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Vayu Pradushan –  Manav Jati ke liye ek Khatra “वायु प्रदूषण – मानव जाति के लिए एक खतरा” Hindi Essay 500 Words.

वायु प्रदूषण – मानव जाति के लिए एक खतरा

Vayu Pradushan –  Manav Jati ke liye ek Khatra

आज के युग में मानव जाति के सामने दो बड़े खतरे हैं। पहला है शोर का संकट और दूसरा वायु प्रदूषण। वायु-प्रदूषण औद्योगिक क्षेत्रों में कारखानों, मिलों, वर्कशापों आदि द्वारा छोड़े जाने वाले धुंए से उत्पन्न होता है। स्वास्थ्य और जीवन के लिए यह एक बहुत बड़ा खतरा बन गया है।

वायु प्रदुषण के और भी कई कारण हैं। बसों, कारों, मोटर साइकिलों, स्कूटरों तथा रेल इंजनों और हवाई जहाजों के धुएँ से भी वायु प्रदूषित होती है क्योंकि ये सभी वाहन डीजल-पेट्रोल या भाप से चलते हैं। लोगों द्वारा सिगरेट-बीड़ी पीने की बढ़ती प्रवृत्ति भी वातावरण में जहर घोलने का एक कारण बन जाती है, यद्यपि यह एक छोटा सा कारण है। बड़े-बड़े कारखानों और फैक्टरियों द्वारा उत्पादित किए जाने वाले अमलों और रसायनों के कारण जो बदबू निकलती है, उनके कारण कई बार साँस लेना दूभर हो जाता है और ऐसे कारखानों में यदि कभी दुर्भाग्यवश जहरीली गैस आदि का रिसाव हो जाए तो लोगों की जानें भी जा सकती हैं जैसा कि भारत में भोपाल आदि स्थानों में हो चुका है। वैज्ञानिक प्रगति और विकास की होड़ के कारण बढ़ते प्रदूषण ने मानव जाति के स्वास्थ्य और अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा पैदा कर दिया है।

परिवहन तथा औद्योगिक दृष्टि से भी भारत अभी पूरी तरह से विकसित देश नहीं है। इसलिए हम भारतवासी अभी इस समस्या की गभ्भीरता को नहीं समझ पाये हैं। परन्तु ब्रिटेन, अमरीका, फ्रांस जैसे विकसित देशों में प्रदूषण एक विकट समस्या बन चुकी है। वहाँ पर भीड़-भाड़ वाले स्थानों में तो साँस लेना भी कठिन हो जाता’ है क्योंकि चारों ओर वातावरण धुएँ से पूरी तरह से प्रदूषित होता है। न्यूयार्क, लन्दन, और टोकियो की स्थिति का अनुमान लगाएं, जहाँ धरती पर हर समय कारों, मोटर साइकिलों, बसों तथा अन्य वाहनों की कतार लगी रहती है और आकाश पर सदा हवाई जहाज इधर-उधर मंडराते रहते हैं और शोरगुल के साथ-साथ बदबूदार गैस और धुआँ छोड़ते रहते हैं। वहाँ का शहरी जीवन नरक बनता जा रहा है और लोग इस भयानक स्थिति से ऊब गए हैं। वे ऐसे क्षेत्रों और दूषित वातावरण से भागकर खुली तथा ताजा हवा में जाने के लिए तरसते हैं, किन्तु यह कहाँ मिलेगा ?

हमसे पहली पीढ़ियों के लोगों के सामने ऐसी कोई समस्या नहीं थी। लोग पैदल या बैलगाड़ियों अथवा घोड़ों पर जाया करते थे। इसलिए धुएँ से प्रदूषण का कोई प्रश्न ही नहीं था। आज के युग की भाग-दौड़ में मनुष्य ने परिवहन के तेज से तेज साधन तो जुटा लिए हैं परन्तु दूषित वायु में रहने के कारण अपने जीवन को खतरे में डाल -लिया है। ऐसा लगता है कि यह प्रगति अब उसे कभी हवा में साँस नहीं लेने देगी।

यदि हमें इस स्थिति को और बिगड़ने से रोकना है और अपने जीवन को नरक बनने से बचाना है तो इस समस्या पर गम्भीरता से विचार करना होगा और भविष्य में प्रगति की सभी योजनाएँ बनाते समय इस पहलू पर यथोचित ध्यान देना होगा। हमारे लिए यह एक सन्तोष की बात है कि भारत सरकार इस समस्या के प्रति सजग है और इसके लिए एक अलग मन्त्रालय भी बना दिया गया है जो इस सम्बन्ध में उचित नियम बना रहा है। आशा है इसके परिणाम अच्छे निकलेंगे और हमारा देश इस खतरे से उबर पाएगा।

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