Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Aaj ke Vidyarthi ke Samne Chunotiyan”, “आज के विद्यार्थी के सामने चुनौतियाँ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
आज के विद्यार्थी के सामने चुनौतियाँ
Aaj ke Vidyarthi ke Samne Chunotiyan
आज का विद्यार्थी कल का नेता है। वहीं राष्ट्र का निर्माता है। वह देश की आशा का केन्द्र है। विद्यार्थी जीवन में वह जो सीखता है, वही बातें उसके भावी जीवन को नियंत्रण करती है। इस दृष्टि से उसे विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का पालन करना अनिवार्य हो जाता है।
‘विद्यार्थी’ शब्द विद्या $ अर्थी के योग से बना हुआ है। इसका तात्पर्य है विद्या प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला। यों तो व्यक्ति सारे जीवन में कुछ-न-कुछ सीखता ही रहता है, किन्तु बाल्यकाल एवं युवावस्था का प्रारम्भिक काल अर्थात् जीवन के प्रथम 25 वर्ष का समय विद्यार्थी काल है। इस काल में विद्यार्थी जीवन की समस्या चिंताओं से मुक्त होकर विद्याध्ययन के प्रति समर्पित होता है। इस काल में गुरू का महत्त्व अत्यधिक होता है। सद्गुरू की कृपा से ही विद्यार्थी जीवन के प्रति व्यावहारिक दृष्टि अपना सकते हैं अन्यथा मात्र पुस्तकीय ज्ञान उसे वास्तविक जीवन में कदम-कदम पर मुसीबतों का सामना कराता है यही समय विद्या ग्रहण करने के लिए सर्वथा उपयुक्त है। कवि ने कहा है-
यही तुम्हारा समय, ज्ञान संचय करने का।
संयम, शील, सुशील, सदाचारी बनने का।।
यह होगा संभव, अनुशासित बनने से।
माता-पिता गुरू की, आज्ञा पालन करने से।।
वर्तमान समय उतना सरल नहीं रह गया है विद्यार्थी वर्ग के सामने अनेक प्रकार की चुनौतियाँ हैं।
हमारे देश के छात्रों की अपनी समस्याएँ हैं, जो यहाँ की परिस्थितियों की ही देन हैं। यहाँ की परिस्थितियाँ दूसरे देश में और दूसरे देश की परिस्थितियाँ यहाँ पर नहीं हैं, दोनों में पूरी तरह समानता नहीं हो सकती। प्रत्येक देश के युवा असंतोष के कारणों का स्वरूप उस देश की पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है यही कारण है कि छात्र विक्षोभ के कारण भी सभी देशों में अलग-अलग होते हैं।
अगर हम विद्यार्थियों के विक्षोभ के कारणों की गहराई में जाएं तो हमें कई कारण आसानी से मिल जाएँगे। इनमें प्रमुख कारण है- आर्थिक असमानता। गाँवों के सम्पन्न किसान या व्यवसायी की संतान यदि अध्ययनशील है तो शहर में भी आसानी से शिक्षा अर्जित की जा सकती है। पुत्र और पुत्री में भेद नहीं हो पाता, मगर गरीब के घर पुत्र को प्रथम वरीयता दी जाती है, भले ही पुत्री अधिक कर्मठ और मेधावी क्यों न हो। इससे उनके अंदर असंतोष की भावना पनपती है। संपन्न किसान की नालायक संतान शहर जाकर अपने पैसे के बल पर शहरी तथा तथाकथित ‘मार्डन’ कहलाने में भी नहीं झिझकती। और इन सबका रानजीतिक प्रभाव के कारण प्रवेश पाने मंे सफल छात्र पढ़ाई को महत्त्व नहीं देते और दूसरी तरफ एक साधारण परिवार से परंतु मेधावी छात्र प्रवेश पाने में असफल होने पर असंतोष का शिकार हो जाता है।
युवा बेरोजगारी भी एक प्रमुख कारण है, छात्र-असंतोष का। आज की शिक्षा-पद्धति का ढाँचा ऐसा कोई दावा नहीं कर पाता कि ऊँची डिग्री पाकर भी छात्र अपने लिए एक अदद नौकरी पा सकता है। जब युवा वर्ग डिग्रियों का बंडल लिये एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर धक्के खाता फिरता है तो असंतोष और निराशा उसमंे घर कर जाती है और इन सबसे उसमें असंतोष का लावा भर जाता है।
यूँ तो युवा वर्ग की और भी अनेक समस्याएँ हैं, मगर सबसे ज्यादा आवश्यक है, उनका समाधन। भले ही वर्तमान सरकार ने इस विषय में कई कदम उठाए हैं, मगर इस विषय पर और भी गंभीरता से विचार करना आवश्यक है। शिक्षा पद्धति को भी रोजगारोन्मुख बनाना होगा। शिक्षा ऐसी हो जिससे आर्थिक असमानता, असंतोष दूर हो और युवाओं के चरित्र निर्माण में सहायक हो।
आज के विद्यार्थी के सम्मुख देश में एकता की भावना उत्पन्न करने एवं नए समाज के निर्माण की चुनौतियाँ भी उपस्थित हैं। देश में आतंकवादी शक्तियाँ उभर रही हैं उन्हें टक्कर देने का काम आज का विद्यार्थी वर्ग ही कर सकता है। यह एक बहुत बड़ी समस्या है। इसका हल बहुत आवश्यक है। आज के विद्यार्थी के सामने देश के नव-निर्माण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने की भी चुनौती हैं विद्यार्थी से अपेक्षा की जाती है कि यह वर्ग देश को प्रगति की राह में आगे ले जाने के दायित्व का निर्वाह करेगा। उससे ऐसी अपेक्षा करना अनुचित है, पर असंतुष्ट विद्यार्थी भला देशोत्थान का काम क्या रूचिपूर्वक कर पाएगा? उसके असंतोष के कारणों को जानकर उनका निदान करना आवश्यक है।