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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Mera Priya Kavi”, ”मेरा प्रिय कवि” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

मेरा प्रिय कवि

Mera Priya Kavi

 

हिन्दी साहित्य के इतिहास में अनेकों प्रतिभाशाली कवियों का उल्लेख किया गया है। उसके अतिरिक्त भी आधुनिक युग में अनेक प्रतिभाशाली कवि है। सभी कवियों की अलग अलग शैलियाँ अलग अलग विषय है, इसी कारण कोई किसी एक कवि का प्रशंसक है तो कोई दूसरे का। मुंडे मुंडे म तिर्भिन्ना। पर मुझे तो अपने समकालीन कवि मैथिली शरणजी गुप्त सर्वाधिक प्रिय है। मैं उनका ही प्रशंसक कवि समकालीन समाज का दर्पण होता है। उसके समय में जो समाज का वातावरण, समस्याएं विचार धाराएं होती है. उनका ही चित्रण या वर्णन उसकी कविता में होता है। गुप्तजी के युग में भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति का संग्राम व्यापक रूप से चल रहा था। राष्ट्र प्रेम, भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता, देश के लिए बलिदान की भावनाएं उनकी कविता की विशेषताएं हैं। भारत-भारती नामक उनका काव्य-ग्रंथ राष्ट्रीय भावनाओं को जागृत करता है। गुप्तजी हिन्दी भाषा और साहित्य के शिल्पी थे। सरल सुगम हिन्दी में उत्कृष्ट भावनाओं को संजोना उनकी कविता का प्रथम गुण है।

भारत की प्राचीन संस्कृति के पुजारी होते हुए भी नवीनता के प्रति उनका आग्रह किसी से छिपा नहीं है। “भारत-भारती’ में तत्कालीन भारत की दशा का चित्रण किया है। उसका उद्देश्य भारतीयों को देश के प्रति जागृत करना ही था। साकेत में जो आपने राम के चरित्र का चित्रण किया है वह आपकी राष्ट्रीय भावना के अनुरूप है। लक्ष्मण की पत्नी ऊर्मिला जो साहित्य मे सदा उपेक्षित रही उसका उदात्त चरित्र भी नारी जीवन के आदर्श रूप में प्रस्तुत किया है। “यशोधरा” की यशोधरा भी भारतीय साहित्य में उपेक्षित रही। गुप्त जी ने इस कमी को दूर कर उसे आदर्श नारी के रूप में प्रस्तुत किया है। गुप्त जी का काव्य लोक कल्याण की भावना का पूरक है।

गुप्त जी के स्वभाव में शिशु सुलभ सरलता, स्नेहिल आत्मीयता एवं मानवोचित विनम्रता थी। अपने इस कोमल हृदय के कारण ही मानव जीवन की कोमल भावनाओं के चित्रण करने में उन्हें सफलता प्राप्त हुई।

गुप्त जी हिन्दी साहित्य के प्रतिनिधि और लोकप्रिय कवि थे। इसी कारण उन्हें “राष्ट्रीय कवि” की उपाधि से विभूषित किया गया। साहित्य में उनकी प्रतिष्ठा को देखते हुए उन्हें संसद सदस्य भी बनाया गया था। लगभग साठ वर्षों तक वे हिन्दी साहित्य की सेवा करते रहे। अपने काव्य रत्नों से उन्होंने हिन्दी साहित्य के भण्डार को भरा। जयद्रथ वध, भारत भारती, द्वापर, पंचवटी, नहुष, अनघ, साकेत. यशोधरा आदि उनकी साहित्यिक कृतियाँ है। नारी जीवन की करुणा. देश की दुर्दशा, अस्पृश्यता निवारण, प्रकृति एवं मानव जीवन की हर झांकी उनकी कविता में मिलती है।

गुप्त जी हिन्दी के ही नही भारतीय साहित्य के गौरव थे। उन्होंने देश की जनता के हृदय पर अपना अधिकार जमा लिया था। भारतीय संस्कृति और मानवता का पुजारी एवं महान कवि होने के कारण ही मैथिलीशरणजी गुप्त मेरे प्रिय कवि बने हुए है।

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