Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Vriksharopan”, “वृक्षारोपण” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
वृक्षारोपण
प्रस्तावना
वृक्षों को लगाना, उनका पालन और पोषण करना हमारी संस्कृति और सभ्यता का अभिन्न हिस्सा रहा है। प्राचीन काल से ही हमारे यहाँ वृक्षों के महत्व को स्वीकारते हुए उन्हें विभिन्न धार्मिक संस्कारों में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया
वृक्षों की महिमा
भारत में पीपल को त्रिदेव के रूप में मानते हैं। नीम के पेड़ में शीतला माता तथा अन्य रोग निवारक देवी-देवताओं का वास माना जाता है।
मीन पत्ती वाला बेल या बिल्व वृक्ष भगवान शिव का प्रिय वक्ष समझा जाता है। देश के बंदनवार भी सजाये जाते हैं। सकळ भागों में आम की भी पूजा होती है। विवाहादि शुभ अवसरों पर इसके पत्तों तुलसी की पूजा तो हिंदुओं के घर-घर में आवश्यक रूप से होती है। इस प्रकार सेपेड पौधों की पूजा प्राचीन काल से होती आ रही है, ताकि उनका संवर्धन, संरक्षण होता रहे। इस तरह धार्मिक प्रथाओं में वृक्ष-पूजा को महत्व देकर अनेक वृक्षों को अनावश्यक हत्या से बचाये जाने का उपाय जनमानस में स्थापित किया गया।
वृक्षों से लाभ
वृक्ष त्याग एवं सहिष्णुता के प्रतीक हैं। वृक्ष प्राणियों को प्राणवायु, छाया, आश्रय, भोजन, फल-फूल, औषधि एवं काष्ठ प्रदान करते हैं। इस तरह वृक्ष परोपकार के लिए जीते हैं। ये महान हैं, जो धूप-ताप, आँधी और वर्षा को सहन कर भी हमारी रक्षा करते हैं।
वन जलवायु को स्थिर बनाये रखते हैं और तापक्रम को बढ़ने से रोकते हैं। वृक्ष जड़ों के द्वारा मिट्टी को मजबूती से बाँधे रहते हैं। भूमि में जल की मात्रा और वायु मंडल में नमी का संतुलन बनाये रखने में ये मदद करते हैं। वृक्ष वायु का शुद्ध करते हैं। ये बादलों को आकर्षित कर वर्षा कराने में सहायक हैं।
वृक्ष और पर्यावरण
पर्यावरण को संतुलित बनाने में वृक्षों की अहम् भूमिका होती है। आज पूरा विश्व पर्यावरण के असुंतलन की समस्या से जूझ रहा है। मनुष्य के स्वार्थ ने वनों को बर्बरता से काटा है।
उद्योगों के लिये कच्चे माल के रूप में वन सम्पदा का निर्दयतापूर्वक उपयोग हो रहा है। वनों के इस तरह विनाश ने संसार के सामने अनेक समस्यायें खड़ी कर दी हैं। वनों के ह्रास से हमारे देश की जलवायु गर्म हो रही है। वृक्षों के न होने से भूमि का कटाव तेजी से होता है और भूमि की उर्वरता कम हो जाती है। वनों की कमी से कहीं अल्प-वर्षा तो कहीं अति वर्षा की स्थिति निर्मित हो जाती है।
वनों के कम होने से भूमि के अंदर स्थित जल-स्रोतों का स्तर कम हो रहा है; रेगिस्तानों का तेजी से विस्तार हो रहा है। वायु में प्रदूषित गैसों में वृद्धि हो रही है और अनेक वन्य जीव-जन्तुओं की समूची जातियों का सफाया हो रहा है। इससे पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए ही संकट पैदा हो रहा है।
वन महोत्सव
वृक्षों के महत्व को देखते हुए ही प्रति वर्ष जुलाई मास में वन महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर सरकार और स्वयं सेवी संगठनों द्वारा वृक्षारोपण के लिए प्रेरणा और सहायता प्रदान की जाती है।
उपसंहार
हम सभी प्रति वर्ष एक-एक वक्ष का रोपण कर उसका संवर्धन और संरक्षण करें, यही आज की महती आवश्यकता है। इससे पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणियों का जीवन सरक्षित रहने में बहुत मदद मिल सकेगी।
वृक्षारोपण
Vriksharopan
वृक्ष हमारे आश्रयदाता हैं। वे हमें दैहिक, दैविक व भौतिक तीनों तापों से मुक्ति दिलाने में सहायक हैं। हमारे प्राचीन धर्म-ग्रंथ और विज्ञान दोनों ही वृक्षों के विभिन्न प्रयोगों का गुणगान करते हैं। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार तो वृक्षों को दैवतुल्य समझना चाहिए। गीता में श्रीकृष्ण ने तो कहा भी है कि मैं वृक्षों में पीपल हैं। जिसका प्रमाण हमें मिलता है महात्मा बुद्ध से जिन्हें ज्ञान भी पीपल के वृक्ष ने नीचे से ही प्राप्त हुआ।
वृक्ष हर रूप में मानव की सहायता करते हैं। मानव ही है जो दानव की तरह वृक्षारोपण तो नहीं करेगा पर वृक्षाशोध जर करेगा। हर रूप में वृक्ष हमारी सहायता करते हैं। अगर हम देखें तो क वृक्ष की छाल एवं पत्तियों का प्रयोग आजकल प्रायः हर औषधियाँ बनाने के रूप में किया जा रहा है।
नीम के वृक्ष को ही ले लीजिए, इसका रस, गोंद, पत्ते, फल, बीज, तना सभी उपयोग में आता है। इसी तरह के कई और भी वृक्ष हैं जो विभिन्न तरह से मानव को मदद करते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं कि वृक्ष द्वारा ही छोड़ी गई हवा हम लेकर जीते हैं, फिर भी मनुष्य का स्तर कितना गिर चुका है जो जीवन देने वाले का ही जीवन ले लेता है।
वृक्ष अगर हम से कुछ लेता है तो उसक वा वह हमें बहुत कुछ देकर उतार भी देता है, पर हम मूर्ख मानव समझ नहीं पाते | वेदों, पुराणों, धार्मिक ग्रंथों में ऐसे कई उल्लेख दिए गए हैं जिनके द्वारा हमें वृक्षों के संबंध में कई जानकारियाँ मिलती हैं, पर हम समझना नहीं चाहते और उनका नाश कर देते हैं।
यह एक कठोर सत्य है कि अगर इस धरती से वृक्षों का नाश हम मनुष्य दें, तो निश्चय ही हमारा नाश भी संभव हो जाएगा। वृक्ष कई सारी प्राकृतिक आपदाओं को रोकने में भी सहायक होते हैं।
हमें अपने घर, महौले, कस्बे, गाँव, शहर, देश में जहाँ तक हो सके हरित क्रांति लाने का प्रयास करना चाहिए। इसकी मदद से हमारे जीवन में जो क्रांति आएगी वह देखने योग्य रहेगी।
लेकिन आज का भौतिवादी मानव केवल अपने ही सुख-सुविधाओं का ध्यान रखता है, वह अपने स्वार्थपूर्थी हेतु अंधाधुंध वृक्षों की कटाई कर रहा है। जिस्कारण धरती से निरंतर वृक्षों की संख्या में कमी आती जा रही है। अगर हम वैज्ञानिक आंकड़े देखेंगे तो पर्यावरण संतुलन हेतु पृथ्वी पर कम से कम 15 % भाग पर वन होना चाहिए। पर आज की इस धरती पर वृक्षों की कमी निरंतर तो होती ही जा रही है, पर जनसंख्या में वृद्धि होती जा रही है जिस कारण जगह-जगह पर कभी भी कुछ भी आप्रकृतिक घटित होता ही जा रहा है।
वृक्ष से हमें सीखना चाहिए कि किस तरह हमारे द्वारा नुकसान किए जाने पर भी वह हमारी सहायता ही करता है, उसके माध्यम से ही हमें खाने के लिए फल-सब्जी आदि मिलती है, कागज भी वही देता है, हमारे घर के लिए फर्नीचर भी वही देता है। वृक्ष ने केवल देना सीखा है जबकि मनुष्य ने केवल लेना ही लेना सीखा है।
वृक्षों को वर्षा का प्रमुख स्रोत बताया जाता है, पर हम मानववृक्षों को काटते ही जा रहे हैं और वर्षा की उम्मीद करते ही जा रहे हैं, तो कहाँ से यह संभव हो पाएगा। पृथ्वी का तापमान जो वृक्ष अपने नियंत्रण में किया करते थे, आज वे वृक्ष का अस्तित्व ही स्वयं खतरे में है, यही कारण है कि सर्दी के मौसम में गर्मी हो रही है। और गर्मी के मौसम में बरसात।
इनसब से बढ़कर जो हमारी धरती पर सुरक्षा कवच है ओजोन लेयर का, उस पर भी वृक्षों के आभाव से छिद्र पड़ गया है। जिसकारण मानव जाति का अस्तित्व भी खतरे में आ चुका है।
इस संकट से निजात पाने का एक ही उपाय है कि हम स्वयं तथा अपने आसपास के सभी लोगों के बीच वृक्षारोपण का प्रचार कर अधिक से अधिक यूक्षों को लगाने का प्रयास करें। सरकार को भी चाहिए की वह आगे बढ़कर आए और वृक्षारोपण करने वाले को प्रोत्साहित करे साथ ही मिलकर अब हम सबको नारा लगाना चाहिए कि- पेड़ लगाओ, अपने आप को बचाओ।