Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Dev-Dev Aalasi Pukara” , “दैव-दैव आलसी पुकारा” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
दैव–दैव आलसी पुकारा
Dev-Dev Aalasi Pukara
प्रगति के मार्ग का सबसे बड़ा बाधक है-आलस्य। व्यक्ति तन-मन से स्वस्थ, समर्थ और सक्षम होते हुए भी यदि प्रयत्न न करे तो सफल नहीं हो सकता। तन की शिथिलता आलस्य है तो मन की शिथिलता को प्रमाद कहते हैं। आलसी और प्रमादी व्यक्ति को न अपनी असफलता अखरती है और न ही उन्नति पाने का उनमें उत्साह जगता है। न वे कुछ नया सीखना चाहते हैं और न ही सीखे हुए को क्रियान्वित करने की उनमें ललक होती है। अपनी दिशा-हीन स्थिति का दोष वे भाग्यहीनता पर मढ़ देते हैं। भाग्य को ही सफलता का कारण मानने वाले वास्तव में अकर्मण्य, आलसी होते हैं। वे अपने आलस्य को ‘विधि का विधान’, ‘प्रभु-इच्छा’, ‘समय का फेर’ जैसे कथनों की आड़ में छिपाने का प्रयत्न करते हैं। वे जीवन के इस अटल यथार्थ से अपरिचित होते हैं-
‘सकल पदारथ या जग माहि।
करमहीन नर पावत नाहि॥‘
अकर्मण्यता, आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु हैं क्योंकि यह उसके शरीर और बुद्धि दोनों को जड़ बना देता है। जड़ व्यक्ति के जीवन में न गति होती है और न ही प्रगति। आलस्य व्यक्ति को भाग्यवादी बनाता है जबकि कर्मठता उसे पुरुषार्थी-असफलता और सफलता के ये ही आधार हैं।