Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Global Warming”, “ग्लोबल वार्मिंग” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
ग्लोबल वार्मिंग
Global Warming
निबंध नंबर – 01
जब G-8 का शिखर सम्मेलन हुआ था, तो उसमें ग्लोबल वार्मिंग सबसे बड़ा मुद्दा रहा था।
ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ हम उसके नाम से ही ग्लोबल (दूनियाँ) वार्मिंग (उबलना) अर्थात् दुनियाँ में किसी तरह का उबाल आना, नदियों का सूख जाना, कई प्राकृतिक आपदाओं का आना आदि कह सकते हैं।
जब सन् 2007 को ब्रूसेल्स में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्राष्ट्रीय पैनल की अब तक की सबसे महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की गई तो पता चला कि इस रिपोर्ट में बताया गया था कि तापमान बढ़ने से गंगोत्री सहित हिमालय के अनगिनत ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ गई है। ये ग्लेशियर काफी तेजी से पिघल रहे हैं। हिमालय से एशिया की जो आठ प्रमुख नदियों को पानी मिलता है। इस सदी के चौथे दशक तक हिमालय के ग्लेशियरों का क्षेत्रफल वर्तमान में 500000 वर्ग किलोमिटर से काफी घटकर मात्र 100000 वर्ग किलोमीटर ही रह जाएगा। जिसके परिणाम स्वरूप नदियाँ सूखने लगेंगी। फलतः सिंचाई और पीने के लिए पानी की कमी हो जाएगी जिससे फसलें नष्ट हो जाएँगी और लोग भूख-प्यास से बुरी तरह कराह उठेगे। जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियाँ समाप्त हो जाएंगी।
बाढ़, सूखा, महामारी, तूफान आदि प्राकतिक आपदाओं पर जब मनुष्य का वश नहीं चला तो पूरे विश्व में ताप की वृद्धि होने पर रोक लगा सकना उसके लिए असंभव सा प्रतीत होता है।
संपूर्ण ब्रह्माण्ड में केवल धरती ही एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन है। इसकी सतह से 275-325 कि.मी. की ऊंचाई तक वायु का एक आवरण है। इसी आवरण के कारण धरती पर ज़ीवन संभव हो पाया है। जब मनुष्य ने इसके पर्यावरण स्तर से छेड़छाड़ की तो हमें इस गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग कह सकते हैं। प्रश्न यह उठता है कि आखिर ग्लोबल वार्मिंग है। क्या ?
वैज्ञानिक भाषा में हम ग्लोबल वार्मिंग के बारे में यह कह सकते हैं कि जब हमारी धरती पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं। अतः दिन में सूर्य के सामने वाला हिस्सा गरम हो जाता है। परंतु यह गर्मी धरती के द्वारा वापस ब्रह्माण्ड की ओर फेंकी जाती । है ताकि इसका तापमान कम हो सके। वस्तुतः पूरी गर्मी ब्रह्माण्ड की ओर नहीं फेंकी जा सकती। धरती पर जो कोयला, ईंधन व लकड़ी के जलने पर कार्बन डाई ऑक्साइड गैस बनती है, यही गैस हमारे वायु मंडल में कुछ ऊंचाई पर जाकर स्थिर हो जाती है। अब यदि यही गैस का उत्पादन अधिक होने लगे और पर्यावरण के सुरक्षा कवच अर्थात् पेड़-पौधे नाम मात्र के रह जाएँ तो धरती के द्वारा छोड़ी जाने वाली गर्मी वापस धरती पर ही परावर्तित कर रही है। फलस्वरूप धरती का तापमान बढ़ जाएगा जिसे वैज्ञानिक ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।
अब अगर हम आँकड़ों के अनुसार देखें तो पिछले 5-6 सालों में गर्मी के सारे रिकार्ड टूट चूके हैं। 21 वीं शताब्दी में पृथ्वी की बढ़ती गर्मी और उससे मानव जाति के लिए बढ़ते खतरों को भाँपते हुए ही जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और वनों की सुरक्षा के लिए कई विश्व पर्यावरण सम्मेलन हुए। कई देशों से संधि तक हुई। पर इस मंहगी प्रणाली को कई देशों ने अस्वीकार कर दिया।
जब इस समस्या पर अंतर्राष्ट्रीय बैठक हुई तो अमेरिका को छोड़ सभी देशों में सहमति बन गई। इसमें यह निर्णय लिया गया कि हानिकारक उत्सर्जी गैसों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए 2 अरब मिलियन डॉलर की सहोयता अमेरिका, यूरोपीय यूनियन भारत एवं चीन देंगे।
जलवायु परिवर्तन भी वैश्विक ताप वृद्धि का ही दूसरा रूप है जो कि विश्व के लिए एक व्यापक और दीर्घकालीन चुनौती है। विश्व के प्रत्येक भाग के लिए लगभग समान रूप से यह बेहद खतरनाक है।
ग्लोबल वार्मिंग किसी एक देश की समस्या नहीं है, पूरे विश्व में व्याप्त वायुमंडल के प्रभावित होने का यह मुद्दा है। वायुमंडल को वस्तुतः विकसित देशों के क्रिया कलापों से ही विशेष रूप से प्रभावित होना पड़ता है।
निबंध नंबर – 02
ग्लोबल वार्मिंग
Global Warming
ग्लोबल वार्मिग–धरती जीवनदायिनी है। चंद्र-मंगल आदि ग्रहों पर जीवन नहीं है। इसका कारण है-पर्यावरण या वातावरण। धरती पर जलवायु ऐसी है कि इस पर वनस्पति पैदा हो सकी. जल के स्रोत बन सके और जीव पैदा हो सका। यह जीवन-लीला तभी चल सकती है जबकि यहाँ का प्राकृतिक वातावरण निर्दोष बना रह सके।
प्राकृतिक असंतुलन–दुर्भाग्य से आज पर्यावरण का यह संतुलन टूट गया है। जीवन जीने के लिए जितना ताप चाहिए, जितना जल चाहिए जितने वक्ष-जंगल चाहिए, जितनी बर्फ, जितने ग्लेशियर और नदियाँ चाहिए, उन सबमें खलल पड़ गया है। धरती पर जितने हिमखंड चाहिए और जितना समुद्री जल चाहिए, उसका संतुलन बिगड़ गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि आज हर रोज एकड़ों जमीन समुद्र में समाती जा रही है। उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव के बर्फीले पहाड़ पिघल-पिघल कर समुद्र में मिलते जा रहे हैं। इसके कारण समुद्र का जल बढ़ता जा रहा है। भय है कि आने वाले 30-40 सालों में मद्रास, मुंबई आदि के समुद्र-तट अपने किनारे बसे नगरों को लील जाएँगे। जैसे भगवान कृष्ण की द्वारिका नगरी समुद्र में समा गई थी, वैसे ही एक दिन सारी धरती जलमग्न हो जाएगी। यह संसार जल-प्रलय में डूब जाएगा। जो जल जीवन देता है वही एक दिन जीवन को नष्ट कर देगा।
वार्मिंग के कारण–जल की इस विनाशलीला का कारण है-पर्यावरण में बढ़ता हुआ ताप। जितनी मात्रा में हम फ्रिज, ए.सी., परमाणु भट्ठियाँ या कार्बन छोड़ने वाले रसायनों का उपयोग कर रहे हैं; वातावरण में डीजल-तेल या खतरनाक रसायनों को जला रहे हैं। साथ ही नमी पैदा करने वाले जंगलों और वनस्पतियों को काट रहे हैं, उससे गर्मी भीषण रूप से बढ़ रही है। पूरे वायुमंडल में गर्मी का एक गुब्बार-सा छा गया है। परिणामस्वरूप हमारे पर्यावरण पर कवच की तरह जमी ओजोन गैस की परत में छेद हो गया है। इससे सूर्य की विषैली किरणें तरह-तरह के रोग पैदा कर रही हैं। आज मनुष्य के लिए खुली हवा और धूप में निकलना भी दूभर हो गया है।
इस ताप को बढ़ाने में आज का मनुष्य दोषी है। वह सुख-सुविधा के मोह में अपनी मौत का सामान इकट्ठा कर रहा है। इसीलिए कवि ने लिखा है
ओ मनुज! गर ताप को तू यों बढ़ाता जाएगा।
मत समझ यह जग जलेगा, तू भी न बच पाएगा।।
आज जिस धरती को तूने है बनाया आग–सा।
तू झुलस कर खुद इसी में एक दिन मर जाएगा।
–अशोक बत्रा
उपाय–धरती को ताप से बचाने का एक ही उपाय है-अपने पापों का प्रायश्चित करना। जिन-जिन कारणों से हमने ताप बढ़ाया है, कष्ट उठाकर भी उन कारणों को बढ़ने से रोकना। पौधे लगाना, हरियाली उगाना। मशीनी जीवन की बजाय प्रकृति की गोद में लौटना।