Hindi Essay on “Raja Ram Mohal Roy” , ”राजा राममोहन राय” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
राजा राममोहन राय
Raja Ram Mohal Roy
राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में हुआ था। जन्मजात प्रतिभा के धनी राजा राममोहन राय ने कम आयु में ही बंगला, अरबी, फारसी और इसलामी संस्कृति का गहन अध्ययन कर लिया था। उन्होंने काशी में लगातार चार वर्षों तक भारतीय साहित्य और संस्कृति का गहन अध्ययन किया। वे हमेशा कुछ-न-कुछ नया काम करने में विश्वास रखते थे। चौदह वर्ष की अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते उनके पिता ने उनका विवाह कर दिया था। फलस्वरूप पुरानी रूढिय़ों से तंग आकर उन्होंने घर छोड़ दिया।
कुछ दिनों तक वे ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में लगे रहे। इस कारण उन पर अंग्रेजी साहित्य का अच्छा प्रभाव पड़ा। उन्होंने महसूस किया कि भारतीयों का जीवन-स्तर ऊंचा उठाने के लिए अंग्रेजी शिक्षा आवश्यक है। इसी कारण वे भारतीय को अंग्रेजी साहित्य का अच्छा प्रभाव पड़ा। उन्होंने महसूस किया कि भारतीयों का जीवन-स्तर ऊंचा उठाने के लिए अंग्रेजी शिक्षा आवश्यक है। इसी कारण वे भारतीयों को अंग्रेजी शिक्षा दिलाने के पक्ष में थे।
उनके समय में बंगाली समाज में विधवा समाज में विधवा-विवाह, सती-प्रथा, दहेज-प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयां विकराल रूप धारण कर चुकी थीं। लडक़ों के अभाव में एक ही पुरुष के साथ कई-कई लड़कियों की शादी कर दी जाती थी। वे सती-प्रथा के घोर विरोधी थे।
उनके भाई की मृत्यु के बाद उनकी भाभी को धर्म के नाम पपर समाज के ठेकेदारों ने उनकी इच्छा के विरुद्ध भाई को धधकती चिता में धकेल दिया था। उस घटना के बाद से उन्होंने इस कुप्रथा को हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त करने का संकल्प लिया। सन 1921 में लॉर्ड विलियम बैंटिंग के साथ सहयोग कर उन्होंने ही यह कुप्रथा समाप्त कराई।
राजा राममोहन राय ने नारी शिक्षा पर विशेष बल दिया। विवाह को समाज में उच्च स्थान दिलाने के लिए उन्होंने बहुत परिश्रम किया। समाज को धार्मिक अंध-विश्वास और कुरीतियों के दायरे से निकालने के लिए उन्होंने ब्राह्समाज नाम संस्था की स्थापना की। स्वतंत्रता संगाम के साथ-साथ सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने में राजा राममोहन राय का अद्वितीय योगदान है। वे समाज में नारी की दयनीय दशा से अत्याधिक पीडि़त थे।
संपूर्ण मानव जाति के लिए उनका संदेश था-‘कर्म करो’।
21 सितंबर 1933 को इस महान समाज-सुधारक का निधन हो गया।