नेह-सहानुभूति की आवश्यकता हो, आड़े समय में सहायता के लिये किसी सहदय सखा की खोज हो, तो आप पुस्तकों की शरण में जाइये । वे अत्यन्त प्रेम और सहानुभूति की बातें सुनाएँगी और सखा की भाँति आपकी पीड़ा हरेंगी। उनमें कोई आपको धीरज देते हुए कहेगी, “हुश, वीर होकर घबराता है। धैर्य न खो, सैनिक समान आगे बढ़। जानता नहीं राम ने कितना कष्ट सहा। पांडव वनों में मारे-मारे फिरे । अन्त में विजय उन्हीं की हुई ।” उनकी ओजस्वी उत्साहवर्धक वाणी सुनकर आप वक्षस्थल तानकर खड़े हो जाएँगे । तो उनमें से कोई आपकी पीठ थपथपा कर कहेगी, “शाबाश ! तेरी विजय होगी।”
पथ-प्रदर्शक : पुस्तकें हमारे लिये पथ-प्रदर्शक हैं। हमें प्रलोभन से बचाती हैं, हमें पथभ्रष्ट नहीं होने देतीं और प्रकाश-स्तम्भ के समान विश्व सागर में तैरते हमारे जीवन-जलयान को मार्ग दिखाती हैं। जबकभी प्रलोभन या आतंक से हम अपना आदर्श भूल रहे हों, पथ से। अलग जा रहे हों, तो इनके पास जाएँ। ये दयार्द्र हो, हमारा हाथ पकड़ कर हमें राह सुझायेंगी। इनमें से कितनी बोल उठेगी, “प्रलोभन में पड़कर आदर्श की हत्या करता है। पगले ! उन ऋषियों को नहीं जानता जिनकी तू सन्तान है। प्रताप, दयानन्द और दुर्गादास को कितने प्रलोभन दिये गये; पर वे अपने पथ से न डिगे। हम अपनी निर्बलता पर लज्जित हो, आँखों में आँसू भर लायेंगे।
ज्ञानकोश का भण्डार : जीवन की वास्तविकता का अनुभव करने के लिये हमें पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिये । यह नहीं भूलना चाहिये। कि पुस्तकें ही हमारे ज्ञानकोश का भण्डार है। इन्हीं के हृदय में हमारे पूर्व ज्ञान-विज्ञान, दर्शन, इतिहास और साहित्य सुरक्षित है। आज भी लाखों वर्षों के सुरक्षित ज्ञान रत्न इन्हीं में सुरक्षित रखे हैं और इन्हीं के कारण हम उनके अधिकारी है। इन्हीं के द्वारा हमारे पूर्वजों ने अपने ज्ञान धन की वसीयत हमारे नाम की है। आज हम उनके स्वामी बनकर गर्व से मस्तक उन्नत कर रहे हैं। गौतम, कपिल और वाल्मीकि आदि आर्य मुनियों को हुए लाखों वर्ष व्यतीत हो गये; परं पुस्तकों के द्वारा उनका ज्ञान आज भी हमें प्राप्त है। राम कृष्ण की कहानी आज की तो नहीं है, बहुत प्राचीन है; पर पुस्तकों के द्वारा उनकी वीरता, शक्ति, शौर्य, निर्भयता और युद्ध कला आदि सभी जैसे नवीन-सी लग रही है।
दुभाषिया : पुस्तकें हमारे और पूर्वजों के बीच दुभाषिया हैं। इनके द्वारा आज भी हम अपने पूर्वजों, ऋषि-मुनियों और आर्य-वीरों आदि को ज्ञानोपदेश देने में तत्पर तथा विजयध्वज फहराते हुए मिलते हैं। इन्हीं के द्वारा हम पूर्वजों से घबराहट में धैर्य, युद्ध में प्रोत्साहन, कष्ट में सहानुभूति, उलझन में सुसम्मति और विराग में आनन्द प्राप्त करते है। इनमें वर्णित महापुरुषों के कार्य-कलाप आज भी हमारे प्राणों को पावून प्रेरणा प्रदान करते हैं। कष्टों में राम हमारे साथी हैं। बुद्ध में भीष्म-अर्जुन हमारे साथ युद्ध करते हैं। मृत्यु शय्या पर पड़े भाई के लिये हनुमान संजीवनी लाते हैं। पुस्तकों के द्वारा आज हमारे पूर्वज अमर हैं। राम-कृष्ण अन्तध्यन हो गये; पर अब भी उपस्थित हैं। पाण्डव हिमालय में गल गये; पर आज भी वे जीवित हैं। आज भी वे सक्रिय हैं, सचेष्ट हैं और प्रयत्नशील हैं।
मनोरंजन का साधन : उदास-अनमने, कार्य- भार–पीडित, थके माँदे और शिथिल हो जाने पर कौन आपको गुदगुदाता है ? मनोरंजक पुस्तकें ! वे आपको गुदगुदा देती हैं और एक हँसोड़-साथी के समान आपको उदासी दूर कर देती हैं। कैसी स्वच्छन्द हँसी से वे आपका कमरा गुंजा देती हैं ? फिर कैसी उदासी और सुस्ती ? घर पर कोई नहीं है, मन-अनमना-सा है, एकान्त सूना-सूना बड़ा अखरता है वह समय ! किसी सद्ग्रंथ को उठाइये और पढ़ना आरम्भ कीजिये। फिर न आपको एकान्त अखरता है और न सूनापन खटकता है। आपके पास सहृदय साथी है, जो आपसे खुले दिल से बातें करता है।
सच्ची संगिनी : पुस्तकें घबराहट में धैर्य, उद्विग्नता में शान्ति, उदासी में मुस्कान, अन्धकार में प्रकाश और एकान्त में सच्ची संगिनी हैं। वे उलझन में सुसम्मति, सुस्ती में गुदगुदी हैं। यही आवश्यकता में मित्र और अपूर्णता-अभाव में पूर्ति हैं। पुस्तकें हमारी मानसिक तृष्णा की तृप्ति और बौद्धिक विकास की संजीवनी-सुधा है; पर हमें इनकी बातें समझने की आदत और समझ होनी चाहिए । अतः हमारे जीवन में पुस्तकों का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
उपसंहार : पुस्तकों से हम प्राचीन समाज को स्पष्ट रूप से देखते हैं। जहाँ कहीं हमारा जीवन रुकता है, वहीं हमारे ग्रन्थ हमें सहायता देते हैं। अत: जीवन को जीवन्त रखने के लिये पुस्तकों का अध्ययन आवश्यक है।
Thankyou very much for this best assay..
It helped me a lot for my assignment 😊..