Hindi Essay, Paragraph, Speech on “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
Majhab nahi Sikhata aapas me ber Rakhna
निबंध नंबर:- 01
उपर्युक्त सूक्ति प्रसिद्ध शायर इकबाल की है। उन्होंने उपनी एक देश प्रेम की कविता में लिखा है- ‘‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम , वतन है हिन्दोस्तां हमारा।’’ इन शब्दों में ऐसा जादू था कि प्रत्येक मजहब के लोग स्वयं को भातरीय मानते हुए भारत को स्वतंत्र कराने के कार्य में जुट गए।
भारत एक विशाल देश है। इसमें अनेक धर्मानुयायी, विभिन्न जातियाँ, विभिन्न भाषा-भाषी लोग रहते हैं। वेशभूषा, खान पान, बोलचाल की दृष्टि से विभिन्नता लक्षित होती है, किन्तु इस अनेकता के पीछे एकता की भावना निहित रहती है। यह यहाँ की सामाजिक संस्कृति की विशेषता रही है। एकता की इस अनुभूति ने हमें सामाजिक, राजनैतिक जीवन के निर्माण में मदद की है। भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी ने भ्रातृ-भाव पर बल दिया है।
वर्तमान समय में राष्ट्रीय एकता की सर्वाधिक आवश्यकता अनुभव की जा रही है। ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न हुई ? इस पर विचार करने की आवश्यकता हैं आज देश में विघटनकारी तत्व तेजी से अपना जोर पकड़ रहे हैं। कश्मीर, पंजाब, असम, आदि स्थानों पर उग्रवादी शक्तियाँ खुलकर खेल रही हैं। इससे हमारे राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को खतरा उत्पन्न हो गया है। कश्मीर और पंजाब की आतंकवादी गतिविधियों ने न जाने कितने ही निर्दोष व्यक्तियों की निर्मम हत्या की है। यह दौर अभी तक थम नहीं पाया है, यद्यपि सरकार विभिन्न उपाय बरत रही है। किन्तु अभी तक कोई उपाय कारगर सिद्ध नहीं हो सका है। इन विघटनकारी तत्वों को सख्ती के साथ दबाने की आवश्यकता है।
हमारे देश में कुछ लोग या समुदाय सांप्रदायिक बुद्धि उत्पन्न करने में बढ़-चढ़ कर काम करते हैं देश में राम-जन्म मंदिर और बाबरी मस्जिद का संघर्ष इसी बुद्धि का परिणाम है। ऐसा प्रतीत होता है कि देश के सम्मुख यही सबसे बड़ी समस्या है। सांप्रदायिक विद्वेष को मिटाना अत्यन्त आवश्यक है। सभी मजहबों में अच्छी शिक्षा दी गई है- ‘‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’’। हम निःसंकोच कह सकते हैं कि यदि हमने अपनी सांप्रदायिक बुद्धि का परित्याग नहीं किया और जात-पात के भेदभाव को नहीं मिटाया तो हमारा पतन निश्चित है। प्रतिशोध और विद्वेष की भावना से किया गया कोई भी काम कभी ठीक नहीं होता। प्रतिगामी शक्तियाँ कुछ समय के लिए भले ही विजयी हो जाएं, पर अन्त में मानव-धर्म की विजय निश्चित है।
भारत में पिछले दशक से कुछ ऐसा वातावरण बनता चला जा रहा है कि छोटी-छोटी बातों पर सांप्रदायिक दंगे भड़क उठते हैं। पिछले दिनों गुजरात इसी प्रकार के दंगों की आग में सुलगता रहा। वहांँ के लोगों में आपसी विश्वास समाप्त होने का खतरा उत्पन्न हो गया। इसमें राजनीतिज्ञों एवं मीडिया ने भी दुरंगी चाल चली। स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने लोगों को मजहब के नाम पर भड़काया और मीडिया ने नकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ा-चढ़ाकर उछाला। विदेशांे तक में ऐसी छवि प्रस्तुत की गई कि भारत में सांप्रदायिक सद्भावना का वातावरण नहीं है। किसी एक विशेष दल को कुटिल राजनीति का निशाना बनाया गया। यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। हमें यह बात भली प्रकार से समझ लेनी चाहिए कि कोई सा भी मजहब किसी के साथ बैर-भाव रखना नहीं सिखाता। सभी धर्म परोपकार, प्रेम एवं एकता का संदेश देते हैं।
हमारे देश में धर्म एवं मजहब को मानने की पूरी स्वतंत्रता है, किंतु इसका अनुचित लाभ नहीं उठाया जाना चाहिए। धर्म और मजहब तभी तक हैं जब तक देश सुरक्षित हैं यदि देश की स्वतंत्रता ही खतरे में पड़ जाएगी तो हम और हमारा धर्म कहीं के भी नहीं रहेंगे। हमें उन बातों को प्रोत्साहित करना है जिनसे एकता की भावना मजबूत होती है। भावात्मक एकता की आज सबसे अधिक आवश्यकता है। हमारी संस्कृति में ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ को महत्त्व दिया गया है। हम सबके सुख की कामना करते हैं। यदि देशवासी इस भावना को पूर्णतः अंगीकार कर लें, तो देश एकता के सूत्र में ग्रथित हो जाएगा।
मजहब ऊपर से जितना कलहकारी लगता है, अंदर से उतना ही शांतिदायक है। हमें मजहब का सच्चा अर्थ जानना चाहिए।
मजहब का सच्चा अर्थ जानने से कभी दंगा नहीं भड़केगा। सभी मनुष्य समान हैं। प्रत्येक व्यक्ति में परमात्मा का निवास हैं हमें दूसरे मजहब की अच्छाइयों को देखना चाहिए। इससे आपसी प्रेम बढ़ेगा और एकता की भावना मजबूत होगी। आज भारत को इसी भावना की परम आवश्यकता है। महिलाओं को आरक्षण नहीं, अधिकार चाहिए
भारत में पिछले एक दशक से महिलाओं को संसद तथा विधान सभाओं में आरक्षण की बात चल रही है। आरक्षण बिल अभी तक पास नहीं हो पाया है। नौकरियों में भी आराण के प्रयास हो रहे हैं। प्रश्न उठता है कि क्या केवल आरक्षण मात्र से महिलाओं की स्थिति मं सुधार आ जाएगा?
सच्चाई तो यह है कि महिलाओं को आरक्षण नहीं अधिकार चाहिए। बिना अधिकार मिले महिलाओं की स्थिति में मूलभूत सुधार नहीं आ सकता। वैसे तो आरक्षण मिलना भी उसका अधिकार है। अधिकार पाकर ही नारी अपनी स्थिति को बेहतर बना पाएगी। आरक्षण मिलना किसी समस्या का समाधान नहीं है।
महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाया जाना अत्यंत आवश्यक है। अधिकारों को देने से पूर्व उर्से आिर्थक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाना जरूरी है। आर्थिक स्वतंत्रता उसमें आत्मविश्वास का संचार करेगी।
स्वतंत्रता प्रप्ति के पश्चात तो भारतीय नारी के जागरण की गति आश्चर्य में डाल देने वाली हैै। जाब केवल स्त्री होने के नाते उसे किसी कार्य में प्रवेश से नहीं रोका जा सकता। वह प्रशासन की सर्वाच्च परीक्षाओं में अपनी योग्यता का पूरा परिचय दे चुकी है। आज उसे पुरूष के समान मत देने का पूर्ण अधिकार है। आज जीवन का कोई क्षेत्र उससे अछूता नहीं रह गया है। श्रीमती इंदिरा गाँधी को देश का प्रधानमंत्री बनाकर भारत ने यह सिद्ध कर दिखाया कि कि भातर पुनः अपनी नारी शक्ति को पहचानने लगा है। इससे पहले अपनी सेवाओं और योग्यता के बल पर स्व. सरोजनी नायडू स्वतंत्र भारत में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल नियुक्त की गई थीं। राजकुमारी अमृतकौर काफी समय तक केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में स्वास्थ्य मंत्री के रूप में कार्य करती रही हैं और विजयलक्ष्मी पंडित रूस, अमेरिका और ब्रिटेन में राजदूत तथा राष्ट्र संघ की महासभा की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् नारी की स्थिति में अधिकाधिक सुधार लाने की दृष्टि से सरकार ने विभिन्न कदम उठाये हैं तथा उसे सामाजिक न्याय दिलाने के लिए अनेक कानून बनाये। संविधान ने उसे वे सभी अधिकार प्रदान किये हैं जो कि पुरूष को। परिवार में उसकी स्थिति को सदृढ़ बनाने के लिए सरकार की कृपा से अब उसे पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार मिल गया है। पति के निरन्तर शोषण, दुव्र्यवहार और अत्याचार से बचने के लिए महिलाओं का राजनीति में आना नितांत आवश्यक है। तभी वे कानून बनाने की प्रक्रिया में महिलाओं के हितों की रक्षा कर सकेंगी।
भारतीय महिलाओं को इस चुनौती को स्वीकार करना चाहिए और समाज के सम्मुख दृढ़ता एवं आत्मविश्वास का परिचय देना चाहिए।
भारतीय महिलाएँ विश्व के किसी भी अन्य देश की महिलाओं से कम नहीं हैं। यह सही है कि हमारे देश में महिला साक्षरता की दरी अपेक्षाकृत कम है, पर सूझ-बूझ एवं कर्मठता मं भारतीय महिलाएँ बढ़-चढ़कर हैं। अब तो महिला सशक्तिकरण का युग है। हमें उनके हाथों को मजबूत बनाना है। उन्हें आर्थि, सामाजिक एवं राजनैतिक दृष्टि से मजबूत बनाना है, तभी भारत मजबूत बनाना है तभी भारत मजबूत बन सकेगा। महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाना समय की माँग है।
निबंध नंबर:- 02
मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना
प्रत्येक देश के निवासियों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास होना आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता की भावना के अभाव में न तो कोई देश स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकता है और न ही स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद उसकी रक्षा कर सकता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि हमारे देश में जब-जब भी राष्ट्रीय एकता का अभाव हुआ है तब-तब हमारे देश की आजादी खतरे में पड़ी है और विदेशियों को हमारे देश को गुलाम बनाने में सफलता प्राप्त हुई है। यही कारण है कि शतब्दियों की गुलामी के बाद जब हमारा देश स्वतन्त्र हुआ तो हमारे देश के कर्णधारों ने यह आवश्यक समझा कि देश में राष्ट्रीय एकता की स्थापना के लिए शीघ्रातिशीघ्र ही प्रयास किए जाएँ।
यदि हमें अपने देश को प्रगतिशील बनाना हैं तथा अपने देश की स्वतन्त्रता को बनाए रखना है तो यह अत्यन्त आवश्यक है कि सर्वाधिक ध्यान राष्ट्रीय एकता की स्थापना करने की दिशा में दिया जाए। राष्ट्रीय एकता की स्थापना के द्वारा ही, देश में शान्ति और सद्भावना का वातावरण उत्पन्न हो सकता है तथा पारस्परिक विवादों को शान्तिपूर्ण तरीकों से सुलझाया जा सकता है। यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हमें निरन्तर अनेक ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जो हमारे देश में पारस्परिक फूट, अराजकता और हिंसा का वातावरण उत्पन्न कर रही है। साम्प्रदायिकता, भाषाई समस्या, क्षेत्रवाद और आतंकवाद जैसी समस्याएं इनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस प्रकार की समस्याओं से देश की आजादी कभी भी खतरे में पड़ सकती है और बाह्य शक्तियों को देश को कमजोर करने का अवसर प्राप्त हो सकता है! यदि हम अपने देश की आन्तरिक एवं बाह्य स्थिति को देखें तो हमारे देश के लिए तो राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास करने की सबसे अधिक आवश्यकता है। इस प्रकार व्यक्ति एवं समाज के विकास, राष्ट्र की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक प्रगति तथा बाह्य आक्रमणों से देश की रक्षा करने के लिए राष्ट्रीय एकता की भावना का प्रसार होना चाहिए।
राष्ट्रीय एकता का आशय देश के नागरिकों का भावात्मक रूप से एक होना है। अपने विचारों, रूप एवं व्यवहार, अपने धर्म, संस्कृति भाषा तथा रीति-रिवाज में पर्याप्त भिन्नता रखते हुए भी जब हम राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हैं। एक-दूसरे की भाषा, विचार, धर्म एवं कला का सम्मान करते हैं तो हम राष्ट्रीय एकता की भावना का ही परिचय देते हैं। इस प्रकार जिस देश में राष्ट्रीय एकता की भावना विद्यमान होती है, वहाँ के नागरिक अनेक प्रकार की विभिन्नताओं के बाद भी परस्पर मेल से रहते हैं तथा एक-दूसरे की प्रगति में सहायक होते है वे कोई भी ऐसा कार्य नहीं करके जिससे राष्ट्र की स्थिरता, शान्ति प्रगति एवं सुरक्षा को किसी भी प्रकार से संकट उत्पन्न हो। अपने हितों के, स्थान पर राष्ट्रीय हितों को प्रमुख स्थान देना ही राष्ट्रीय एकता की विद्यमानता का प्रमुख लक्षण है।
इस भावना के विकास के लिए- (1) देश के नागरिकों में यह भाव विकसित किया जाए कि भारत एक राष्ट्र है। (2) इस भावना का विकास किया जाए कि भारत की विविधता में भी एकता है! (3) देश की संस्कृति के लिए प्रेम उत्पन्न किया जाए। (4) देश के नागरिकों को यह अनुभव कराया जाए कि एक-दूसरे के विकास पर देश का विकास निर्भर करता है। (5) यह समझ उत्पन्न करना कि देश की सामाजिक व आर्थिक प्रगति देश के समस्त नागरिकों के सहयोग पर आधारित है। (6) एक-दूसरे के विश्वासों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, दृष्टिकोणों के प्रति सम्मान का भाव उत्पन्न करना। इन समस्त उपायों को व्यावहारिक दृष्टि से प्रयोग में लाने के लिए इस प्रकार के उत्सवों, मेलों, प्रदर्शनियों व कार्यक्रमों पर बल दिया जाना चाहिए, जिनके द्वारा राष्ट्रीयता की भावना का परिचय प्राप्त होता है।
राष्ट्रीय एकता किसी भी देश की सर्वोपरि आवश्यकता है। विशेषकर हमारे देश में इस भावना का विकास और भी अधिक आवश्यक है। यह एक दुःखद और लज्जाजनक बात है कि इतने बलिदानों के बाद प्राप्त हुई, स्वतन्त्रता की कीमत को भी हम नहीं पहचान पा रहे हैं। हमारे देश की आन्तरिक व वाघ्र सुरक्षा आज फिर खतरे में पड़ चुकी है। देश में उभरता हुआ जातिवाद, आतंकवाद प्रान्तवाद और भाषावाद इसका प्रमाण है। देश की सीमाओं से लगे पड़ोसी राष्ट्र हमारी कमजोरी को पहचान चुके हैं। हमारे देश के लोगों को ही खरीदकर वे हमारे राष्ट्र की स्थिति को संकटमय बना रहे है। अतः यह आवश्यक है कि हम राष्ट्रीय एकता के विकास हेतु तन, मन, धन से तत्काल जुट जाएँ।
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