Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Bharatiya Gaon ”, “भारतीय गाँव” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
भारतीय गाँव
Bharatiya Gaon
हमारे भारत को गाँवों का देश भी कहा जाता है। भारत की 85 प्रतिशत जनता गावों में रहती है, अतः अगर हम कहें की भारत की आत्मा, भरत के गाँवों में ही रहती है तो कोई गलत नहीं होगा। गाँव भारतीय जीवन के दर्पण भी माने जाते हैं। गाँव ही भारत की संस्कृति व सभ्यता के प्रतीक हैं।
भारतीय गाँव प्रकृति की अनुपम भेटों में से एक है। प्राकृतिक सौंदर्य-सुषमा के घर हैं, भारत के निवासियों के लिए अन्न, फल-फूल, साग-सब्जी, दूध-घी आदि गाँव से ही आते हैं अर्थात् सेना को सैनिक, पुलिस को सिपाही और कल-कारखानों के मजदूर आदि भी अत्याधिक गाँवों से ही मिलते हैं।
गाँवों के पिछड़े होने का मुख्य कारण है अशिया। स्वतंत्रता के पश्चात् गाँवों में प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध किया गया था किन्तु हाई स्कूल और कॉलेज काफी दूर कस्बों या नगरों में होने के कारणआपस में जुड़नसके। इस कारण ग्रामीण की आधी आबादी अनपढ़ ही रह गयी। गाँवों में अगर हम देखें तो आज भी अज्ञानता का पूरा बोलबाला है।
वही अज्ञानता के कारण ही सेठ-साहूकार, नेता, अधिकारी ग्रामवासियों को लूटते हैं। देते तो वो सिर्फ पाँच हैं पर अंगूठा लगवाते हैं दस पर, बेचारा ग्रामीण उम्र भर ब्याज भरता ही रहता है ब्याज तो व्याज असल तक तो पहुँच भी न पाता है।
भारतीय गाँव सभ्यता और आधुनिक सुख-सुविधा से अभी भी काफी दूर है। कुछ पक्के मकानों को छोड़कर अभी भी गाँव में हमें कच्चे मकान और झोंपड़ियाँ वहीं शान से सीना ऊंचा कर खड़ी हैं। वहाँ पेयजल की कमी भी है, आज भी मल-मूत्र विसर्जन के लिए वहाँ कोई विधिवत् निकासी नहीं है।
गाँवों में गड्ढे बहुत होते हैं जहाँ कचरा उड़कर जमा होता है और साथ ही वह सड़ते हुए दुर्गध पैद्य करता रहता है। कई गाँवों में तो बिजली अभी भी नहीं है। कई गाँवों में तो बिजली के खंभे पहुंच चुके हैं पर पता नहीं बिजली कब तक पहुँचेगी। कई भारतीय गाँवों में तो अभी तक चिकित्सालय, प्रशिक्षित डॉक्टर पहुँच भी नहीं पाए हैं जिस कारण वहीं नीम हकीम का राज चल रहा है, जो फायदा तो करता ही है पर खतरा-ए-जान के होने से कोई इंकार भी नहीं कर सकता है। यहाँ तक तो ठीक है पर आज भी कई भारतीय गाँवों में तो जादू-टोना आज भी ग्रामवासियों में स्वस्थ रहने की औषध है।
गाँव में पंडित, मौलवी आदि की पूजा की जाती है। धर्मभीरु गाँव वासियों के लिए कर्मकाण्ड के नाम पर खूब शोषण करता है। बेचारे ग्रामवासी परंपराओं और रूढ़ियों में उसी प्रकार बंधे हुए हैं, जिस प्रकार नाचने वाला बंदर मदारी के हाथों कैद होता है।
भारतीय गांव जहाँ अब तक शारीरिक तथा मानसिक दुर्बलता के घर थे, अब वहाँ पर भी नई चेतना, नई ज्योति, नया जीवन भी आया है। सरकार ने वहाँ आर्थिक शोषण से मुक्ति हेतु सहकारी बैंक स्थापित किए हैं। सूदखोर जमींदारों की जमीन वापिस लेकर किसानों में बाँट दी गई है। शिक्षा के विकास हेतु समय-समय पर कई शैक्षिक आयोजन किए जाते हैं। कई समाज सेवी संस्थाएँ गाँव-गाँव जाकर मुफ्त शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था भी करती है।
आजकल तो स्वस्थ्य व सफल फसल हेतु किसानों को भी प्रशिक्षण दिए जाने लगे हैं, सीधे माल बेचने की व्यवस्था भी की गई है जिससे जमींदारों को अनैतिक रूप से मिलने वाले मोटे मुनाफे से रोका जा सके। सरकार ने पहल करते हुए गाँव और शहर के बीच पक्की सड़क बनवा दी जिससे फसल समय पर बाजार पहुँच उचित मूल्य पा सके। अब तो किसानों को ऋण देकर टैक्टर, फसल हेतु बीज, खाद आदि भी उपलब्ध हो रहा है।
कृषि उन्नति हेतु कृषि विश्वविद्यालय भी स्थापित हो गए हैं, जहाँ किसान कभी भी अपनी समस्या के निवारण हेतु पहुँच सकता है।
स्वंतत्रता के पश्चात् ग्राम-पंचायतों का पुनर्गठन भी हुआ। पंचायती राज्य के तीन आधार बने- ग्राम पंचायत, क्षेत्र समिति तथा जिलापरिषद्- ये तीन संस्थाएँ ग्राम विकास की उत्तरदायी बनीं, गांवों की सामाजिक और आर्थिक उन्नति का माध्ययम भी यही हैं। जिस कारण अशिक्षा भी वहाँ से कोसो दूर होती जा रही है। जागरूकता के कारण आज का भारतीय गाँव, शहर से किसी भी मुकाबले पीछे नहीं रह गया है। पर हाँ अगर किसी को भारतीय संस्कृति को देखना है तो उसे किसी भी भारतीय गाँव में जाना ही पड़ेगा। भले ही गाँव शहर में बदल चुके हैं पर उनकी सादगी, सीधापन नहीं बदला है।