Ek Romanchak Yatra “एक रोमांचक यात्रा” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 9, 10, 12 Students.
एक रोमांचक यात्रा
Ek Romanchak Yatra
प्राचीन काल से ही यात्राओं का महत्व रहा है। यात्रा से मनुष्य के अनुभवों में वृद्धि होती है। नैसर्गिक दृश्यों से आत्मिक शान्ति का अनुभव होता है। यात्राओं के द्वारा मनुष्य की कूप मण्डूकता दूर होती है। अतः यात्राएँ मानव को विशाल हृदय वाला, व्यापक दृष्टिकोण अपनाने वाला एवं सहृदय बनाने में सहायक हैं।
यात्राएँ मनोरंजन के नये आयाम खोलती हैं, जिससे लोग तनावपूर्ण स्थिति से बाहर निकलकर शांति का अनुभव करते हैं। यही कारण था कि प्राचीन समय में लोग तीर्थाटन पर जाने को पवित्र कार्य मानते थे।
यद्यपि उस समय रेल, मोटर, बस आदि साधन नहीं थे, फिर भी लोग पैदल या बैलगाड़ियों पर चलकर तीर्थ यात्रा करने जाते थे। जो व्यक्ति चारों धाम की यात्रा कर लेता था, वह बड़ा धर्मात्मा माना जाता था।इन्हीं उद्देश्यों से प्रेरित होकर मैंने अपने मित्रों के साथ अमरकंटक जाने की योजना बनाई। अमरकंटक मध्यप्रदेश का मनोरम एवं पर्वतीय स्थल है। यह विन्ध्य क्षेत्र के शहडोल जिले में स्थित अत्यंत रमणीय स्थान है। यहाँ जलवृष्टि काफी होती है।
हम लोग शहडोल तक रेलगाड़ी से गये। शहडोल से बस पकड़ी और बस से अमरकंटक पहुँचे। पुण्य सलिल नर्मदा का यह उद्गम स्थल है। अमरकंटक का नर्मदा कुंड और नर्मदा मंदिर दर्शनीय हैं। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य अत्यन्त रमणीय है। अमरकंटक में एक छोटे से कुंड से नर्मदा निकली है। आसपास कई मंदिर हैं, जिनका निर्माण सम्भवतः कई शताब्दी पहले हुआ था।
नर्मदा कुंड से लगभग छह किलोमीटर दूर ‘कपिल-धारा’ है। कपिल धारा का दृश्य बड़ा मनोरम है। यहाँ 50 मीटर की ऊँचाई से नर्मदा गिरती है। आगे चलकर नर्मदा दूध की तरह श्वेत हो जाती है। इसे दूध धारा कहते हैं।
नर्मदा कुंड से थोड़ी दूर सोनमूड़ा नामक स्थान है। यह सोन नदी का उद्गम है। प्रारंभ में यह नाले के रूप में बहती है। यह ‘सोन नद’ के नाम से प्रसिद्ध है। प्राचीन काल में इसे ‘श्रोण भद्र’ कहते थे। जनश्रुति है कि इसे पुरुष की संज्ञा दी गई है और नर्मदा को स्त्री की। शोणभद्र और नर्मदा के प्रेम की अनेक कथायें प्रचलित हैं। कहते हैं दोनों में एक बार विवाद हो गया, तब से ये परस्पर विपरीत दिशाओं में बह रही
अमरकंटक से लगभग आठ मील दूरी पर एक अत्यंत मनोहर ऐतिहासिक स्थल है। इसे कबीर चौरा कहते हैं। यहाँ दो पद चिह्न मिलते हैं, जिन्हें लोग कबीरदास के चरण कहकर सम्बोधित करते हैं।
अमरकंटक के आसपास गोंड़ और बैगा जाति के आदिवासी रहते हैं। ये खेती करते हैं। कुछ आदिवासी अचार, महुआ, आम आदि का धंधा करते हैं। इनके लोक नृत्य बहुत प्रसिद्ध हैं। इनका जीवन सादा, सरल और निश्छल है।
अमरकंटक प्राकृतिक सम्पदा का धनी है। निसर्ग की अत्यन्त मनोहर देन यहाँ सर्वत्र व्याप्त है। पुण्य सलिला नर्मदा और सोन के उद्गम स्थान का अपना अनुपम सौन्दर्य है।