Sukh-Shanti “सुख-शांति” Hindi Essay, Nibandh 500 Words for Class 10, 12 Students.
सुख-शांति
Sukh-Shanti
प्राचीन काल से वर्तमान समय तक मनुष्य पहाड़ों, जंगलों, आश्रमों, क्लबों तथा सिनेमा घरों में सुख-शांति को खोजता रहा है; किन्तु सुख-शांति कहाँ है? रोजमर्रा की नीरस और ऊबाऊ जिन्दगी से कुछ क्षणों के लिए भाग जाने को मुश्किल से ही सुख-शांति कहा जा सकता है। हमारी जिन्दगी में विलास का एक दौर हो सकता है किन्तु विलासों की भी अपनी टीस होती है, जो दर्द से कम नहीं होती। सुख-शांति दिमाग की चिरस्थायी अवस्था होती है, जबकि विलास क्षणिक होता है।
यदि हम अपने-आप से थोड़ा बाहर आकर दुख भोग रही मानवजाति की स्थिति में थोड़ा सुधार लाने के लिए कुछ करें, तो ही हम अपना जीवन सफल कर सकते हैं। सुख-शांति आत्मत्याग के द्वारा ही आती है। बिड़ला, डालमियाँ और आगा खान अंबानी बंधुओं जैसे व्यक्तियों की भी अपनी खुद की मानसिक और स्वास्थ्य की समस्याएँ हैं। अधिकांश मामलों में अमीरी सुख-शांति की जगह चिन्ता का कारण बन जाती है। बाइबल के अनुसार, “गरीब सौभाग्यशाली होते हैं क्योंकि उनका स्वर्ग का राज्य है।” अमीर व्यक्ति जो कार में सफर करते हैं, उन्हें गठिया रोग हो सकता है, वह दम्भ भरा, कामुक और घमण्डी हो सकता है। वह जीवन के स्रोत से अपने आपको अलग रखता है और एक असामाजिक जीव बन जाता है। फिर उसके लिए गरीबी का काल्पनिक डर; बीमारी और मृत्यु का कोई महत्त्व नहीं रहता है। दुनिया में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जहाँ गरीबी को मनुष्य की आत्मा के परम सुख के लिए साधन बनाया जाता है।
संक्षेप में सुख-शांति, जिन्दगी की काम चलाऊ स्वीकृति, जैसे जिन्दगी की सच्चाई से समझौता का ही परिणाम है। गरीबी से अक्सर हममें जोश जागता है और हम बेहतर काम करते हैं। यह हमारे व्यक्तित्व का रुख सामने लाती है।
प्रसन्न रहने का एकमात्र तरीका यह है कि हम शरीर और दिमाग को हर हालत में प्रसन्न रखें। वैसे व्यक्ति जो हमेशा शिकायत करते या याचिका देते रहते हैं या स्वयं की आत्मदया या दूसरों के विरुद्ध मन में द्वेष रखते हैं (कारण चाहे कुछ भी हो) वे सुख-शांति के द्वार तक कभी-कभी ही पहुँच पाते हैं।
प्रत्येक सुबह बिस्तर से उठते ही हमें जीवन को एक सुनहरे अवसर के रूप में लेना चाहिए। इसे कुछ सिद्धांतों के अनुसार ही जीना चाहिए। हमें कुछ मानवीय आदर्शों को अपनाना चाहिए तभी हम शीघ्र ही जिन्दगी को जीने योग्य तथा स्नेहमय पायेंगे। हमारी इन चीजों पर पकड़ जैसे ही ढीली हो जायेगी, जिन्दगी की सुख-शान्ति गायब हो जायेगी तथा यह यन्त्रवत्, उद्देश्यहीन तथा लक्ष्यहीन हो जायेगी। हमें अपने आपको ईश्वर की इच्छा का उपयुक्त साधन बनाने के लिए भरपूर प्रयास करना चाहिए। जार्ज बर्नाड शॉ ने कहा था कि इस धारणा से कि इस संसार में हमारी आवश्यकता नहीं थी, हमारी गरीबी अधिक बढ़ती है।
यदि हम अपने आपको उच्च विचारों तथा महान उद्देश्यों से जोड़ें तथा अपनी जिन्दगी में उन्हें यथार्थ बनाने के लिए कार्य करें तो हमें बेकार समझ कर कूड़े के ढेर में फेंका नहीं जायेगा। जिन्दगी को एक ही दिनचर्या में जीने से हमारी लालसाएँ और आकांक्षाएँ समाप्त हो जाती हैं। जिन्दगी में सुख-शान्ति लाने के लिए हमें नकारात्मक मनोवृत्ति की जगह सकारात्मक मनोवृत्ति उत्पन्न करनी होगी। हमें प्रतिदिन के छोटे कार्यों जैसे नृत्य, स्केटिंग, गाना गाने, बातचीत करने तथा भोजन करने में अपने पूर्ण अस्तित्व के साथ सच्चे हृदय तथा आत्मा के साथ कार्य करना चाहिए।