Hindi Essay on “Our Native Games”, “हमारे देशी खेल” Complete Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
हमारे देशी खेल
Our Native Games
खेल-कूद हमारे जीवन में बहुत महत्त्व रखते हैं। आज हमारे विद्यार्थियों पर विदेशी खेलों का प्रभाव अधिक है। वह क्रिकेट, बैडमिन्टन.पोलो टेबल टेनिस में अधिक रुचि लेने लगे हैं। यदि हम इन खेलों को छोड कर अपने देश के महत्त्वपूर्ण खेलों की बात करें तो हमारे अपने देशी खेलों की संख्या भी कम नहीं है। फिर भी न जाने क्यों अपने देश के खेलों की अपेक्षा हम विदेशी खेलों को अधिक महत्त्व देते हैं !
खेल के मैदान में खिलाड़ियों में परस्पर सहयोग तथा सहनशीलता को भावना आती है। जब किसी खेल का आयोजन किया जाता है तो वहां का वातावरण बड़ा आकर्षक और जोशीला बन जाता है। मैं भारत का रहने वाला हैं। यहां कई खेल खेले जाते हैं, जैसे—कब्डी, हॉकी, फुटबाल, कुशती, गुल्लाडण्डा,खो-खो आदि । यह खेल लड़कों के लिए है। लड़कियों के लिए अलग खेल हैं जैसे रस्सी कूदना, गेंद-गीटे, स्टापू और ये खेल मनोरंजन का साधन हे तथा इनमें भाग लेने से खिलाड़ी का शारीरिक एवम् मानसिक विकास होता है।
सबसे पहले आता है हमारा सर्वप्रिय खेल कबड्डी। इसके लिए खुले मैदान की आवश्यकता होती है। इसमें दो टीमें होती है। हर टीम में 6 खिलाड़ी होते हैं। खेल के आरम्भ में दोनों टीमें एक दूसरे से हाथ मिलाती हैं। रैफरी सीटी बजाता है और खेल आरम्भ होता है। पहली टीम का खिलाडी ‘कब्डी-कब्डी करता हुआ दूसरी टीम के मैदान में घुस कर किसी एक खिलाड़ी को हाथ लगाता है, फिर अपने मैदान में वापस आने की कोशिश करता है तथा दूसरी टीम उसे रोकती है। खिलाड़ी इस खेल में अपनी पूरी ताकत लगाता है ताकि वह अपनी टीम तक पहुंच सके। इस खिलाड़ी को दूसरी टीम में जाकर वापिस अपनी टीम में बगैर साँस उखड़े, आना होता है। इस खेल द्वारा साहस, हिम्मत, हौंसले की भावना पैदा होती है।
हमारा दूसरा देशी खेल है—फुटबाल । यह खेल भी खुले मैदान में खेला जाता है। कब्डी की तरह इस खेल में भी दो टीमें होती है। हर टीम में ग्यारह-ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। दोनों टीमों ने अलग-अलग रंग के कपड़े पहने होते हैं। खेल शुरु होने से पहले दोनों टीमें एक दूसरे से हाथ मिलाकर आमने-सामने खड़ी हो जाती हैं। दोनों पक्षों के खिलाड़ी बड़े चुस्त, उत्साही और तेज़-दिमाग वाले होते हैं। इस खेल में खुले मैदान में एक पूर्व की ओर तथा दक्षिण की ओर एक “डी” बनाई जाती है जिसे “नैट” से ढका जाता है। दोनों टीमों के खिलाड़ियों के पास एक फुटबाल होता है जिसे उन्हें “डी” में पहुंचा कर गोल करना होता है। हर टीम की यही कोशिश होती है कि फुटबाल उसके पास आ जाए तो वह “डी” में बाल फैंक कर अपनी टीम के लिए “गोल” कर दे । बाल कभी एक टीम के पास तो कभी दूसरी टीम के पास रहती है। दोनों टीमें “गोल” के लिए पूरा प्रयत्न करती हैं। अधिक गोल करने वाली टीम विजयी घोषित की जाती है।
भारत के देशी खेलों में कुशती का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह विशेषकर पंजाबियों का खेल है। इस खेल में पहले शारीरिक अंगों का प्रदर्शन किया जाता है। कुशती में भाग लेने वाले पहलवानों के अंग सुडौल तथा मज़बूत होते है। इनके शरीर भारी भरकम होते हैं। पहलवानों को बाजुओं और छाती के पट्ठों की मज़बूती का प्रदर्शन करना पड़ता है। इस खेल में एक चौड़ा मंच बनाया जाता है जिसके चारों ओर रस्सियों का सुरक्षा बांध बनाया जाता है। खेल के लिए दो खिलाड़ी मंच पर आते हैं। दोनों के खेल को नियंत्रित करने के लिए एक रैफरी होता है। जब वह सीटी बजाता है तो खेल आरम्भ होता है। दोनों पहलवान एक दूसरे पर आक्रमण करते हैं। घूसों, मुक्कों से चोट करते हैं। रैफरी यह ध्यान रखता है कि चोट किसी गल्त अंग पर न की जाए । जब एक पहलवान मुक्के सहते-सहते गिर जाता है तो रैफरी 1 से 10 तक गिनती करता है। इस बीच अगर वह उठ जाए तो खेल फिर से शुरु हो जाता है। जो पहलवान अधिक कुशलता का प्रदर्शन करके दूसरे का मार गिराता है.वह जीत जाता है। इस खेल से खिलाडी में आक्रमक शक्ति आती है।
इसके बाद गुल्ली-डण्डे की बारी आती है। यह बच्चों का खेल है। इसे बच्चे घर के खुले आंगन में या गली में भी खेल सकते हैं। इस खेल में भी दो टीमें होती है। इस में एक लकड़ी के डण्डे का प्रयोग होता है, साथ एक छोटी सी गुल्ली होती है जिसके दोनों किनारे नकीले होते हैं। दोनों टीमों से एक का खिलाड़ी पहले आता है। वह खिलाड़ी डण्डे से गुल्ली की नोक पर चोट मारता है और गुल्ली उछल कर कुछ दूर जा गिरती है। जहां गुल्ली गिरती है वहां एक निशान बनाया जाता है। फिर दूसरा खिलाड़ी आता है वह भी उसी तरह गुल्ली को उछालता है। उसे पहले खिलाड़ी के द्वारा फैंकी गुल्ली से भी दूर गुल्ली फैंकनी होती है। इस तरह दोनों टीमों में यह क्रम चलता रहता है जो खिलाड़ी अधिक दूर गुल्ली फैकते हैं वह निपुण खिलाड़ी माने जाते हैं।
इसी तरह खो-खो के खेल में दो टीमें होती हैं। एक टीम के खिलाड़ी एक दूसरे से उल्ट दिशा में बैठ जाते हैं। दूसरी टीम के खिलाड़ी उन्हीं में से गुज़रते हुए एक दूसरे को पकड़ते हैं। जब कोई खिलाड़ी थक जाए तो वह बैठे खिलाड़ी को खो देकर उठाता है तथा उसकी जगह स्वयं बैठ जाता है। इसी तरह यह क्रम चलता रहता है और टीमें खेलती रहती है। यह खेल लड़कियों के लिए भी है।
लड़कियों के लिए देशी खेल रस्सा कूदना भी है। इससे उनकी मांसपेशियां मज़बूत होती है। उनका कद लम्बा होता है। उनका शरीर नियंत्रित रहता है तथा अतिरिक्त मांस नहीं चढ़ता ।
यदि हम विदेशी खेलों की अपेक्षा अपने देशी खेलों में अपनी योग्यता दिखाएं तो हमें अधिक लाभ होगा। कम खर्च और थोड़ी मेहनत से हम विदेशों में अपना नाम पैदा कर सकेंगे। भारत सरकार को इस दिशा में कदम उठा कर लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहिए ।