Hindi Moral Story, Essay “Hikmat” “हिकमत” of “Sant Gadge Maharaj” for students of Class 8, 9, 10, 12.
हिकमत
Hikmat
महाराष्ट्र के संत गाडगे महाराज नांदेड़ जिले में स्थित एक ग्राम में गए। तब उस इलाके पर निजाम का अधिकार था और उसने हरि-कीर्तन पर पाबंदी लगा दी थी, क्योंकि उसे डर था कि कहीं इससे जाति-द्वेष न फैले; मगर इसके बावजूद गाडगे महाराज ने कीर्तन की घोषणा कर दी। उनका कीर्तन सुनने के लिए लोग झुंड के झुंड एकत्रित होने लगे । बात पुलिस तक जा पहुँची और कीर्तन रोकने के लिए संगीनधारी सिपाहियों को भेजा गया। पुलिस अधिकारी महाराज के पास आया और उसने सलाम किया। प्रत्युत्तर में उन्होंने भी प्रणाम किया और पूछा, “कहिए क्या हुक्म है?”
“गाडगे बाबा आप ही हैं न?” अधिकारी ने पूछा ।
“हाँ, लोग मुझे गाडगे बाबा कहते हैं।” बाबा ने शांत स्वर में उत्तर दिया।
“आज क्या आप तकरीर-भाषण करने वाले हैं?”
“कीर्तन करने का मेरा विचार है।”
“मगर क्या आपको मालूम नहीं कि इस पर पाबंदी लगी हुई है?” “आपके सुपरिण्टेण्डेंट साहब को मेरा आदाब अर्ज कह देना।” “आप तो उर्दू अच्छी बोल लेते हैं!”
“क्या आप मुसलमान हैं?”
“हाँ!”
“तब तो कुरान रोज पढ़ते होंगे?” “कभी-कभी।”
“जानते हो, मुहम्मद साहब ने कुरान में क्या कहा है?” “आप किस सिलसिले में कह रहे हैं, मैं नहीं समझा।”
“अच्छा बताओ, दुनिया को किसने बनाया?” “अल्ला मियाँ ने।”
“अच्छा, आसमान को?”
“उसी ने ।”
“दरिया को ?”
“उसी ने बनाया ।”
“और हिंदू-मुसलमानों को ?”
“ये भी उन्हीं की देन है।”
“मुसलमानों को नमाज पढ़नी चाहिए न ?” “जरूर ।”
“और हिंदुओं को ?”
“वे चाहे, तो इबादत कर सकते हैं।”
“और पूछूं?”
“पूछिए।”
“मरने के बाद क्या होगा?”
“मेरी लाश दफनायी जाएगी।”
“उस लाश का क्या होगा?”
“वह मिट्टी हो जाएगी।”
“हिंदुओं की लाश की भी मिट्टी होती होगी?” “जी हाँ ।”
“तब तो ये दोनों एक समान होंगे?”
“बेशक!”
“अरे, रात हो गई! आपके नमाज का वक्त तो हो ही गया होगा ?”
“हाँ, मगर मैं थोड़ी देर से पढ़ेगा।”
“क्या मैं थोड़ी इबादत कर लूँ?”
“जरूर ! इबादत पर पाबंदी नहीं, कीर्तन पर है।”
फिर लोगों को संबोधित कर बाबा बोले, “आइकल हो बापा हो ! साहेबान भजन कर्याला परवानगी देल्ली ओ, बोला समधिजनं- ‘देवकीनंदन गोपाला, नामदेव तुमाराम’ (सुना आप लोगों ने! साहब ने भजन करने की अनुमति दे दी है, आओ भजन करें…) ।”
और वे भजन के साथ ईश्वर महिमा का बखान करने लगे। इस प्रकार उन्होंने बड़ी चतुराई से उस पुलिस अधिकारी के साथ संभाषण से ही कीर्तन प्रारंभ कर दिया और नियत समय में ही समाप्त किया, मगर वह अधिकारी इसे बिलकुल समझ नहीं सका, क्योंकि उसकी धारणा थी कि कीर्तन में पेटी, तबला, सितार का ही सहारा लिया जाता है।






















