Shanka Samadhan, “शंका समाधान” Hindi motivational moral story of “Rishi Janak” for students of Class 8, 9, 10, 12.
शंका समाधान
Shanka Samadhan
ऋषि जनक के आध्यात्मिक उपदेश से सभासदगण प्रभावित हुए। सभी ने धर्म व उनके धार्मिक जीवन की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इतने में एक सभासद बोले, “राजन! धर्म में आपकी आस्था अनुकरणीय है। चाहता तो मैं भी बहुत हूँ, लेकिन गृहस्थी ने कुछ इस तरह से बाँध रखा है कि धर्म कार्य के लिए समय ही नहीं निकल पाता है।” यह सुन कर दो-चार अन्य सभासदों ने भी इस समस्या का समर्थन किया। जनक उनकी बातें चुपचाप सुनते रहे और मुस्कराते रहे। उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की।
इसी तरह बैठे-बैठे काफी समय गुजर गया। सभा का समय समाप्त हो गया। लेकिन राजा जनक अपने आसन से उठे ही नहीं। राजा के उठे बिना सभा विसर्जित नहीं हो सकती थी। उकता कर कुछ सभासदों ने पूछा, ” क्या महाराज अभी सभा जारी रखना चाहते हैं?” जनक जी कहने लगे, “सज्जनों, मैं तो उठना चाहता हूँ, किन्तु सिंहासन ने मुझे पकड़ रखा है। इसलिए मैं उठ नहीं पा रहा हूँ।” यह सुन सभासद कहने लगे,” श्रीमान, यह कैसे संभव हो सकता है कि सिंहासन किसी को पकड़ ले। “जनक जी तुरन्त बोल उठे, “तब यह भी कैसे संभव है कि गृहस्थी किसी को पकड़ रखे और उसे धर्म कार्य न करने दे।” सभासदों को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया।