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Gyan Hi Shakti Hai “ज्ञान ही शक्ति है” Hindi Essay 700 Words for Class 10, 12.

ज्ञान ही शक्ति है

Gyan Hi Shakti Hai

प्राचीन काल से यह कहा जाता रहा है कि जिसके पास वृद्धि है, उसी के पास बल है। शक्ति प्राप्त करने की इच्छा मानव की मूल प्रवृति होती है। इस इच्छा का कारण यह है कि मानव को इस बात का बोध है कि वह मानसिक और नैतिक दृष्टि से सृष्टि के अन्य जीवों से श्रेष्ठ है। अतः यह स्वाभाविक ही है कि श्रेष्ठ होने के नाते मानव का अन्य जीवों पर नियंत्रण और प्रभुत्व रहना चाहिए। इसके अलावा मनुष्यों में असमानता होने के बोध से भी एक द्वारा दूसरे पर शासन करने और प्रभुत्व जमाने की अभिलाषा पैदा होती है। विश्व का इतिहास जहाँ तक इसका मानव से सम्बन्ध है शक्ति के लिए संघर्ष का इतिहास है। अतः जनजातियों और कबीलों के आदिकालीन लड़ाइयों से लेकर आज के विनाशकारी युद्धों तक, इन सभी के पीछे एक ही धारणा है और वह है शक्ति प्राप्त करने की लालसा।

शक्ति मुख्यतः दो प्रकार की होती है-शारीरिक और बौद्धिक। बौद्धिक शक्ति की तुलना में शारीरिक शक्ति निम्न स्तर की होती है। आदिकालीन लोगों को मुख्यतः शरीर की शक्ति का ही ज्ञान था। जिसका खंडन आज का यंत्रवादी युग करता है।

परन्तु सभ्यता के विकास और मानव मस्तिष्क के विकास के साथ बौद्धिक शक्ति को श्रेष्ठ माना जाने लगा। बौद्धिक शक्ति की उत्पत्ति ज्ञान से होती है।

जब मानव पहली बार धरती पर आया था तो उसमें मानवीय प्रवृत्तियों का अभाव था। वह भी हिंसक पशु ही था और स्वयं भी जंगली जानवरों तथा प्रकृति की प्रतिकूल शक्ति के सामने एक असहाय प्राणी था। परन्तु ईश्वर ने उसे बुद्धि दी थी और यही बुद्धि अन्ततोगत्वा उसका बचाव कर सकी। उसने आग का आविष्कार किया और उसके उपयोगों को जाना और आग के उपयोग के इसी ज्ञान ने उसे शक्ति प्रदान की। इसी प्रकार से अन्य तत्वों और वस्तुओं के ज्ञान ने धीर-धीरे उसे शक्तिशाली बना दिया। समय के साथ-साथ उसके ज्ञान ने विश्व में आश्चर्य उत्पन्न कर दिये और बहुत से क्षेत्रों में मनुष्य का आधिपत्य स्थापित कर दिया। हमने प्रारम्भ से ही ज्ञान की पूजा की है। अपने उन्हीं नेताओं को हृदय से सम्मान दिया है जो वस्तुतः ज्ञानी थे, जैसे जवाहर लाल नेहरु, डॉ. राधाकृष्णन, डॉ. जाकिर हुसैन एवं ए.पी.जे. कलाम। शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए हमने ‘ज्ञान आयोग’ का गठन किया है।

आज का जीवन जिन महान खोजों और आविष्कारों पर आधारित है, वे सभी बुद्धि की शक्ति का प्रतिफल हैं। पानी और बिजली जैसी प्राकृतिक शक्तियों पर विजय प्राप्त करके इन शक्तियों को मानव के उपयोग में लाया जाना भौतिकी के ज्ञान के कारण ही सम्भव हो सका है। यांत्रिकी के ज्ञान से ही दूरी को घटाया जा सका और मनुष्यों के बीच की बाधाओं को तोड़ा जा सका जिससे सारे विश्व में मनुष्यों में परस्पर बन्धुत्त्व की भावनाओं का अनुभव कराया जा सका। परमाणु ऊर्जा की युगान्तरकारी खोज ने तो धरती पर मनुष्य के भावी जीवन की सम्पूर्ण अवधारणा में ही आमूल परिवर्तन ला दिया है। बौद्धिक विकास के कारण ही व्यक्ति विभिन्न प्रकार की तकनीकों का विकास कर सका है।

वास्तव में कला, विज्ञान, संस्कृति और सभ्यता का विकास ज्ञान पर ही आधारित है। प्रकृति ने अपने रहस्यों को ज्ञान शक्ति के साथ खोल दिया है। उसने शारीरिक शक्ति और बौद्धिक शक्ति दोनों को एक ही समय बनाया है, परन्तु ज्ञान ने मनुष्य को न केवल बौद्धिक शक्ति ही दी, बल्कि उसे शारीरिक शक्ति को बेहतर, सुनिश्चित और अधिकाधिक अनुशासित और मितव्ययी ढंग से प्रयोग करना भी सिखाया है। अतः अनुशासन, व्यवस्था और मितव्यता उस शक्ति के आधार हैं जो ज्ञान द्वारा हमें प्रदान की गई है।

यह हमारे राष्ट्र की प्राचीन अवधारणा रही है कि व्यक्ति राष्ट्र भौतिकवादी सृष्टि में भी आध्यात्म दर्शन के लिए लालायित रहा। अतः उत्तम भाव का प्रमुख गुण होता है : ‘सन्तुलन’। ज्ञान की शक्ति तो बड़ी होती है। ज्ञान हममें दम्भ उत्पन्न कर सकता है और इस प्रकार इसके वास्तविक वरदान को छीन सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि ज्ञान को विवेक में बदला जाए क्योंकि ज्ञान दम्भ है और विवेक विनम्रता। इस बात का अनुभव कर लेने के बाद ही हम ज्ञान की शक्ति के महत्त्व को समझ पाते हैं और ज्ञान को अर्जित करना चाहते हैं जो हमें सत्य की खोज के योग्य बनाता है। हमें ज्ञान की पूर्ण प्राप्ति का भरसक प्रयास करना होगा क्योंकि “आधा ज्ञान खतरनाक होता है।” ज्ञान को पूर्णता से प्राप्त करो अथवा अधूरे ज्ञान से दूर रहो।

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