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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Badh aur uske Prabhav”, “बाढ़ और उसके प्रभाव” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

बाढ़ और उसके प्रभाव

Badh aur uske Prabhav

                अगस्त का महीना था। आकाश में बादल छाए हुए थे। राजधानी में तेज वर्षा और कई दिनों की झड़ी के कारण सड़कें पानी में डूब गई थीं और यातायात ठप्प हो गया था। दिल्ली के गाँवों में इससे भी भंयकर वर्षा हुई जिसके कारण नजफगढ़ जाना चढ़ आया और निकटवर्ती गाँवों में पानी का खतरा बढ़ गया। कुछ अदूरदर्शी किसानों ने जब देखा कि पानी किनारा लाँघकर उनके खेतों में भरने लगा है तो तो उन्हें बचाने के लिए उन्होंने कुछ दूरी पर नाले का बाँध काट दिया, ताकि बढ़ा हुआ पानी दूसरी तरफ निकल जाए और उनके खेत बच जाएं किंतु उन्हें क्या पता था कि इस प्रकार उफनते नाले की धारा काटकर वे भयंकर बाढ़ को निमंत्रण दे रहे हैं और इसकी लपेट में आधी दिल्ली आ जाएगी। सचमु वह इस शताब्दी में दिल्ली मंे सबसे भयंकर बाढ़ थी।

                हमने देखा कि पंजाबी बाग की सड़कों पर पानी बह रहा था। रतनपार्क, बाली नहर, जे.जे. काॅलोनी और तिलक नगर के ढलान वाले स्थानों में मकान के अंदर पानी प्रविष्ट हो चुका था। वहाँ लोग साइकिलों पर, सिर पर, बगल में और किराए के घोड़ों पर समान लादकर सुरक्षित स्थानों की ओर जा रहे थे। जिन घरों में पानी नहीं पहुँचा था, उनके निवासी किंकर्तव्यविमूढ़ से हो गए थे। न घर में रहते हुए उन्हें चैन था और न घर छोड़ने का उनमें साहस। लिक नगर से आगे ज्यों-ज्यों हम नजफगढ़ की ओर बढ़ते गए, त्यों-त्यों बाढ़ का क्षेत्र विस्तृत होता प्रतीत हुआ।

                स्थान-स्थान पर पानी भर गया था। मकानों में, दुकानों में, तीन-तीन फुट तक कहीं अधिक भी पानी भरा हुआ था। कई बाजारों में पानी भरकर शांत खड़ा था और सब प्रकार की गंदगी आने के कारण चारों ओर दुर्गंध फैल रही थी। पानी के बहाव ने नजफगढ़ के बाहरी क्षेत्र को बुरी तरह ग्रस लिया था। लगभग 500 मकान पूरी तरह नष्ट हो चुके थे और कई सौ मकान पानी में डूब गए थे। नजफगढ़ सड़क कई स्थानों पर जलमग्न थी। कई हजार लोग बेकार हो गए थे। आस-पास के गाँव बाढ़ के पानी के कारण कट गए थे और उनके हर प्रकार के संबंध कट गए थे।

                आर्य समाज आदि संस्थाओं की ओर से बाढ़-पीड़ितों की सहायता के लिए अपील निकाली गई। वस्त्रों, रूपयों और खाद्य पदार्थों के ढेर-के-ढेर पहुँचने लगे। नजफगढ़ में एक सहायता शिविर खोला गया। मैं भी सहायता कार्य में किसी से पीछे नहीं रहना चाहता था। मैंने शिविर में काम करने के लिए अपनी सेवाएँ प्रस्तुत कर दीं। बाढ़-पीड़ितों के लिए जो ट्रक भोजन, कम्बल, बिस्तर, औषधियाँ तथा वस्त्र आदि लेकर चला, मैं उसी में था। जैसे ही राहत समग्री से भरे ट्रक बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में पहुंँचते, बाढ़ पीड़ितों की भीड़ उन पर बुरी तरह टूट पड़ती थीं। लोग भूख से बेहाल थे। उनके पास पहनने को पर्याप्त वस्त्र तक नहीं थे। इस सामयिक सहायता ने उन्हें काफी राहत पहुँचाई।

                सरकार की ओर से बाढ़-पीड़ितों की सहायता का काम शुरू हुआ, पर इसमें  विलंब हो चुका था। इस बाढ़ का प्रकोप लगभग दस दिनों तक रहा। दस दिनों के पश्चात् अनेक बीमारियाँ फैल गईं। जो बाढ़ के दीर्घकालिक प्रभाव होते हैं। सरकार ने इन पर काबू पाने के भरसक प्रयास किए, फिर भी एक मास तक इनका प्रकोप बना रहा।

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