Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Barsat ki Ek Bhayanak Raat”, “बरसात की एक भयानक रात” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
बरसात की एक भयानक रात
Barsat ki Ek Bhayanak Raat
सावन-भादो बरसात के होते हैं। भादो मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या थी। इस दिन सारे दिन घनघोर बरसात होती रही। खूब बादल कड़क रहे थे और बिजली भी चमक रही थी। संध्या हुई और धीरे-धीरे रात घिर आई। चारों ओर घनघोर अँधेरा छाया हुआ था। चारांे ओर रात्रि की कालिमा पसरी हुई थी। हाथ को हाथ सूझ रहा था। तभी अचानक बिजली भी चली गई। अब रात ने भयानक रूप धारण कर लिया। बाहर बारिश हो रही थी और घर मंे अँधेरा छाया हुआ था। साँय-साँय की आवाजें रात की भयंकरता को और भी बढ़ा रही थीं। अब यह रात डरावनी हो चली थी। मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। मन घबरा रहा था। घर के बाहर का वातावरण भूतहा-सा प्रतीत हो होता था। घर के सभी सदस्य जागे हुए थे। अन्य घरों में भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी।
रात की उस भयानकता में भी चोर अपने कामों में लगे हुए थे। रात के अंधकार में शेर उभर जाता था- ‘चोर, चोर, पकड़ो-पकड़ो’ पर कोई घर से बाहर निकलने का नाम नहीं लेता था। सभी डरे हुए थे। धीरे-धीरे घ़ी में बारह बजे। अभी भी तेज वर्षा हो रही थी। वर्षा की बूँदों की आवाजें सन्नाटे में बड़ी विचित्र लग रही थीं। कभी-कभी कुत्तों की आवाजें सुनाई दे जाती थी। उस भयानक रात को काटना अत्यंत मुश्किल हो रहा था।
रात की भयानकता निरंतर बड़ती ही जा रही थी। डर के मारे तो बंुरा हाल था। चारों ओर भूतहा अंधकार छाया हुआ था। अँधेरे की चादर ने सभी चीजों को स्याह बना दिया था। रह-रहकर वर्षा की तेजी भयभीत कर रही थी। रात का अंधकार अंतहीन प्रतीत होता था। यह रात काटे नहीं कट रही थी। ऐसी मनःस्थिति में कभी हनुमानजी याद आते थे तो कभी देवी माँ। उनका स्मरण ही थोड़ी हिम्मत बँधा रहा था। घर में रखी चीजें अजीब-अजीब रूपाकार ग्रहण कर रही थी। उनकी शक्ल भूत का भ्रम उत्पन्न कर रही थी। इस भ्रम की स्थिति से उबरना अत्यंत आवश्यक था, पर राह नहीं सूझ रही थी। घड़ी की टिक-टिक तो हो रही थी, पर लगता था कि घड़ी की सुइयाँ एक ही स्थान पर रूक कई है।
उस भयानक रात में नींद तो आँखों से पूरी तरह गायब हो चुकी थी। बस एक खटका-सा लगा हुआ था कि कहीं कुछ अनहोनी न घटित हो जाए। सारा घर जाग रहा था। सभी की आँखें बोझिल थीं, पर नींद उनसे कोसों दूर थी।
जैसे-तैसे करके घड़ी की सुइयाँ प्रातः काल की ओर बढ़ने लगीं। घड़ी ने प्रातः के चार बजाए। यद्यपि अभी भी अँधेरे का साम्राज्य बरकरार था, पर बरसात का वेग रूकता नज़र आने लगा था। अब सिर्फ अंधेरे की समस्या शेष रह गई थी। धीरे-धीरे थोड़ा डर कम हुआ। रात की भयंकरता घट रही थी। मन में थोड़ी हिम्मत आ रही थी। दो घंटे के बाद सूर्योदय हुआ। धीमा-धीमा प्रकाश फैला, तब जाकर स्थिति सामान्य होने लगी। बरसात की यह भयानक रात को मैं कभी भूल नहीं पाऊँगा। यह ऐसा अनुभव रहा जो अत्यंत कष्टदायक था।