Hindi Moral Story, Essay “दया धर्म का मूल है” “Daya Dharam ka Mool hai” of “Sant Rangdas” for students of Class 8, 9, 10, 12.
दया धर्म का मूल है
Daya Dharam ka Mool hai
पिता ने बालक को पैसे देकर बाजार से फल लाने को कहा। उसे रास्ते में कुछ लोग ऐसे दिखाई दिए, जिनके बदन पर पूरे वस्त्र भी न थे और जिनके चेहरों से साफ दिखाई देता था कि उन्हें बहुत दिनों से भोजन नसीब नहीं हुआ है। बालक का हृदय पसीज उठा और उसने पैसे बाँट डाले। इससे उसे बड़ा ही आत्मसंतोष हुआ ।
वापस आने पर पिता ने फलों के बारे में पूछा। उसने जवाब दिया,
“पिताजी, आज तो मैं अमरफल लाया हूँ।”
“अच्छा? दिखा तो भला ।” पिता बोले । “बात यह है, पिताजी।” बालक बोला, “रास्ते में मुझे कुछ बहुत ही गरीब लोग दिखाई दिए, जिनके शरीर पर पहनने लायक वस्त्र भी न थे। उन्हें देख मुझे दया आई और मैंने उन्हें वे पैसे दे डाले। अगर मैं अपने लिए फल लाया होता, तो उनकी मिठास दो-तीन दिनों तक ही रही होती। किन्तु उससे मुझे ‘अमरफल’ प्राप्त न हुए होते।” पिता ने सुना, तो बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्होंने बेटे की पीठ थपथपायी। यही बालक आगे चलकर ‘संत रंगदास’ हो गया।