Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Phool ki Atmakatha”, “फूल की आत्मकथा” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
फूल की आत्मकथा
Phool ki Atmakatha
मैं गुलाब हूँ। लोग मुझे पुष्पराज भी कहते हैं। क्यों कि मैं हर किस्म के फूलों से भिन्न और अधिक खुशबूदार हूँ। मैं यह गर्व से कह सकता हूँ कि मेरा जीवन भारतीय दर्शन और चिंतन के अनुरुप है। क्योंकि भारतीय दर्शन कहता है कि मनुष्य का जीवन कठिनाइयों के बीच से होता हुआ गुजरता है। मैं भी तो कांटों से बीच ही जन्म लेता हूँ और उनसे बचते हुए बड़ा होता हूँ और अपनी कोमलता बनाए रखता हूँ। मैं भी कई रंगों में कई संदेश देता हूँ जैसे कि मैं लाल रंग वाले रूप के माध्यम से क्रांति और प्रेम का संदेश देता हूँ, सफेद रंग के रूप में शांति और सादगी को संदेश देता हूँ, पीले रंग के रूप में सविचार और मन की निर्मलता का संदेश देता
मैं अपने प्रशंसकों में कोई भेदभाव नहीं करता, मैं सभी स्तर के लोगों को एक समान देखता हूँ। मजदूरों की जीवन-शैली तो मेरी ही जीवन शैली जैसी है। जिस तरह मजदूर कठिनाइयों से घिरे रहते हैं, मैं भी कांटों के बीच ही रहता हूँ। बड़े-बड़े धनी अपनी आपको निर्धन समझते हैं अगर मैं उनकी पुष्पवाटिका में न रहूँ। कई लोग तो मुझे गुलदस्ते के रूप में एक-दूसरे को उपहार स्वरूप देते हैं।
आज कल के युग में मेरी जगह नकली कागज या प्लास्टिक के फूलों ने ले ली है। पर संतोष है उन्होंने मेरा वास्तविक रूप नहीं बदला।
हां, मैं अगर पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. जाकिर हुसैन का नाम ना लें तो यह ठीक नहीं होगा, उन्होंने सदैव जीवनभर मुझे अपनी छाती से लगाकर जो अतिशय प्यार एवं सम्मान मुझे दिया है मैं जीवन भर उनका कृतज्ञ रहूँ तो भी कम है।
हाँ, महिलाएं भी मुझे अपना सौंदर्य बढ़ाने का माध्यम मान मुझे सम्मान सहित अपने सिर पर बैठाकर घूमती हैं।
एक बात मैं आपको यहाँ बताना जरूरी समझता हूँ वह यह कि मैं सिर्फ आँख को सुन्दरता के माध्यम से और नाक को सुगंध के माध्यम से ही तृप्त नहीं करता बल्कि अगर आप मुझे सुखाकर रख लें तो मैं एक औषधि का काम भी करता हूँ, आप मेरा जल अपनी आंखों में तकलीफ होने पर डाल लें तो मैं आपको ठंडक महसूस कराता हूँ।
और हाँ, अगर आप रसगुल्ले पर मेरे एक-दो बूंद का छिड़काव कर उसकी चाश्नी में मेरी कुछ बूंद मिलाकर खाएं तो मैं आपको ऐसा स्वादहूँगा की आप जिंदगी भर भूल नहीं सकते।
कवियों और लेखकों ने तो मुझे जो सम्मान दिया है वह मैं कभी भूल ही नहीं सकता। उन्होंने तो मुझे अपनी रचनाओं में स्थान दे डाला। कुछ ने मुझे सराहा तो कुछ ने मुझे फटकारा भी।
पर मैं अपने जीवन के उस पल को कभी नहीं भूल सकता जब एक भक्त अपनी भक्ति प्रकट करते हुए मुझे भगवान, अल्ला, वाहे गुरु के चरणों में अर्पित करता है। और एक माता अपनी रोती हुई संतान के चेहरे पर खुशी लाने के लिए मुझे उसे भेंट करती है। और हाँ मैं उस प्रेमी को कैसे भूल सकता हूँ जो मेरे माध्यम से अपनी प्रेमिका को संदेश भेजता है।
मैं तो अपने इस रूप से संतुष्ट हूँ।