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Pradarshni Ka Drishya “प्रदर्शनी का दृश्य” Hindi Essay 600 Words for Class 10, 12.

प्रदर्शनी का दृश्य

Pradarshni Ka Drishya

भारत विभिन्न संस्कृतियों का देश है। इस देश में प्रदर्शनी आयोजित करने का विचार हमारे लिए कोई नया नहीं बल्कि पुराने समय से आयोजित किया जाने वाला एक विशेष कार्य रहा है। प्राचीनकाल में भी देश में हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए राजाओं और शहंशाहों द्वारा मीना बाजारों का आयोजन किया जाता था। भारत में ग्रामीण मेलों और धार्मिक उत्सवों में छोटी-छोटी प्रदर्शनियाँ लगाना सामान्य बात थी। बड़े पैमाने पर पहली प्रदर्शनी 1851 में लन्दन में आयोजित की गई थी।

ग्रामीण भारत की कलाओं और हस्तशिल्पों को पुनर्जीवित करने और उन्हें प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से केन्द्र की डॉक्यूमेंटेशन टीम प्रत्येक वर्ष देश के विभिन्न भागों में कार्यक्रम आयोजित करती है। अपनी कला एवं संस्कृति का विस्तार विदेशों में करने हेतु भारत सरकार ने ‘भारत महोत्सव’ का आयोजन किया।

कुछ दिनों पूर्व दिल्ली में आयोजित प्रदर्शनी में एक बड़े क्षेत्र को इस्पात की ऊँची-ऊँची चादरों से घेर लिया गया और एक बड़ा द्वार बना दिया गया। द्वार को सुन्दर ढंग से सजाया गया था। इस घेरे के अन्दर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के प्रदर्शन के लिए बहुत से स्टॉल बनाये गए। प्रदर्शनी में जाने के लिए एक रुपये का टिकट लेना पड़ता था। यह व्यवस्था इतनी भव्य थी कि भारत के ही नहीं अपितु अन्य कई राष्ट्रों के लोगों ने भी इसमें भाग लिया।

पहले सप्ताह में दर्शकों की भीड़ बहुत अधिक थी। दूसरे सप्ताह के शुरू में मैं अपने एक मित्र के साथ, प्रदर्शनी देखने गया। हमने टिकटें खरीदी और अन्दर चले गए। अन्दर बहुत चहल-पहल थी। स्त्रियाँ, पुरुष और बच्चे इधर-उधर घूम-फिर रहे थे।

प्रदर्शित वस्तुएँ अलग-अलग भागों में व्यवस्थित क्रम में रखी गई। एक भाग में हस्तशिल्प के नमूने और दूसरे में चीनी मिट्टी के बर्तन आदि रखे थे। तीसरे भाग में खिलौने और सजावट की वस्तुएँ रखी थी। चौथे भाग में सुन्दर-सुन्दर नमूनों और बनावटों के वस्त्र रखे थे। उनकी बनावट की बारीकी और परिसज्जा की उत्कर्षता ने हमें विस्मित कर दिया। पाँचवें भाग में बिजली की वस्तुएँ थीं। छठे भाग में होजरी का सामान था। सातवें भाग में सिलाई की मशीनें थी। आठवें भाग में कृषि के उपकरण, औषधियाँ, हाथ से बुने कपड़े और नकली फूल तथा फल थे।

इन सबके अलावा एक भाग में परमाणु रिएक्टर का एक नमूना रखा था जिसे लोग बड़े ध्यान से देख रहे थे। गाइड ने हमें रिएक्टर के कार्य के विषय में बड़ी अच्छी प्रकार से समझाया। उसने राजस्थान स्थित पोखरन में भारत द्वारा किए गए परमाणु विस्फोट के बारे में सविस्तार बताया। भारत ने वास्तव में बड़ी तेजी से प्रगति की है। हमने कला-दीर्घा को भी देखा। इसमें उच्चकोटि के कलाकारों के चित्र रखे थे जो जीवन्त प्रतीत होते थे। प्राकृतिक दृश्यों के कई चित्र बहुत सुन्दर थे।

मनोरंजक बगीचे में तो दर्शकों की भीड़ देखते ही बनती थी। वहाँ हमने सर्कस और जादुई लालटेन के तमाशे देखे। हम लगभग 10 बजे घर वापस पहुँचे। वापस आते समय हमने सर्कस वालों के शानदार कारनामों की प्रशंसा की।

अब भारत के हर बड़े शहर में पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। इसमें देश-विदेश के प्रकाशकों की पुस्तकें उपलब्ध होती हैं। यहाँ जाकर सभी वर्ग के लोग लाभान्वित होते हैं।

राष्ट्रीय आधुनिक कला वीथि सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के तहत समय-समय पर संग्रह की प्रदर्शनियां भी आयोजित करता है। इस कला वीथि का मूल उद्देश्य लोगों में आधुनिक कला के कार्यों के प्रति बेहतर समझ और अनुभूति विकसित करना है। प्रदर्शनियों पर देश का बहुत पैसा खर्च होता है, परन्तु उनके लाभ अनेक हैं। राष्ट्र की प्रगति से नागरिकों और आलोचकों को सन्तोष मिलता है। यह तकनीकी जानकारी और शिक्षा के लिए उपयोगी है। इससे बहुत-से लोगों को व्यापार के अवसर प्राप्त होते हैं। प्रदर्शनियों का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इससे विभिन्न नवीन खोजों तथा अनुसंधानों का पता चलता है।

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