Pradushit hote Jal Strot “प्रदूषित होते जल स्रोत” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 9, 10, 12 Students.
प्रदूषित होते जल स्रोत
वेदों में कहा गया है – जल ही जीवन है। जल जीवन की अनिवार्य जरूरत कसके बिना जीवन सम्भव नहीं है। जल स्रोत वे साधन हैं, जिनसे जीवधारियों को जल प्राप्त होता है। कुओं, नदी, तालाब, झरना, समुद्र आदि जल के स्रोत हैं।
जनसंख्या की वृद्धि, सघनता और आधुनिक जीवन शैली ने हमारे जल स्रोतों को प्रदूषित कर दिया है। इस कारण मनुष्य सहित सभी जीव-जंतुओं के समक्ष एक गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
पृथ्वी पर यद्यपि तीन चौथाई जल है, परंतु पीने योग्य जल की मात्रा बहुत कम है। अतः जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। इस संकट से उबरने और जल स्त्रोतों को प्रदूषण से बचाने के उपाय करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य हो गया है।
जल स्रोतों के प्रदूषित होने के अनेक कारण हैं। गाँवों की अपेक्षा शहरों में जनसंख्या अधिक सघन है। शहरों में घरेलू अपशिष्ट पदार्थ नाले-नालियों से बहकर तालाबों, नदियों जैसे जल स्रोतों में मिल जाते हैं।
कल-कारखानों, उद्योगों से निकलने वाले जहरीले रसायन, हानिकारक धातु तत्व तथा गंदगी भी बहाकर जल स्रोतों में मिला दी जाती हैं। इसी तरह खेतों में उपयोग किये जा रहे रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक वर्षा के पानी में घुलकर बहते हुए जल स्रोतों में जाकर जल को हानिकारक बनाते हैं।
नदियों, तालाबों, कुओं आदि पर कपड़े धोना, पशुओं को नहलाना या उसमें अन्य चीजें धोने एवं साफ करने से भी जल में गंदगी मिलती रहती है। इस तरह जल प्रदूषित होता रहता है। इसी जल का उपयोग मनुष्य सहित सभी जीवजंतु करते हैं।
गंदगी, हानिकारक विषैले रसायनों और पानी में मिले सड़े-गले पदार्थों के कारण जल विषैला ही नहीं, जीवाणुओं और सूक्ष्म रोगाणुओं से संक्रमित भी हो जाता है। इसी कारण जल स्रोतों में रहने वाले जलचरों का जीवन दूभर हो जाता है। इनकी संख्या में भी कमी आती है।
दूषित जल के प्रयोग से अनेक तरह के रोगों के फैलने की सम्भावना बढ़ जाती है।
फोड़े-फुसियाँ, पीलिया. आँव-दस्त. हैजा, मोतीझिरा जैसे घातक रोग जल प्रदूषण के कारण ही फैलते हैं। अनेक नये रोगों के फैलने की सम्भावना भी भविष्य में बनी रहती है। जल में घुली आक्सीजन कार्बनिक पदार्थों का शोधन करती रहती है।
लेकिन जब जहरीले हानिकारक दषित लवण-पदार्थ जल में मिलते हैं, तो जल के तापमान में वृद्धि होती है और जल में घुली आक्सीजन की मात्रा में कमी आ जाती है। इस कारण जल में कार्बनिक पदार्थों की सांद्रता बढ़ती जाती है और जलीय जीवों का जीवन संकट में पड़ जाता है।
उपर्युक्त कारणों से गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों का जल अनेक स्थानों पर पीने योग्य नहीं रहा है। यदि जल स्रोतों के प्रदूषण को रोकने और नियंत्रित करने के उपाय शीघ्र नहीं किये गये, तो भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
जल प्रदूषण से निपटने के लिये जरूरी है – सभी लोगों में जागरूकता। कारखाने जल स्त्रोतों से दूर लगाये जायें तथा इनके द्वारा त्यागे गये दूषित पदार्थों को जल में मिलने से रोका जाये। शहरों के नालों को भी कृत्रिम तालाबों में इकट्ठा कर दूषित जल का उपचार किया जावे। जल के शुद्धिकरण के सभी उपाय किये जायें।
पेय जल के स्रोतों के आसपास कपड़े न धोये जायें, जल स्रोतों में पशुओं और मनुष्यों के नहाने-धोने पर प्रतिबंध लगाया जाये। खेतों से बहकर नदियों में मिलने वाले पानी पर रोक लगाई जाये।
जल संरक्षण, संवर्धन और उसको प्रदूषित होने से बचाना आज मनुष्य का प्राथमिक कर्तव्य होना चाहिये। इस हेतु जागरूकता और चेतना फैलाना हम सबका दायित्व है। यदि समय रहते हम न चेते, तो इस पृथ्वी पर जीवन का नामोनिशान मिट जायेगा।