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Vigyan Ek Accha Sewak Ya Krur Swami “विज्ञान एक अच्छा सेवक या क्रूर स्वामी” Hindi Essay 1000 Words.

विज्ञान एक अच्छा सेवक या क्रूर स्वामी

Vigyan Ek Accha Sewak Ya Krur Swami

वैज्ञानिक परिवर्तनों की प्रवाहमय धारा में विस्फोटकों तथा संक्रामक बीमारियों ने विश्व जनमानस को भयभीत कर दिया है। कुछ लोगों का मानना है कि यह वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि अब व्यक्ति प्रकृति के हाथों का एक खिलौना नहीं रह गया है अपितु धरती, आकाश और जल, तीनों का स्वामी बन गया है। विज्ञान ने हमारे दृष्टिकोण में, हमारी मानसिक स्थिति में, हमारे विचारों और धारणाओं तथा हमारे स्वप्नों और आकाक्षाओं में भी आमूल परिवर्तन ला दिया हैं। आज हम विज्ञान से ही जीवित हैं, विज्ञान से ही गतिशील हैं और यही दिनचर्या का केन्द्र बिन्दु बना हुआ है।

जीवन के हर क्षेत्र में विज्ञान का प्रभाव दिखाई देता है। बटरेण्ड रसेल के अनुसार, विज्ञान ने तो धरती का रूप ही बदल दिया है और पिछले 150 वर्ष में विश्व में जितना परिवर्तन आ गया है उतना उससे पहले के 4,000 वर्षों में भी नहीं आया था। पहले रेलगाड़ी, मोटरकार, बिजली एवं रेडियो आदि भी विज्ञान के चमत्कार कहे जाते थे, पर ये सभी आज सामान्य-सी वस्तुएँ प्रतीत होती हैं। क्या हम विज्ञान के प्रादुर्भाव से पूर्व के विश्व की कल्पना कर सकते हैं? बहुत पहले लन्दन से 50 मील दूर रहने वाले अधिकांश लोगों ने विश्व के इस महान नगर को देखा तक नहीं था। मद्रणालयों के न होने के कारण पुस्तकें बहुत महंगी होती थीं क्योंकि उनकी नकल हाथ द्वारा की जाती थी जिससे केवल कुछ धनी लोग ही इन्हें खरीद पाते थे । संचार की कोई व्यवस्था नहीं थी, केवल सन्देशवाहकों द्वारा ही सूचनाएं एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जा सकती थीं। चेचक जैसे भयानक रोगों से लाखों लोग मर जाते थे। पुराने समय में चिकित्सा की सफल व्यवस्था न होने के कारण संक्रामक बीमारियों में काफी लोग जाते थे।

जे. राबर्ट ओपनहिमर ने प्रथम एटम बम के परीक्षण के समय अपने मस्तिष्क में भगवद्गीता की इस पंक्ति मैं मृत्यु बन गया हूँ, विश्व का विध्वंसक बन गया हूँ को याद किया था।

एल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि विज्ञान बिना धर्म के पंगु है, और धर्म बिना विज्ञान के अंधा।

विज्ञान द्वारा मानव अंतरिक्ष तक पहुँच गया है, समुद्र को लांघ सकता है और उसकी खोज-बीन करके इसके अमूल्य खजानों को प्राप्त कर सकता है। स्वास्थ्य के लिए रोगों के कारणों और इनके उपचार के नित नये तरीकों से विज्ञान मानव की विभिन्न समस्याओं का समाधान किया है। समय और दूरी की सीमाओं को पार करके उसने संचार द्वारा विश्व के साथ सम्पर्क को सरल और शीघ्रगामी बना दिया है और विभिन्न क्षेत्रों और दिशाओं में हमारे ज्ञान में बहुत वृद्धि कर दी है। प्राकृतिक विपत्तियों का सामना करने के लिए हमें सक्षम बना दिया है और औद्योगिक तथा कृषि के क्षेत्रों में महान क्रान्ति ला दी है।

विज्ञान का एक नकारात्मक पहलू यह भी है कि यह नित नये हथियारों और युद्ध के विनाशकारी यंत्रों के आविष्कारों द्वारा यह मानवता के लिए एक भयानक संकट उत्पन्न कर रहा है। इससे सैंकड़ों प्रकार के विनाशकारी हथियार बनाये जाने लगे और अब यह स्थिति है कि तोपखाने, हथगोले और बम मानवता के लिए इस धरती को ही नरक बना देने पर तुले हुए हैं। स्वस्थ स्पर्धा की कमी अर्थात् बढ़ती प्रतिद्वंद्विता के कारण वैश्विक स्तर पर काफी अधिक पैमाने पर विध्वंशक हथियार बनाए जा रहे हैं।

प्रारम्भिक समय में इन विस्फोटकों के निर्माण का उद्देश्य था सकारात्मक तरीके से राष्ट्र का विकास, जिसकी संकल्पना कालान्तर में परिवर्तित हो गयी। यदि हम अपने ही विनाश के साधनों को बढ़ाते जाते हैं तो इसमें विज्ञान का क्या दोष है ? यदि एक ओर विज्ञान ने मृत्यु और विनाश के साधनों को पैदा किया है तो दूसरी ओर उसने इनसे बचाव के प्रभावी साधनों का भी आविष्कार किया है, जैसे गैस से बचाव के लिए गैस मास्क, टैंकों से बचाव के लिए टैंक भेदी तोपें और हवाई गोलाबारी के विरुद्ध विमान भेदी तोपें ऐसा भी पता चला है कि परमाणु बम के प्रभाव को कम करने के लिए भी प्रभावी शस्त्रों का आविष्कार हो चुका है। विज्ञान के विभिन्न आविष्कारों का दुरुपयोग करने के लिए मनुष्य जिम्मेदार है। एल्फ्रेड नोबेल ने डायनामाइट विस्फोटक का आविष्कार, खानों में काम करने वाले तथा पहाड़ी क्षेत्रों में सड़कें बनाने वाले श्रमिकों की सहायता के लिए किया था, लोगों और उनकी सम्पत्ति को उड़ा देने के लिए नहीं। अतः, आधुनिक युद्ध की तबाही के लिए मानव की विनाशकारी प्रवृत्ति ही उत्तरदायी है।

परमाणु बम में इतनी क्षमता होती है कि इसके द्वारा पैदा की जाने वाली शक्ति द्वारा चार वर्ग किलोमीटर धरती को जलाया जा सकता है और लगभग 80,000 व्यक्तियों को मारा जा सकता है, परन्तु यदि इस शक्ति को रचनात्मक कार्यों पर लगाया जाए तो इससे अद्भुत कार्य किये जा सकते हैं। एक पौण्ड यूरेनियम को यदि परमाणु ऊर्जा में परिवर्तित किया जाये तो यह 15,000 मीट्रिक टन कोयले से उत्पन्न ऊर्जा के बराबर होती है। इसलिए शान्तिप्रिय लोग परमाणु शस्त्रों की निन्दा करते हैं न कि परमाणु ऊर्जा की, जिसे कृषि, औषधि, उद्योग और सीमित स्तर पर विद्युत उत्पादन के साधन के रूप में प्रयोग में लाया जा रहा है।

इस वैज्ञानिक परिवेश में परिवर्तनशील विचारधाराओं तथा नित-नूतन तकनीकों के कारण हमारी मनोदशा में होने वाला परिवर्तन राष्ट्र की विकासात्मक रूप रेखा का निर्धारक है। अब यह हमारे हाथ में है कि इसके द्वारा मानव का पूर्ण विनाश कर दें या इसे विद्युत् के नये और शक्तिशाली साधन के रूप में प्रयोग में लाकर, मानव के श्रम को घटा दें और विश्व भर के जीवन स्तर को ऊंचा ले जाकर इस धरा को स्वर्ग बना दें। हम अब एक ऐसे कगार पर खड़े हैं जहां यदि चाहें तो परमाणु बम से विश्व को नेस्तनाबूत कर दें या परमाणु ऊर्जा द्वारा राष्ट्र का चतुर्मुखी विकास करें।

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