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Railgadi Se Yatra “रेलगाड़ी से यात्रा” Hindi Essay, Nibandh 900 Words for Class 10, 12 Students.

रेलगाड़ी से यात्रा

Railgadi Se Yatra

रेलगाड़ी की यात्रा एक बहुत ही लाभदायक अनुभव है। इसमें हम विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलते हैं। यात्रियों के लिए जातियाँ अर्थहीन हो जाती हैं। वे एक दूसरे के प्रति सहानुभूतिशील हो जाते हैं। रेलगाड़ी की यात्रा हमारे दृष्टिकोण को बढ़ाती है। इससे एकता और एक होने की भावना पैदा होती है। मुझे भी एक रेल यात्रा करने का अनुभव प्राप्त हुआ था।

मुझे मेरे बड़े भाई ने शिमला आने का न्यौता दिया। मैं इस विचार से उछल पड़ा और अपने पिता से शिमला जाने की अनुमति माँगने लगा। वे खुशी से मान गए। मैंने अपना बिस्तर, गर्म कपड़े और कुछ पुस्तकें पैक कर लिया।

मैं एक ऑटो रिक्शा द्वारा समय पर स्टेशन पहुँच गया। टिकट लेकर मैं प्लेटफार्म पर गया। ट्रेन रात के साढ़े नौ बजे आयी। मुझे रेलगाड़ी में चढ़ने में कुछ दिक्कत हो रही थी किन्तु मेरे कुली ने बहुत मदद की। इस मदद के लिए मैंने उसे उसकी मजदूरी का दुगुना पैसा दिया। कुछ ही देर में रेलगाड़ी ने सीटी बजाई और चल पड़ी।

हावड़ा से आने वाले यात्री आराम से लेटे हुए थे। बैठ कर मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैंने एक पत्रिका निकाली और उसे पढ़ने लगा। मेरे सहयात्रियों ने भी जागने के लिए कुछ दूसरा उपाय किया। उनमें से कुछ मेरी तरह अखबार या पत्रिका पढ़ने लगे। कुछ ताश खेलने लगे। मौसम बहुत ही अच्छा था और खिड़की के पास बैठकर मैं काफी आराम अनुभव कर रहा था।

एक यात्री जो मेरे बगल में बैठा था, करनाल में उतर गया। मैंने उस जगह अपने शरीर को कुछ और फैलाने लायक पाया। एक कप चाय पीकर मैंने सोने की कोशिश की। प्रत्येक स्टेशन में मुझे सोने में बाधा होने लगी। चण्डीगढ़ में काफी संख्या में यात्री उतरे और मैं लेट कर सोने में समर्थ हो गया। कुछ ही मिनटों में मैं गहरी नींद में सो गया।

मेरी नींद अगले दिन सुबह कालका में खुली। मुझे यहाँ से शिमला के लिए दूसरी गाड़ी पकड़नी थी। मैं छोटी लाईन की ट्रेन के एक डिब्बे में चढ़ गया तथा मुझे बैठने की जगह मिल गयी।

चूँकि रेलगाड़ी को चढ़ाई पार करनी थी इसलिए इसकी गति बहुत की कम थी। बाहर चारों ओर का दृश्य अत्यन्त ही मनोरम था। दूर-दूर तक ऊँचे पहाड़ थे। यत्र-तब मुझे धान और सब्जियों के छोटे खेत दिखाई दे रहे थे। लगभग आधे घण्टे के बाद हमने पहली सुरंग को पार किया। अब रेलगाड़ी टेढ़े-मेढ़े रास्ते से नीचे की ओर उतरने लगी। ऊँचे-ऊँचे चीड़ के वृक्ष नजर आने लगे। कहीं-कहीं रेल की पटरियाँ पहाड़ की ऊँची दीवारों से सटी हुई थीं।

सोलन में मुझे कुछ ठण्ड का आभास हुआ और मैंने अपना गर्म कोट पहन लिया। सोलन के आगे आसमान गहरे काले बादलों से ढका हुआ था। रेलगाड़ी दोपहर में शिमला पहुँची। मेरे भाई स्टेशन में मुझे लेने आए हुए थे। हमने एक कुली लिया और सुरक्षित घर पहुँच गए। 58. कलम तलवार से बलवान है

बिस्मार्क ने अपने शिक्षक फादर रोडार्ड से कहा “यदि मुझे एक तलवार मिले, तो मैं उन्हें मार दूंगा। ओ मेरे शक्तिशाली मालिक! किन्तु यदि आप मुझे एलेक्जेण्डर की तलवार से बलवान कलम देंगे तो मैं उसका नाम अनश्वर तथा तरोताजा रखूँगा।”

तलवार कमल से बलवान है या यह कलम है जो तलवार को पराजित कर सकती है, इस विवाद का निर्णय सीधे होगा। अब यह सर्वव्यापक स्थापित सत्य है कि कलम की शक्ति और महत्त्व तलवार की तुलना में ज्यादा है। कुछ बुद्धिहीन लोगों को छोड़कर इस आधुनिक विश्व में कोई नहीं है जो कलम पर तलवार के आधिपत्य की वकालत करे। हाँ, यह सच है कि सभ्यता विकसित होने से पहले जब शक्ति द्वारा हक का निर्णय होता था तो लोग कलम की तुलना में तलवार को ज्यादा महत्त्व देते थे।

सभ्यता के प्रारभ्भ से ही मानव जाति तलवार की उपासना की सच्चाई की प्रत्यक्षदर्शी रही है। हालाँकि आगे चलकर यह पूर्णरूप से तुच्छता में लुप्त हो गयी। एलेक्जेण्डर, सीजर, नीरो, तैमूर, बाबर और अन्य कई महान और शक्तिशाली विजेताओं ने, जो तलवार की सहायता से आगे बढ़े, अपनी विजय से प्राप्त अल्पकालीन गौरव को बनाए नहीं रख सके। निःसन्देह जब तक वे जीवित रहे, उनकी ख्याति बनी रही। हालाँकि यह भय अनुप्राणित ख्याति थी। किन्तु उनकी मृत्यु के बाद उन्हें अपराधियों और खून बहाने वालों के रूप में देखा गया। आज भी उन्हें शांति का दुश्मन कहा जाता है। चगेज खाँ, हलाकू और चार्लमैन को आज युद्ध की दुष्टात्मा के रूप में निन्दित किया जाता है।

दूसरी तरफ होमर, कालीदास, तुलसीदास, शेक्सपियर, फिरदौसी, मिल्टन और टैगोर जिन्होंने अपनी कलम से नया ज्ञान और नवचेतना दी, उन्हें श्रद्धापूर्वक पूज्य समझकर याद किया जाता है। आज ऐसा कौन है जो इन कलम चलाने वालों की निन्दा कर सके ? इन कलम के बलवान नायकों द्वारा प्राप्त महान बुद्धिजीवी विजय कभी तुच्छता में क्षीण नहीं होगी। सर्वनाश की कगार पर भी, विचारों और धारणाओं के इन अधिपतियों के नाम ताजे रहेंगे। उनके नाम विश्व विकास में स्वर्ण अक्षरों में सदैव लिखे रहेंगे।

इसके अतिरिक्त आधुनिक युग में हम युद्ध और हिंसा को पुरानी और निन्दनीय बात घोषित करने के लिए कृतसंकल्प हैं; वर्तमान समय में हम एक ऐसे युग की तरफ देख रहे हैं जो शांति और शांतिमय सहअस्तित्व से परिपूर्ण हो। ऐसे युग में तलवार की शक्ति का कोई महत्त्व नहीं रहेगा। ऐसे दिनों में तलवार की बात करना एकदम मूर्खता होगी।

हम सचमुच इस निर्णय पर पहुँच गये हैं कि कलम तलवार से ज्यादा बलवान है और इसका मानव सभ्यता पर हमेशा रचनात्मक और चिरस्थायी प्रभाव होता है।

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