Budha ki Karuna, “बुद्ध की करुणा” Hindi motivational moral story of “Mahatma Budha” for students of Class 8, 9, 10, 12.
बुद्ध की करुणा
Budha ki Karuna
महात्मा बुद्ध एक बार भिक्षा के लिए निकले तो एक युवती ने उनको आमंत्रित किया, “आइए महाराज, भिक्षा में मैं आपको क्या दूँ ? मैं तो अपने आपको ही समर्पित करना चाहती हूँ, आप मेरे स्वामी और मैं आपकी दासी हूँ ?” बुद्ध बोले, “मुझे तुम्हारी बात स्वीकार्य है, लेकिन आज मैं जल्दी में हूँ। यह रसीला फल है, इसको संभालकर रखना। मैं आकर इसे ले जाने का वचन देता हूँ।”
कुछ सप्ताह पश्चात् बुद्ध, उसी युवती के घर पहुंचे और अपना फल वापस मांगा। युवती क्रोध से बोली, “महाराज हद हो गई, वह फल दो-तीन दिनों में बासी हो गया और चार-पांच दिनों में दुर्गन्ध मारने लगा। फिर भी एक सप्ताह तक मैंने फल को संभाला, लेकिन गल-सड़ जाने पर मैंने फल फेंक दिया।
बुद्ध युवती से बोले, “इतना तुम समझ गयी। इतना रसीला फल भी समय की धारा में बासी होकर गल-सड़ गया। ऐसे ही शारीरिक सौंदर्य भी उस रसीले फल जैसा नहीं है क्या? ऐसा ही यह पंचभौतिक शरीर है।” बुद्ध की वाणी सुनकर युवती का हृदय परिवर्तन हो गया और वह उनके चरणों में नतमस्तक होकर बाद में श्रेष्ठ साध्वी बन गयी।