Hindi Moral Story, Essay “Jhooth Ki Kamai” “झूठ की कमाई” of “Hazrat Abu Bakr” for students of Class 8, 9, 10, 12.
झूठ की कमाई
Jhooth Ki Kamai
हजरत अबूबक्र मुसलमानों के पहले खलीफा थे। हजरत मुहम्मद साहब के बाद खलीफा के रूप में उन्हें ही चुना गया था। एक बार उनके एक गुलाम ने, जो कि उनका शिष्य था, उन्हें खाने के लिए मिठाई दी। उन्होंने जब मिठाई खायी तो उन्हें वह बड़ी ही स्वादिष्ट लगी। इन्होंने गुलाम से पूछा कि उसने इतनी बढ़िया मिठाई कहाँ से पायी? गुलाम ने बताया कि उसे उसके एक दोस्त ने दी थी।
हजरत ने पूछा, “क्या तुमने कभी उसका कोई काम किया है?
“काम तो नहीं, मगर बहुत दिनों पहले मैं लोगों का हाथ देखकर उनका भाग्य बताया करता था। तभी मैंने इस दोस्त का भी भविष्य बताया था।”
“क्या तुम्हें ज्योतिष-शास्त्र का ज्ञान है? क्या तुम्हारी बातें सच्ची निकली थीं?”
“जी नहीं, मैं तो पैसे कमाने के लिए झूठ-मूठ कुछ भी बता देता था। मगर मुझे उसका ज्ञान होता, तो खुद का ही भविष्य नहीं जान पाता?” यह सुनते ही अबूबक्र को बड़ा ही दुःख हुआ, बोले, “यानी तुम्हारे दोस्त ने तुम्हें जो इतनी बढ़िया मिठाई दी है, वह तुम्हारे द्वारा झूठ बोलने के एहसान के ऐवज में दी और तुमने मुझे वह खिला दी है!” उन्होंने पानी पीकर मुँह में उँगलियाँ डालकर वह मिठाई बाहर निकाली। यह देख गुलाम को बड़ा ही पश्चात्ताप हुआ। तब वे बोले, “आज से ध्यान रखना, न तो कभी झूठ बोलना और न किसी की झूठी कमाई खाना, या खिलाना ।”