Hindi Essay on “Sanyukt Rashtra Sangh” , ”संयुक्त राष्ट्रसंघ” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
संयुक्त राष्ट्रसंघ
Sanyukt Rashtra Sangh
निबंध नंबर : 01
विश्व के विभिन्न राष्ट्रों का संगठन संयुक्त राष्ट्रसंघ के नाम से पुकारा जाता है। यह वह संस्था है, जिसके मंच पर विश्व के प्राय: सभी राष्ट्रों के प्रतिनिधि युद्ध एंव शांतिकाल की विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर खुलकर विचार-विमर्श करके उसके समाधान खोजने का प्रत्यत्न करते हैं। इस प्रकार के संगठन की पहली बार कल्पना प्रथम विश्वयुद्ध (सन-1914-20) के दुष्परिणामों को देखकर जागी थी। मुख्य रूप से तब भी इसका यही उद्देश्य था और आज भी यही है कि जब भी विश्व के राष्ट्रों के सामने कोई ऐसी विषम समस्या उपस्थित हो कि युद्ध की नौबत आ जाए, तब संबंद्ध एंव अन्य राष्ट्र मिलकर समस्या का समाधान खोजने का सामूहिक प्रयत्न करें, जिससे उपस्थित संबद्ध राष्ट्रों और विश्व युद्ध का खतरा टल सके। उद्देश्य निश्चय ही महान था और है भी पर जर्मन के हिटलर ने सन 1938-39 मेें द्वितीय विश्व युद्ध की घोषणा करके उस पहले राष्ट्रसंघ की धज्जियां उड़ा दीं। तब एक ओर थे जर्मन-जापान, इटली के तानाशाह तथा दूसरी ओर थे इंज्लैंड, अमेरिका, रूस आदि मित्र राष्ट्र। इस दूसरे विश्व युद्ध में विपक्ष (जर्मन आदि) को बुरी तरह पराजित होना पड़ा। मित्र राष्ट्रों की जीत हुई। जर्मनी का रूस-अमेरिका में बंटवारा हो गया, यद्यपि आज फिर दोनों जर्मनियों का एकीकरण हो चुका है। इसके बाद युद्ध की विभीषिका से बचने के लिए वर्तमान संयुक्त राष्ट्रसंघ को स्वरूप और आकार दिया गया। वह आज प्रमुख रूप से अमेरिका जैसी शक्ति की शीत युद्ध का अखाड़ा बनकर ही यद्यपि रह गया है, तो भी कई बार वह विश्व युद्ध के खतरे को टालने में समर्थ हो सकता है, इसे एक शुभ लक्षण और बात कहा जा सकता है।
प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर संयुक्त राष्ट्रसंघ सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान में सफल क्यों नहीं हो पाता? इसका मुख्य कारण पहले रूस-अमेरिका की शक्ति-सीमा-विस्तार-संबंधी खींचातानी तो रहा ही, चार देशों के पास विशेषाधिकार कर रहना भी है। आज रूस का शक्ति-शिखर बिखर चुका है। इस कारण संयुक्त राष्ट्रसंघ पर अमेरिका प्रभावी हो रहा है। सामूहिक स्तर पर किसी समस्या का समाधान कभी-कभी नजर भी आने लगता है, तो विशेषाधिकार-संपन्न रूस, अमेरिका, फ्रांस और चीन में से कोई एक अपने निहित स्वार्थों के कारण विशेषाधिकार का प्रयोग कर उसे निरस्त कर देता है। यही कारण है कि आज तक संयुक्त राष्ट्रसंघ के सामने अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जितने भी मामले आए हैं, प्राय: सभी वर्षों से लटक रहे हैं और वहां उनका कोई अंतिम समाधान मिल जाएगा, ऐसी कोई आशा या संभावना नहीं है। फिर भी तनाव कम करने में यह संस्था एक सीमा तक सहायक बनती आ रही है, इसको भी एक महत्वपूर्ण कार्य एंव उपलब्धि कहा जा सकता है। कोरिया का मामला, डच, इंडोनेशिया, अरबों-यहूदियों के संघर्ष, भारत-पाक युद्धों आदि के मामलों में युद्ध रुकवाने, कुछ राजनीतिक मामलों के हल में संयुक्त राष्ट्रसंघ के योगदान की उपेक्षा नहीं की जा सकती और प्रभावी बनाने के उपाय करने की निश्चय ही आवश्यकता है।
जहां तक उद्देश्यों और नीतियों का प्रश्न है, संयुक्त राष्ट्रसंघ की बुनियादी घोषित नीतियां निश्चित ही महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार जाति-वर्ण संबंधी भेदभाव दूरकर प्रत्येक मानव की स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा की जाएगी। आर्थिक-सामाजिक विकास में सहायक बनकर विश्व के सभी मानवों का जीवन स्तर उन्नत बनाया जाएगा। विश्व के सभी राष्ट्रों में पारस्परिक मैत्री और सदभावना को बढ़ावा दिया जाएगा। सभी प्रकार के झगड़े बातचीत से हल किए जाएंगे। पिछड़े राष्ट्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक रक्षा के उपाय किए जाएंगे, ताकि सभी की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा हो सके। निश्चय ही ये उद्देश्य महत्वपूर्ण हैं। यदि इन पर दृढ़ता से चला जा सके, तो मानवता का अपार हित होगा। दृढ़ता से चलना तभी संभव हो सकता है, जब समानता का सिद्धांत अपना लिया जाए।
उपरिकथित घोषित नीतियों, उद्देश्यों को पूरा करने के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ के कई उपविभाग भी बनाए गए हैं। उनके नाम हैं साधारण सभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक-सामाजिक-परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, संरक्षण परिषद और यूनेस्को अर्थात संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान एंव संस्कृति परिषद। प्राय:सभी राष्ट्रों को इन संस्थाओं का अध्यक्ष बनने, इनमें विश्व-हित के कार्य करने का समान अवसर प्रदान किया जाता है। यदि समय-समय पर बड़े राष्ट्रों, विशेषकर अमेरिका के निहित स्वार्थ आड़े न आंए, एंज्लो-अमेरिका गुट अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर सहज मानवीय भावना में कार्य करें, तो कोई कारण नहीं कि यह संस्था मानवहित-साधन में सफल न हो। इसी प्रकार विशेषाधिकार भी समाप्त होने चाहिए। उसके बिना बहुमत से जो निर्णय हों, उन्हीं को मान्यता मिले। उन्हें लागू करने-करवाने की कुछ सामथ्र्य भी यदि संयुक्त राष्ट्रसंघ के हाथ में आ जाए, तब तो सोने पर सुहागा ही हो जाए।
इस प्रकार विश्व की इस महान और सर्वोच्च संस्था से मानव कई प्रकार की आशांए कर सकता है। यदि अपने निर्धारित उद्देश्यों के निर्वाह में लीग आफ नेशंस की तरह संयुक्त राष्ट्रसंघ भी सफल न हो सका, तो पता नहीं युद्ध के सौदागर मानवता के भविष्य को विनाश के किस अंधे कुंए में फेंक देंगे। सभी जानते हैं कि यह संस्था सभी सदस्यों के सामथ्र्य के अनुसार अंश-दान से चलती है। अब कइयों ने तो वह देना बंद कर दिया है और कइयों ने बहुत कम। ऐसे देशों में सर्वाधिक देने वाले अमेरिका का नाम भी है। सो अर्थाभाव के कारण-सैक्रेटरी जनरल बुतरस गाली की अपील पर भी घनाभाव के कारण यह विश्व संस्था समाप्त होती लगने लगी है। इसे बचाना और इसके द्वारा ईमानदारी से निष्पक्ष रहकर कार्य करना परमावश्यक है ताकि संयुक्त राष्ट्रसंघ बना रहकर अपना घोषित लक्ष्य पा सकने में सफल हो सके।
निबंध नंबर : 02
संयुक्त राष्ट्र संघ
Sanyukt Rashtra Sangh
प्रस्तावना- विश्व के प्रायः सभी राष्ट्रों के सम्मिलित संघ को संयुक्त राष्ट्र संघ कहा जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य विश्व में होने वाली आंतकित घटनाओं एवं समस्याओं पर विचार कर उनकी समाप्ति का समाधान ढंूढ़ना है।
यू0एन0ओ0 की आवश्यकता- प्रथम विश्वयुद्व के उपरान्त अत्यन्त आतंकित भयभीत मानव ने इस प्रकार के युद्वों को हमेशा के लिए समाप्त करने हेतु ‘लीग आॅफ नेशन्स‘ एक संस्था की स्थापना की, किन्तु यह द्वितीय विश्वयुद्व के लिए उतरदायी परिस्थितियों को नियन्त्रित कर सका। अतः द्वितीय विश्वयुद्व के बाद तीसरा युद्व न हो तथा सभी राष्ट्रों के बीच मधुर एवं शान्तिपूर्ण सम्बन्ध रहें, इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति हेतू 24 अक्टूबर, 1995 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गयी।
यू0एन0ओ0 सदस्यों की संख्या- संयुक्त राष्ट्र संघ के पारम्भिक सदस्यों की संख्या 51 थी। जो अब बढ़कर 191 से भी अधिक पंहुच गई है। भारत को भी संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता प्राप्त है, और वह दूसरे कार्यो मंे सक्रिय रूप से भाग लेता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य कार्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयार्क नगर में स्थित है। इसके छह प्रमुख अंग हैं- महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद्, न्याय परिषद्, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय तथा सचिवालय।
यू0एन0ओ0 के कार्य- संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख कार्य शान्ति एवं सुरक्षा बनाये रखना है। संक्षेप में इसके उद्देश्य इस प्रकार हैं-
(1) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा व्यवस्था करना।
(2) मानव जाति के आधारों का सम्मान करना।
(3) पारस्परिक मतभेदों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाना।
(4) प्रत्येक राष्ट्र को समान समझना और समान अधिकार देना।
घोषणा पत्र के अनुच्छेद-2 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धान्तों का वर्णन है। इसके प्रमुख सिद्धान्त इस प्रकार हैं- (1) किसी देश के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
(2) पारस्परिक झगड़ों को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा सुलझाना।
(3) आवश्यकता पड़ने पर हर सम्भव सहायता देना।
(4) घोषणा पत्र में लिखित उतरदायित्वों का पालन करना।
उपसंहार- संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना जिन पावन उद्देश्यों को लेकर की गई थी, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह उन उद्देश्य में सफल नहीं हो रहा है। इसका मूल कारण यह है कि अब वहां एकमात्र अमेकिा ही सर्वेसर्वा हो गया है, जो अपनी मनमानी कर रहा है। यह तथ्य संघ के भविष्य के लिए उचित नहीं है।
निबंध नंबर : 03
संयुक्त राष्ट्र संघ
Sanyukt Rashtra Sangh
युद्ध ने सदैव विनाश का इतिहास लिखा है। युद्ध की भयंकर ज्वाला में सभ्यतायें भस्म होती हैं। सांस्कृतियाँ सिसकने लगती हैं और सत्य अपना मुँह छिपा लेता है। ललित कलाओं में सत्यं, शिवं और सौन्दर्य का लोप होता है तथा उनके स्थान पर दानवी घृणा का प्रचार ही उनका लक्ष्य बन जाता है और साहित्य प्रेम और सहानुभूति के प्रसार के स्थान पर राजनीति की मादकता के माया जाल में फँसकर जघन्य पापाचार का प्रचार करने लगता है।
विज्ञान के आधुनिक आविष्कारों ने जहाँ समय और स्थान की दूरी को समाप्त कर दिया है, वहाँ उसकी भयंकर शक्तियों ने उसे इतना शक्तिशाली बना दिया है कि उसकी सहायता से विश्व का विनाश कुछ क्षणों में किया जा सकता है। हीरोशिमा और नागासाकी की धराशायी अट्टालिकाएँ, स्त्रियों और बच्चों के विकृत रूप, विधुर एवं विधवाओं के करुण आँसू, विज्ञान की ध्वंसकारी शक्ति का दृश्य उपस्थित करते हैं। नर-संहार और विध्वंस की बीभत्सता कल्पनानीत हो गई है। दो परमाणु बम्बों ने जापान के दो सुन्दर नगरी को समाप्त कर दिया। एबीसीनिया में इटली ने विषैली गैसों का प्रयोग करके दिखा दिया कि पहाड़ों की कन्दराओं में मानव विज्ञान की दानवता से सुरक्षित नहीं रह सकता। यही कारण है वह आज का मानव युद्ध की इस विभीषिका से बचना चाहता है। अतः आज भी वे शान्ति के उपायों की खोज में है।
सन 1939 में ससार द्वितीय महायुद्ध की विभीषिका से काँप गया। युद्ध की समाप्ति पर युद्ध के विरुद्ध पुनः प्रतिक्रिया हुई और विश्व के विचारकों ने पुनः शान्ति के लिये दूसरा दृढ चरण चरण आगे बढ़ाया। सान फ्रासिस्को में विश्व के 50 राष्ट्रों ने मिलकर 26 जून 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की और पुरातन राष्ट्र संघ की कमियाँ रन से दूर करने का प्रयास किया। सभी देशों ने मिलकर युद्ध की निन्दा की और समानता के सिद्धान्त को स्वीकार किया। संघ के प्रथम अधिवेशन में ही प्रजातन न प्रणाली को सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली स्वीकार किया गया।
इन समस्त बातों को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने समक्ष चतु: सूत्रीय कार्यक्रम रखा :
(1) जाति वर्ण, आदि के भेद-भाव को दूर करने, प्रत्येक मानव को उसके मानवीय अधिकार एवं स्वाधीनता दिलाने का प्रयास किया जाएगा।
(2) मानव जीवन के स्तर को ऊँचा किया जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति को जीविका के साधन उपलब्ध कराकर उसके लिये आर्थिक और सामाजिक विकास सम्भव बनाया जाएगा।
(3) विश्व के राष्ट्रों में परस्पर मैत्री और सद्भाव बढ़ाया जाएगा। उनके आपसी झगड़ों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने का प्रयत्न किया जाएगा।
(4) पिछड़े हुए राष्ट्रों को संरक्षण में लेकर उनमें स्वास्थ्य शिक्षा और संस्कृति की उन्नति की जायेगी ताकि वे स्वाधीनता के योग्य हो सकें।
उक्त समस्त कार्यक्रम को चलाने के लिये छः विभिन्न विभाग बनाये गये:
(1) साधारण सभा
(2) सुरक्षा परिषद्
(3) आर्थिक और सामाजिक परिषद्
(4) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय
(5) संरक्षण परिषद्
(6) संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति परिषद्
संयुक्त राष्ट्र संघ ने गत वर्षों में अपनी स्थापना के उपरान्त अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये हैं। उत्तर कोरिया के बंधन से दक्षिण कोरिया को मुक्त कराया। स्वयं राष्ट्र संघ ने कई देशों की सेना बनाकर उत्तर कोरिया के आक्रमणों का मुकाबला किया। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ही डच, इण्डोनेशिया, अरब, यहूदियों तथा मिल झगड़ों का बड़ी सफलतापूर्वक निर्णय किया गया। अफ्रीका में होने वाले भारतीयों के प्रति दुव्यवहार राष्ट्र संघ ने ही समाप्त कराया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि काश्मीर की समस्या को सुरक्षा परिषद हल नहीं कर पाया। द्वितीय भारत पाक युद्ध को भी संयुक्त राष्ट्र सर नहीं हल कर पाया। भारत पर चीन के आक्रमण को भी संयुक्त राष्ट्र संघ नहीं रोक सक और चीन के द्वारा छीनी गई भारतीय भूमि को संयुक्त राष्ट्र संघ वापिस नहीं दिला पार क्यों कि चीन उस समय राष्ट्र संघ का सदस्य नहीं था।
इतना सब होने पर भी इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि संयुक्त राष्ट्र संघ निष्पक्षता पूर्ण कार्य करता रहा, तो विश्व के प्रत्येक कोने में इस धरा पर ही मानव अपने कलियत स्वर्ग की सृष्टि कर लेगा। जहाँ प्रेम, सहयोग एवं सहानुभूति की त्रिवेणी लहरकर उसके हृदय में सौख्य का संचार कर देगी। विज्ञान के विकास ने मानव के लिए इस धरा को छोटा कर दिया और इस ब्रह्माण्ड के अन्य ग्रहों को भी अपने अधिकार की सीमा में बाँधन के लिए कटिबद्ध है। खेद तो केवल यह है कि आज उसका हृदय छोटा होता जा रहा है। इस समय समस्त विश्व दो गुटों में बँटा हुआ है। एक है पूँजीवादी और दूसरा साम्यवादी। एक का नेतृत्व अमेरिका कर रहा है और दूसरे का नेतृत्व रूस कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ में इन दोनों गुटों का संघर्ष चलता है। संयुक्त राष्ट्र में देशों के प्रतिनिधि जनसंख्या के आधार पर न लिए जाकर प्रत्येक देश से एक प्रतिनिधि ही लिया जाता है। परिणामतः आज अमेरिका-समर्थकों देशों की संख्या अधिक है और वह अपने विशेषाधिकार के बल पर कभी गलत बात को भी मनवा लेता है। अतः इस समय यह नितान्त आवश्यक है कि गुटबन्दी समाप्त हो; अन्यथा किसी भी दिन गत-राष्ट्र संघ की भाँति यह भी इतिहास की स्मृति ही बनकर रह जायेगा।
किन्तु जो भी हो, संयुक्त राष्ट्र संघ ने अब तक विश्व को युद्ध की विभीषिकाओं से बचाकर स्तुत्य कार्य किया है और करता रहेगा। भले ही कुछ लोग युद्ध को जीवन का आवश्यक अंग मानकर मत्स्य न्याय के आधार पर विश्व में तृतीय महायुद्ध का स्वप्न देखते हों। किन्तु ऐसा नहीं। मानव जीवन जब तक पशुत्व की कोटि में रहता है, तभी तक वह मत्स्य न्याय द्वारा प्रचलित होता है। आज का मानव विवेकशील प्राणी है। अनुभव। से प्राप्त ज्ञान ही उसका विशेष गुण है। अतः आज उससे यह आशा नहीं की जानी चाहिये कि वह युद्ध के भीषण परिणाम देखने के उपरान्त भी युद्ध की आकांक्षा कर सकता है। अतः आशा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ मानव हित सम्पादन में निश्चय रूप से सहायक सिद्ध होगा।
निबंध नंबर : 04
संयुक्त राष्ट्र संघ
United Nations Organizations
संघ विश्व के किसी-न-किसी क्षेत्र में हर समय संघर्ष का वातावरण तैयार होता रहता है। कभी मध्य-पूर्व के देश युद्धस्थल बन जाते हैं, तो कभी सूदूर-पूर्व के देशों पर युद्ध के बादल मंडराने लगते हैं। कभी-कभी तो परिस्थितियां इतनी बिगड जाती हैं कि छोटी-छोटी लड़ाइयों के विशाल युद्ध में परिवर्तित होते देर नहीं लगती। ऐसे ही संघर्षों और विवादों की गुत्थियों को सुलझाने के उद्देश्य से द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई।
संयुक्त राष्ट्र संघ से पहले इस प्रकार का जो संगठन था, उसका नाम था लीग ऑफ नेशन्स, जिसका गठन प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर किया गया था, किन्तु अनेकानेक कारणों से वह संगठन विश्व में शान्ति स्थापित कर पाने में असफल रहा। उनमें से एक प्रमुख कारण यह था कि संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसी कुछ बड़ी शक्तियों ने इस संगठन को छोड़ दिया था और लीग ऑफ नेशन्स का इतना प्रभाव नहीं रह गया था कि युद्ध जैसी परिस्थितियों में इन राष्ट्रों पर नियंत्रण रख सके। हिटलर की शक्ति दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी और वह सम्पूर्ण यूरोप की शांति के लिये खतरनाक बनता जा रहा था। किन्तु मित्र राष्ट्रों के सम्मिलित और अनथक प्रयत्नों के फलस्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर की हार हुई। और तभी, द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के ठीक बाद, सन् 1945 में सान फ्रांसिस्को नगर में आयोजित लगभग तीन दर्जन देशों के एक सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र की सामूहिक स्वीकृति के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई। वर्तमान समय में, विश्व में शान्ति बनाए रखने की दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र संघ अत्यधिक समर्थ है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीनस्थ कई अन्य विभाग और उप-विभाग भी हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत हैं। इनमें सुरक्षा परिषद, जनरल असेम्बली, ट्रस्टीशिप कौंसिल, सचिवालय तथा अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की गणना संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुखतम विभागों में की जाती है। उसके अधीनस्थ विश्व स्तर के कुछ अन्य संगठन भी हैं, जिनमें विश्व खाद्य संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, आर्थिक तथा सामाजिक कौंसिल और यूनेस्को के नाम प्रमुख हैं। ये विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के सर्वाधिक प्रभावशाली अधिकारों में वीटो पावर (प्रतिषेधाधिकार) है। यह परिषद के पांच स्थायी सदस्यों – रूस, ग्रेट ब्रिटेन, चीन, फ्रांस व संयुक्त राज्य अमेरिका को स्थायी तौर से प्राप्त है और उनके हितों की रक्षा करता है। सुरक्षा परिषद् में कुछ अस्थायी सदस्य भी होते हैं, जिनका चुनाव दो साल की अवधि के लिये किया जाता है।
सुरक्षा परिषद् का सत्र कभी समाप्त नहीं होता, हर समय चलता रहता है और संयुक्त राष्ट्र संघ का कोई भी सदस्य शान्ति भंग-सम्बन्धी अथवा अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दे परिषद् के सामने प्रस्तुत कर सकता है। सुरक्षा परिषद के पास यह अधिकार सुरक्षित रहता है कि वह आक्रान्ता के विरुद्ध तत्काल कार्यवाही करे। यह कार्यवाही आर्थिक बहिष्कार के रूप में हो सकती है या खतरे का मकाबला करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सेनाओं को भी भेजा जा सकता है। और इस प्रकार हम देखते हैं कि लीग ऑफ नेशन्स की तुलना में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की शक्तियां अनेक और असीम हैं।
जनरल असेम्बली का रूप कुछ-कुछ विश्व संसद जैसा है। वर्ष 1996 के प्रारम्भ में इसकी सदस्य संख्या 185 थी। विश्व के प्रत्येक छोटे-बड़े सदस्य देश में से प्रत्येक को केवल एक मत देने का ही अधिकार प्राप्त है।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय हेग में है। इसके अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के ऐसे मामलों का निर्णय किया जाता है, जिनमें किसी सदस्य राष्ट्र द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय कानून की अवहेलना की गई हो। भारत के कच्छ विवाद का निबटारा तथा इसी प्रकार के अन्य अनेक सीमा विवादों के फैसले इसी न्यायालय द्वारा किए गए।
इसी प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ की अन्य शाखाएं भी विश्व मानव समुदाय की बेहतरी के लिए अपने-अपने क्षेत्र में कार्यरत हैं। अब तक ईरान, लेबनान, इंडोनेशिया, सीरिया आदि राष्ट्रों के विवाद संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सुलझाए जा चुके हैं। ट्राइस्टे समस्या व स्वेज नहर सम्बन्धी विवाद का निबटारा भी संयुक्त राष्ट्र संघ के नेतृत्व में हुआ था। दक्षिण अफ्रीका की अश्वेत जातियों के स्वाधीनता आन्दोलन में भी संयुक्त राष्ट्र संघ ने बहुत सहायता की है। इनमें से कुछ राष्ट्रों को स्वतंत्रता भी प्राप्त हुई है।
इस प्रकार एक ओर जबकि कुछ राष्ट्र अणु बम बनाने में संलग्न हैं, संयुक्त राष्ट्र संघ सम्पूर्ण विश्व में शांति स्थापना के लिये प्रयत्नशील है। निस्संदेह, आए दिन होने वाले अणु परीक्षण विश्व शान्ति के लिये बहुत बड़ा खतरा बने हुए हैं।
विश्व की अति महाशक्तियों को निकट से निकटतर लाने और उनके बीच के तनावों को समाप्त करने के लिये भी संयुक्त राष्ट्र संघ लगातार प्रयत्न कर रहा है। विश्व में शान्ति और समृद्धि का कोई भी आधार यदि इस समय है तो वह संयुक्त राष्ट्र संघ ही है। उसी के प्रयत्नों का यह परिणाम है कि सन् 1945 के बाद से अब तक कोई अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध नहीं हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर अति महाशक्तियां अपनी समस्याओं पर परस्पर विचार करती हैं और इस प्रकार वह एक सफल विश्व संसद की भूमिका भी निभा रहा है।
गरीब व निर्धन राष्ट्रों को उनके आर्थिक क्षेत्र में भी संयुक्त राष्ट्र संघ की सेवाएं सुलभ हैं। उन राष्ट्रों को, जो कष्ट में फंसे हों, संयुक्त राष्ट्र संघ आर्थिक सहायता प्रदान करता है तथा स्वाधीनता के लिय प्रयत्नशील देशों को स्वाधीनता दिलाने का प्रयत्न भी कर रहा है। उनमें से अनेकों देश अब स्वतन्त्र हो गए हैं। निस्संदेह विश्व शांति का एकमात्र साधन इस समय संयुक्त राष्ट्र संघ ही है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अक्टूबर 1995 में अपनी पचासवीं वर्षगांठ मनाई। इस वर्षगांठ के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रथम पचास वर्षीय उपलब्धियों पर बल दिया गया था।