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Posts tagged "Hindi Nibandh" (Page 16)
सबै दिन जात न एक समान Sabe din jaat na ek saman प्रस्तावना : जब हम यह कहते हैं कि सबै दिन समान नहीं होते तो हमारा तात्पर्य होता है कि व्यक्ति हर दिन एक-सी दशा में नहीं रहता और उसके दिनों में परिवर्तन होता रहता है। दिनों की परिवर्तनशीलता : हेमन्त आता है सुमनों की क्यारियाँ, तुषार आघात से झुलस जाती हैं। वृक्ष पुष्प-पत्र हीन होकर करुण उच्छ्वास लेने...
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April 7, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
अधिकार नहीं, सेवा शुभ है Adhikar nahi sewa shubh hai प्रस्तावना : सेवा मानव हृदय में जीवोपकार की पावन भावना भरकर उसे दीन-हीन प्राणियों की पीड़ा दूर करने को प्रेरित करती है और अधिकार मनुष्य को दूसरों पर शासन करने तथा आज्ञा पालन कराने का अधिकार देता है। सेवा की प्रेरणा से मानव हृदय में निष्काम-कर्म भावना की जागृति होती है और मनुष्य दयार्द्र, गद्गद् हृदय, छल-छल पुतलियों, शुभचिन्तनापूर्ण इच्छाओं, कुशलक्षेम...
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April 7, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
स्वावलम्बन की एक झलक पर न्योछावर कुबेर का कोष Swawlamban ki ek jhalak par प्रस्तावना : मानव विवेकशील प्राणी है। जिस विषय पर दूसरे प्राणी विचार नहीं कर सकते हैं, उन पर वह चिन्तन करता है। इसी कारण वह संसार के समस्त जीवधारियों में श्रेष्ठ माना जाता है। जहाँ एक ओर उसमें विद्या, बुद्धि और प्रेम आदि श्रेष्ठ गुण वर्तमान है, वहीं दूसरी तरफ वह राग, द्वेष और हिंसा आदि बुरी...
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April 7, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
नर हो न निराश करो मन को Nar ho na Nirash karo Mann ko प्रस्तावना : हिन्दुओं के धार्मिक सिद्धान्तों के अनुसार 84 लाख योनियों में मानव की योनि सर्वश्रेष्ठ है जो कि बार-बार नहीं प्राप्त होती और अच्छे कर्मों के आधार पर कभी एक बार बड़ी कठिनता से प्राप्त होती है। कबीर के मतानुसार- “मनिखा जनम दुर्लभ है, देह न बारम्बार। तरुवर से फल गिरि पड़ा, बहुरि न लागै डार।”...
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April 3, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
शठ सुधरहिं सत्संगति पाई Shath Sudhrahi Satsangati Pai प्रस्तावना : यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु के अनुसार कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अत: वह अकेले रहना नहीं चाहता है, उसे साथ चाहिए, वह संगति की अपेक्षा करता है। मानव को संगति चयन में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। बड़ा सोच-विचार कर साथियों का चयन बच्चे को बचपन ही से कराना चाहिए; क्योंकि एक बार जो संस्कार पड़ जाते हैं, वे फिर...
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April 3, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
मेरा प्रिय कवि Mera Priya Kavi प्रस्तावना : यह वह समय था जब कि साहित्य परिस्थितियों के हाथ की कठपुतली बना हुआ था। निर्गुणोपासक संतों की वाणी निष्प्रभावी हो चुकी थी । सब जगह एक कमी का अनुभव किया जा रहा था। इस कमी की पूर्ति तुलसीदास ने की । इनका स्थान विश्व के साहित्य मंच पर अद्वितीय है। इसी कारण मैं भी इन्हें अपना प्रिय कवि मानता हूँ। जन्म और...
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April 3, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
मेरा प्रिय लेखक प्रेमचन्द Mera Priya Lekhak Premchand निबंध नंबर :- 01 जीवन-परिचय : भारत के अमर कथाकार, उपन्यास सम्राट मुन्शी प्रेमचन्द का जन्म 31 मई सन् 1880 ई०, तद्नुसार श्रावण कृषक दशमी सं०1937 वि० शनिवार को काशी से 4 मील उत्तर पाण्डेयपुर के निकट लमही ग्राम में एक निम्न वर्ग के कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था। आपका बचपन का असली नाम धनपतराय था। माता का नाम आनन्दी देवी था।...
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April 3, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
उपन्यास पढ़ने से लाभ और हानि Upanyas padhne se Labh aur Hani प्रस्तावना : मनोरंजन जीवन के लिए उपयोगी हैं। वस्तुत: आज के व्यस्त जीवन में यदि मानव को एक क्षण को भी मनोरंजन न प्राप्त हो, तो उसका जीना ही भार स्वरूप हो जाएगा। मनोरंजन से मस्तिष्क को शान्ति प्राप्त होती है। वैसे वैसे मनोरंजन के साथ-ही ज्ञान प्राप्ति के साधन सत्संग और चित्रपट दर्शन आदि हैं; परन्तु ये साधन...
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April 3, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
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