Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay on “Parsi Dharm” , ”पारसी धर्म” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Hindi Essay on “Parsi Dharm” , ”पारसी धर्म” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

पारसी धर्म

Parsi Dharm

पारसी धर्म का जन्म फारस में हुआ। वही फारस, जिसे आज हम इ्ररान के नाम से जानते हैं। पारसी धर्म की शुरुआत जोरास्टर नामक पैगंबर ने की थी। ईसा-पूर्व सातवीं शताब्दी में जोरोस्टर का जन्म अजरबैजान में हुआ था। जोरोस्टर के पिता के नाम था पोरूशरप। उसके पिता ‘स्पितमा’ वंश के थे। उनकी माता का नाम दु्रधधोवा था। वे एक श्रेष्ठ वंश की थीं।

कहा जाता है कि उनकी मांग ने उन्हें मांत्र पंद्रह वर्ष की अवस्था में जन्म दिया था। ऐ दैवी प्रकाश ने दु्रधधोवा के गर्भ में प्रवेश किया था, जिससे जोरोस्टार का जन्म हुआ था।

जोरोस्टर एक चमत्कारी बालक था। जोरोस्टर को कृष्ण की भांति तरह-तरह की लीलांए करने में आनंद आता था। उनकी अनेक चमत्कारपूर्ण कथांए चर्चित हैं।

कहा जाता है कि सात वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने अध्ययन-कार्य शुरू कर दिया था। उन्होंने प्रदंह वर्ष की अवस्था तक धर्म और विज्ञान का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उसके बाद में अपने घर लोट आए और फिर उन्होंने अपने अगले पंद्रह वर्षों को चिंतन और मनन करने में व्यतीत किया। उन्होंने लंबे समय तक साधना की, तब जाकर उन्हें ज्ञान का प्रकाश मिला। जिस तारीख को जोरोस्टर को ज्ञान मिला था वह पांच माह 630 ईसा-पूर्व की थी। इस तारीख को पारसी धर्म में पहला वर्ष माना गया।

पारसी ज्ञान के देवता को प्रकाश का देवता भी कहते हैं। इस तरह वे प्रकाश देवता को अहुरा मजदा कहत ेहैं। अहुरा मजदा पारसियों के सबसे बड़े देवता जाने जाते हैं। पारसी लोग विश्व की रचना करने वाले और रक्षा करने वाले अहुरा मजदा पूजा अराधना करते हैं। इस प्रकार अहुरा-मजदा की पूजा करने के लिए पारसी धर्म की नींव पड़ी।

पारसी लोग जहां अपना धार्मिक कार्य करते हैं, उसे ‘फायर टैंपिल’ कहते हैं। वहां पूजा-पाठ करने वाले लोग भी अपने ढंग से पूजा-पाठ करते हैं। उसमें से कुछ लोग महीने में चार बार और कुछ लोग प्रतिदिन पूजा-पाठ करते हैं। पारसी लोग अपने मृतक को न तो जलाते हैं और न ही दफनाते हैं। विचित्र बात तो यह है कि ये मृतक शरीर को ज्यों का त्यों छोड़ देते हैं। उन्हें गिद्ध-कोए खा जाते हैं। पारसी लोग मृतकों को जहां छोड़ते हैं उस स्थान को मौन का मीनार कहते हैं। इस तरह उसस छत पर ये मृतक को छोड़ जाते हैं।

सात और आठ वर्ष के पारसी बालकों का हिंदुओं तरह यज्ञोपवीत संस्कार होता है। विवाह के समय जब दूल्हा-दुल्हन मंडप में बैठते हैं, तब दोनों ओर के गवाही देने वाले वहां उपस्थित होते हैं। उनकी संख्या दो होती है और 2 से अधिक भी। विवाह के समय जिस तरह हिंदुओं में नारियल, अक्षत आदि वर-वधु पर फेंके जाते हैं, उसी प्रकार पारसी धर्म में भी यह संस्कार होता है। पारसी धर्म में कुछ बातें ईसाई धर्म तथा कुछ हिंदू धर्म से मिलती जुलती हैं। हिंदुओं की तरह पारसी भी स्वर्ग-नरक में विश्वास करते हैं। पारसियों का मानना है कि मरने के बाद आत्मा परलोक में पहुंचती है। वहां उनके कर्मों का लेखा-जोखा देखा जाता है। उसके बाद निर्णय सुनाया जाता है कि वह पुण्य का भागी है अथवा पाप का। हिंदुओं में भी ऐसी ही मान्यता है।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *