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Posts tagged "Hindi Essay" (Page 149)
वन-संरक्षण की आवश्यकता Van Sanrakshan ki Avyashakta प्रस्तावना : अनादि मानव-सभ्यता संस्कृति का उद्भव और विकास वन्य प्रदेशों में ही हुआ था, इस तथ्य से सभी जन भली-भाँति परिचित हैं। वेदों जैसा प्राचीनतम् उपलब्ध साहित्य सघन वनों में स्थापित आश्रमों में ही रचा गया, यह भी एक सर्वज्ञात तथ्य है। वन प्रकृति का सजीव साकार स्वरूप प्रकट करते हैं, मानव-जीवन का भी आदि स्रोत एवं मूल हैं; उसके पालन-पोषण के उपयोगी...
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March 24, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
पेड़-पौधे और पर्यावरण Ped Paudhe aur Paryavaran प्रस्तावना : मनष्य जिस भभाग पर रहता है, स्वभावत: वहाँ के प्रत्येक जड़-चेतन प्राणी एवं पदार्थ के साथ उसका एक प्रकार का आन्तरिक सम्बन्ध जुड़ जाया करता है। प्राकृतिक पर्यावरण या उससे सम्बन्ध रखने वाले तत्त्व हैं, वे तो स्वभावतः प्राकृतिक के नियम से उसकी रक्षा किया ही करते हैं, रक्षा पाने वाला व्यक्ति भी अपने अन्तर्मन से चाहने लगता है कि वे सब...
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March 24, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
बढ़ती सभ्यता : सिकुड़ते वन Badhti Sabhyata Sikudte Van प्रस्तावना : सभ्यता या सभ्य होने कहलाने का अर्थ आज बाहरी दिखावा प्रदर्शन करना, आवश्यकताओं का अनावश्यक विस्तार और तरह-तरह की वस्तुओं का अनावश्यक रूप से संग्रह ही बन कर रह गया है। इसके लिए चाहे वास्तविक सभ्यता, सृष्टि और उस सबके आधारभूत तत्त्वों का सर्वनाश ही क्यों न हो रहा हो, इस बात की न तो किसी को चिन्ता है...
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March 24, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
गंगा का प्रदूषण Ganga ka Pradushan प्रस्तावना : “गंगा हिमालय से निकली है। हिमालय भारत की उत्तरी सीमा का प्रहरी है। गंगा जल बड़ा ही पवित्र, पापहारक माना जाता है।” इस प्रकार के वाक्य हम बचपन से ही सुनने और पढ़ने लगते हैं। भारतीय जन-मानस – में गंगा का स्थान देवी और माता के समान संस्कार रूप से बसा हुआ है। माना और कहा जाता है कि गंगा-स्नान और गंगा जलपान...
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March 24, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
प्रदूषण की समस्या Pradushan ki Samasya प्रस्तावना : मानव-जीवन की स्वास्थ्य- रक्षा, हर प्रकार की भौतिक बीमारियों एवं दुषणों से रक्षा, सब प्रकार की प्राकृतिक एवं स्वाभाविक आवश्यकताओं की पूर्ति, दीर्घ सुरक्षित जीवन आदि के लिए ठीक प्रकार से जीने एवं शान्त सुखद जीवन व्यतीत करने के लिए सब प्रकार की स्वच्छ स्वाभाविक पावनता और निर्दोष पर्यावरण का होना बहुत ही आवश्यक है। इस सब के अभाव में मानव-जीवन का...
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March 24, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
दुर्भिक्ष Durbhiksh प्रस्तावना : ऐसा कहा और माना जाता है कि घटनाएँ ही घट कर जीवन को कर्ममय एवं गतिशील बनाया करती हैं। विशेष प्रकार की घटनाएँ घट कर ही व्यापक स्तर, मानव के अन्तरंग स्वभाव, गुण-कर्म और क्षमताओं को भी उजागर कर जाया करती हैं; क्योंकि सामान्यतया हर क्षण कुछ-न-कुछ घटित होता ही रहता है। इस कारण आमतौर पर आदमी उसे भूल भी जाया करता है; किन्तु कई बार कुछ...
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March 24, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
बाढ़ एक प्राकृतिक प्रकोप Badh Ek Prakritik Prakop प्रस्तावना : ‘मनुष्य और प्रकृति का सम्बन्ध आरम्भ से ही चला आ रहा । है। प्रकृति के आँगन में ही आँखें खोल, । चलना- फिरना सीख धीरे-धीरे प्रगति और विकास किया । आज भी मनुष्य मुख्य रूप से जिन वस्तुओं के सहारे । जीवित है, अपना जीवन चला रहा है, वे सभी प्रकृति की ही महत्त्वपूर्ण देन हैं। अन्न-जल, फल-फूल और...
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March 24, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
बढ़ती महँगाई Badhti Mehangai प्रस्तावना : हमारे निजी स्वार्थों एवं संकीर्ण मनोभावनाओं ने हमारे सम्मुख अनेक नवीन समस्याओं को जन्म दिया है, इन्हीं समस्याओं में ‘मूल्य वृद्धि’ अनाहूत अतिथि के समान हमारे जीवन में आकर बलात् बैठ गई है। हमारे भारतवर्ष में तो इस मूल्य वृद्धि से अन्य देशों की अपेक्षा जन-जीवन बहुत ही त्रस्त हो गया है। इस महँगाई ने सम्पूर्ण समाज के ढाँचे को ही जर्जर कर दिया है।...
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March 24, 2019 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment