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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Vidyarthi aur Anushasan”, ”विद्यार्थी और अनुशासन” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

विद्यार्थी और अनुशासन

Vidyarthi aur Anushasan

Top 5 Essays on ” Vidyarthi aur Anushasan”

निबंध नंबर : 01

विद्यार्थी दो शब्दों से मिलकर बना शब्द है। विद्या + अर्थी । विद्यार्थी जो व्यक्ति विद्यार्जन में लगा है, वह किसी भी अवस्था का हो – बालक हो या वृद्ध – वही विद्यार्थी कहलाता है।

यह सर्वविदित है कि विद्या प्राप्ति के लिए शान्त एवं स्वच्छ वातावरण की आवश्यकता होती है। विद्या प्राप्ति के लिए एकाग्रता अनिवार्य है। अनुशासन ही इस एकाग्रता को प्रदान करता है।।

आज के वातावरण में छात्रों के अनुशासन भंग करने के कई कारण है। राजनीती ने पाठशालाओं में प्रवेश कर लिया है। राजनीतिक नेता छात्रों को अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग करते हैं। उनसे आंदोलनों में, धरनों में काम लेते हैं। इस प्रकार के कार्यों में भाग लेने के कारण अनुशासन हीनता बढ़ती है। बार बार इन आंदोलनों में भाग लेने से अनुशासन हीनता स्वभाव बन जाती है।

नेता लोग विद्यार्थियों से काम लेते हैं तो उनकी पढ़ाई में व्यवधान आता है। उनको परीक्षा में नकल करने का आश्वासन मिल जाता है। वे पढ़ाई से उदासीन हो जाते हैं। उनको विश्वास हो जाता है कि नेता जी की कृपा से पास तो हो ही जाएँगे। पढ़ने की आवश्यकता ही क्या है? यही भावना अनुशासन हीनता को जन्म देती है। वैसे अनुशासन की कमी के लिए शिक्षक और अध्यापक दोनों ही समान रूप से उत्तरदायी हैं। जब से शिक्षा व्यापार का रूप ले चुकी है तभी से गुरु और शिष्य के संबन्धों में अंतर आ गया है। प्राचीन काल में गुरु ओर शिष्यमें पारिवारिक सम्बन्ध होता था। आश्रम की पाठशालाएं होती थी, जिनमें शिष्य गुरु के परिवार का अंग होता था। चौबीसों घण्टे गह की दृष्टि में रहता था। उस समय आदर्श अनुशासित छात्र होते थे। आज शिक्षा व्यवसाय बन गई है। गुरु केवल धन कमाने के लिए पढाते हैं। छात्र विद्या के खरीद दार बन गए हैं। पैसों। शिक्षा प्राप्त करके वे दुकानदार और ग्राहक की श्रेणी में आ गए हैं। गुरु को विद्यार्थी की चिन्ता नहीं रही। विद्यार्थी को गुरु का सम्मान नहीं रहा। बढ़ती हुई अनुशासन हीनता की जड़ यही है। आज के समाज में बढ़ती हुई। अनैतिकता भी इसी कारण है।

बहुधा देखा जाता है किसी अध्यापक की कक्षा में अनुशासन रहता है। विद्यार्थी शान्ति से पाठ पढ़ते एवं अध्ययन करते हैं। किसी अध्यापक की कक्षा में अनुशासन रहता ही नहीं। इसका कारण छात्र है या अध्यापक। इस प्रश्न का समाधान छात्र इस प्रकार करते हैं। – सभी अध्यापकों की कक्षा में हम शान्ति से पढ़ते हैं। इन विशेष अध्यापक की कक्षा में ही अशान्ति क्यों होती है। स्पष्ट है अध्यापक में ही कुछ दोष है। संभव है उन्होंने अध्यापन कार्य में रुचि न रहने पर भी जीविकोपार्जन के लिए यह व्यवसाय चुना है।

अनुशासन रखने के लिए प्रथम आवश्यकता है योग्य एवं अध्यापन में रुचि रखने वाले शिक्षकों का होना। इससे भी अधिक आवश्यक है। गुरु शिष्य में व्यक्तिगत संबंन्धोंकी स्थापना। जिन पाठशालाओं की कक्षाओं में विद्यार्थियों की संख्या सीमित रहती है, उनमें ही गुरु शिष्य का व्यक्तिगत संबन्ध स्थापित हो सकता है। योग्य अध्यापक होने पर अनुशासन की समस्या ही उत्पन्न न होगी। प्राचीन काल के आश्रमों की परंपरा फिर से स्थापित होने पर ही बढ़ती हुई अनुशासन हीनता को रोका जा सकता है। वर्तमान काल में आवासीय पाठशालाओं का प्रयोग प्रारंभ किया गया है।

सरकार की ओर से आवासीय स्कूल खोले गए हैं। उनकी संख्या भी बढ़ रही है। वहाँ अनुशासन की समस्या नहीं आरही है। इसका एक कारण यह भी है कि आवासीय पाठशालाओं के लिए छात्रों का चुनाव शिक्षा में उनकी अभिरुचि की परीक्षा करके किया जाता है। ऐसी पाठशालाओं के परीक्षा परिणाम भी उत्साहजनक हैं। ये पाठशालाएँ आदर्श सिद्ध हो रही हैं। पर बढ़ती हुई जन संख्या के अनुपात से ऐसी पाठशालाओं की संख्या में वृद्धि के लिए देश में पर्याप्त साधन नहीं हैं।

एक अध्यापक से प्रश्न किया गया कि आज के छात्रों में उदंडता अनुशासन हीनता आप लोगों के रहते हुए भी क्यों बढ़ रही है। उनका उत्तर था – जब समाज में ही अनुशासन हीनता व्याप्त हो तो विद्यार्थी इससे कैसे अछूते रह सकते हैं। हम पाठशाला में उनका नैतिक आचारण सुधारने का प्रयत्न करते हैं। पर समाज में जाकर उसका प्रभाव समाप्त हो जाता है। पाठशाला में छात्र केवल छः सात घंटे रहता है। उसका शेष समय सामाजिक वातावरण से प्रभावित होता है। हमारे छः सात घण्टे के प्रभाव को समाज अपने प्रभाव से नष्ट कर देता है। अतएव छात्रों में अनुशासन हीनता के लिए समाज ही उत्तरदायी है। समाज सुधार होने से ही छात्रों में अनुशासन प्रियता का विकास हो सकता है।

निबंध नंबर : 02

विद्यार्थी और अनुशासन

Vidyarthi aur Anushasan

विद्यार्थी का अर्थ है विद्या पाने का इच्छुक । विद्या का अर्थ केवल कुछ पुस्तकें पढकर परीक्षाएँ पास कर लेना ही नहीं है, बल्कि अपने बाहरी-भीतरी व्यक्तित्व को उजागर कर के सभी प्रकार की सार्थक योग्यताएँ पाकर के जीवन को सुखी और सन्तलित बनाना भी है। यह सन्तुलन केवल पुस्तकें पढते जाने से नहीं अपने तन-मन तथा सभी इन्द्रियों को, मस्तिष्क को भी अनुशासित रखने का अभ्यास कर के ही पाया जा सकता है। इसी कारण विद्यार्थी और अनुशासन को एक दूसरे का पूरक माना जाता है तथा एक-दूसरे के साथ जोड़कर देखा जाता है।

अनुशासन का अर्थ है शासन के अनुसार। शासन का अर्थ यहाँ पर सरकार न हो कर जीवन और समाज में जीने-रहने के लिए बनाए गए लिखित-अलिखित नियम हैं । व्यक्ति घर-बाहर जहाँ भी हो, वहाँ के शिष्टाचार का मानवीय गुणों और स्थितिपरक आवश्यकताओं का ध्यान रखना ही वास्तव में अनुशासन कहलाता है। विद्यार्थी को मुख्य रूप से अपने विद्या क्षेत्र एवं घर संसार में ही रहना होता है। विद्या क्षेत्र या विद्यालय वास्तव में वह स्थान है कि जहाँ रह कर एक अच्छा विद्यार्थी अन्य सभी क्षेत्रों के अनुशासन के नियमों को जान-समझ कर उन पर आचरण का अभ्यास कर अपने भावी जीवन के लिए भी सन्तुलन पा सकता है। विद्यालय में तरह-तरह की रुचियों और स्वभाव वाले साथी-सहपाठी हुआ करते हैं। विद्यार्थी जीवन की सभी प्रकार की उचित आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए उन सभी के साथ उचित व्यवहार करना ही वास्तव में अनुशासन है। गुरुजनों अर्थात् बड़ों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए. इसकी सीख भी सरलतापूर्वक विद्यालयों में प्राप्त हो जाया करती है।

दूसरा क्षेत्र है घर-परिवार और उसके आस-पास का। जो विद्यार्थी अपने विद्या क्षेत्र में सही और सन्तुलित शिक्षा प्राप्त करता है, अपना व्यवहार एवं आचार भी सन्तुलित रखा करता है, घर-परिवार में आकर उन सब तथा आसपास वालों के प्रति उसका व्यवहार स्वयं ही सन्तुलित हो जाया करता है। यह सन्तुलन ही वास्तव में अनुशासन है। आदमी की पहचान है। उस के जीवन की सफलता-सार्थकता की कुंजी है। उसकी पूर्णता भी है। याद रहे. अनुशासित व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में शिक्षित भी कहलाता है। शिक्षा अपने आप नम्र बनाकर सम्मान का अधिकारी बना देती है। सम्मानित व्यक्ति के लिए कुछ भी प्राप्त कर पाना असंभव या कठिन नहीं रह जाता। इस प्रकार एक अनुशासन ही वह मूल धरातल है, जिस पर खड़े हो और शिक्षा प्राप्त कर प्रत्येक विद्यार्थी अपनी भावी सफलता के द्वार खोल लेता है। अन्य कोई रास्ता नहीं।

निबंध नंबर : 03

 

विद्यार्थी और अनुशासन

Vidyarthi aur Anushasan

 

  • विद्यार्थी और अनुशासन का अर्थ।
  • अनुशासन के प्रकार।
  • विद्यार्थी जीवन में अनुशासन की आवश्यकता।
  • विद्यार्थी जीवन में अनुशासनहीनता के कारण।
  • परिणाम

‘अनुशासन’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है—अनु + शासन अर्थात् शासन के पीछे चलना, नियमबद्ध जीवन यापन करना। अनुशासन दो प्रकार का होता है बाह्य अनुशासन तथा आत्मानशासन। जब कानून या दंड के भय से नियमों का पालन किया जाता है, तो उसे बाह्य अनुशासन तथा जब स्वेच्छा से नियमों का अनुकूल आचरण किया जाए, तो इस स्थिति को आत्मानुशासन कहा जाता है। इन दोनों में आत्मानुशासन श्रेष्ठ है। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन की नितांत आवश्यकता होती है क्योंकि जीवन के इसी काल में व्यक्ति संस्कार ग्रहण करता है, जो जीवनभर उसके साथ चलते हैं। विदयार्थी जीवन में जो विचार, गुण या अवगुण विकसित हो जाते हैं, वे जीवनभर उसका साथ नहीं छोड़ते, इसीलिए प्राचीनकाल में विद्यार्थी को गुरुकुलों में गुरु के कठोर अनुशासन में रखा जाता था। दुर्भाग्य से आज का विद्यार्थी अनुशासनहीन है। समाज में नैतिक मल्यों का ह्रास, दूषित शिक्षा पद्धति, विदेशी संस्कृति का दुष्प्रभाव, फैशन आदि विद्यार्थी को अनुशासनहीन बना रहे हैं। छात्रों में अनुशासन की भावना लाने के लिए सर्वप्रथम शिक्षा प्रणाली में सुधार आवश्यक हैं। इसमें नैतिक शिक्षा को भी स्थान दिया जाना चाहिए। विद्यार्थियों को राजनीति से दूर रखा जाए, ऐसी विदेशी फिल्मों पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए जिनका दुष्प्रभाव विद्यार्थियों के चरित्र पर पड़ रहा है। माता-पिता को भी प्रारंभ से ही अपने बच्चों को अनुशासन में रहने की प्रेरणा देनी चाहिए।

निबंध नंबर : 04

विद्यार्थी और अनुशासन

Vidyarthi aur Anushasan

अनुशासन का अर्थ परतन्त्रता नहीं किन्तु नियम में रहना है। नदी की धारा जब तक दो तटों में बंध कर चलती है तब तक सब के लिये सुखप्रद रहती है और उसका जल भी निर्मल रहता है। जब वही धारा अनुशासन और मर्यादा विहीन होकर तटों को तोड़ कर फैलने लगती हैं, तो पास-पड़ोस के खेतों और गांवों को ले डूबती है तथा अपना जल भी गंदा कर लेती है। ठीक यही दशा विधि और निषेध के अनुशासन में बंधे हुए और अनुशासन विहीन व्यक्ति के जीवन की है। अनुशासन में रहने वाला व्यक्ति अपने कार्य समाज पर उचित ढंग से निपटा कर अपना तथा समाज का हित करता है। इसके विपरीत अनुशासन का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति दूसरों के लिए कांटे बोता है।

अनुशासन के पालन का पाठ विद्यार्थी अवस्था में ही सीखा जा सकता है। स्कूल में आने पर ही बच्चे की अनियत्रित स्वच्छंदता पर कुछ बंधन लगने आरम्भ होते हैं और उसे कुछ नियम पालने पड़ते हैं। कच्ची टहनी को जिस ओर मोडे, मुड जाती है। कच्ची मिट्टी के बर्तन पर लगाई गई छाप पकने पर भी बनी रहती हैं। इसी प्रकार विद्यार्थी अवस्था में अनुशासन का पालन करने पर जीवन भर वह अभ्यास बना रहता है।

विद्यार्थी को पाठशाला में रहते हुए वहाँ के नियमों का पूर्णतया पालन करना चाहिए। उन नियमों की अवहेलना करने वाला विद्यार्थी संस्था के कार्य में बाधा डालने के साथ-साथ अपने आप को भी हानि पहुँचाएगा। माता-पिता की आज्ञा का पालन, घर पर करने के लिए मिले हुए काम को नियमित रूप से करना. अपने सहपाठियों के साथ लड़ाई-झगड़ा न करके मित्रतापूर्ण व्यवहार करना आदि सभी बातें अनुशासन के ही अन्तर्गत हैं।

एक विद्यार्थी घर से तैयार होकर स्कूल या कॉलेज की ओर चलता है तो रास्ते कोई मित्र या परिचित मिल जाता है। गपशप चलती है और वह विद्यार्थी समय पर विद्यालय नहीं पहुँचता तो यह उसकी स्वतन्त्रता नहीं है। इसी तरह जो विद्यार्थी कॉलेज में अनुपस्थित रह कर फिल्म देखते हैं. किसी बगीचे में मटरगश्ती करते हैं। वे स्वतन्त्रता नहीं स्वेच्छाचारी है। विद्यार्थी अवस्था में पक चुकी ऐसी बुरी आदतें फिर जीवन भर उनके साथ चलती हैं और वे अपना कोई भी काम ठीक ढंग से नहीं कर पाते। यदि देश का हर नागरिक ऐसा ही हो तो उस देश का रक्षक प्रभु ही है।

विश्व में उन्नति के शिखर पर पहुँचने वाली सभी जातियों का इतिहास गवाह है कि वे अनुशासन प्रिय रही हैं। उदाहरण के लिये युद्धोपरांत जर्मनी और जापान पर ध्यान डालें। युद्ध से बुरी तरह ध्वस्त ये देश आज औद्योगिक और आर्थिक दृष्टि से संसार के अन्य देशों की तुलना में भी कहीं समुन्नत हो चुके हैं ; इस का मूल कारण अनुशासन ही है।

अनुशासन में रहने से विद्यार्थियों को लाभ ही पहुँचता है। वे अपने लक्ष्य विद्या-प्राप्ति में सफल रहते हैं और गुरुजनों का स्नेह भी उन्हें प्राप्त होता है। नकल करके अनुशासनविहिन विद्यार्थी भी डिग्रियाँ तो पा लेते हैं परन्तु न तो वे योग्य बन पाते हैं और न ही उसकी प्रतिष्ठा होती है। अनुशासन में रहने वाले विद्यार्थी ही अच्छे नागरिक बन कर देश और समाज को उन्नति की ओर ले जा सकते हैं।

वैसे तो देश के प्रत्येक नागरिक को अनुशासन में चलना चाहिए, परन्तु विद्यार्थियों के लिए तो अनशासन बहुत आवश्यक है। विद्यार्थियों के अनुशासनहीन 8/का अर्थ है देश के भविष्य का अनुशासन-रहित अर्थात् अव्यवस्थित होना। किसी देश के अनुशासन-रहित होने का एक ही परिणाम होता है-सर्वनाश। अतः यदि हम कठिनाईयों और बलिदानों से प्राप्त की गई स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखना चाहें तथा देश को समन्नति की राह पर ले जाना चाहें तो यह अनिवार्य है कि हमारे देश का विद्यार्थी अनुशासन की महिमा को समझ कर उसे अपने जीवन में स्थान दें।

 

निबंध नंबर : 05

 

विद्यार्थी और अनुशासन

Vidyarthi aur Anushasan

विद्यार्थी अथवा छात्र का अर्थ है-विद्या को मांगने या चाहने वाला। अनुशासन का अर्थ है-नियमों के अनुसार चलना। विद्यार्थी और अनुशासन का गहरा संबंध है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। विद्या, विद्यार्थी के लिए उन्नति-प्रगति के द्वार खोलती है तो अनुशासन उसके जीवन को संयमित बनाता है। विद्या और अनुशासन दोनों का लक्ष्य जीवन को सफल और सुविधापूर्ण बनाना है। किसी भी राष्ट्र समाज या संस्था की उन्नति उसके नागरिकों तथा सदस्यों की अनुशासन बद्धता पर निर्भर होती है। इसीलिए कहानी है-

राष्ट्रोन्नति का आधार,

मानवजीवन का प्राण,

देश के नवनिर्माण का संबल क्या है?

केवल अनुशासन है।”

अनुशासन दो प्रकार का होता है- आंतरिक या आत्मानुशासन तथा बाह्यनुशासन। अपनी इच्छा से नियमों का पालन करना। समाज द्वारा बनाए गए मान दंडों के अनुसार स्वेच्छा से जीवनयापन करना, अपने कार्यों को नियंत्रण में रखना-आंतरिक अनुशासन कहलाता है इसके विपरीत कानून के भय से नियम पालन बाह्य अनुशासन है। दंड के भय से अनुशासन कर उदाहरण चौराहे पर देखा जा सकता है। पुलिस के सिपाही के भय से लोग लालबत्ती पर रुक जाते हैं और हरी होने पर चलते हैं परंतु जिस चौराहे पर पुलिस की व्यवस्था नहीं होती वहाँ यातायात अनियंत्रित हो जाता है, इन दो प्रकार के अनुशासन में आंतरिक या आत्मानुशासन श्रेष्ठ है।

विद्यार्थी के लिए अनुशासित होना परम आवश्यक है। अनुशासन से विद्यार्थी को ही लाभ है। विद्यार्थी जीवन में तो इसकी सर्वाधिक महत्ता है विद्यार्थी जीवन ही वह काल है जिसमें बालक सामाजिक अनुशासन का पाठ पढ़ता है। इसी काल के द्वारा विद्यार्थी में अनुशासन के द्वारा नैतिक मूल्यों का विकास किया जा सकता है। जिस प्रकार एक मकान की स्थिरता उसकी नीव पर आधारित होती है। उसी प्रकार मानव-जीवन की समृद्धि, सफलता तथा उन्नति उसके विद्यार्थी जीवन पर टिकी होती है। यही कारण था कि प्राचीन काल में विद्यार्थी को नगरों से दूर गुरूकुलों में विद्या ग्रहण करने भेजा जाता था वहाँ गुरू उसे अनुशासित तथा संस्कारित करके भेजते हैं।

आज जहाँ भी देखों वहीं अनशासनहीनता का बोल-बाला है। समाज के हर क्षेत्र में तोड-फोड़ करना, भष्ट्राचार, बेईमानी, हड़ताल करना तथा अपराधों का बाहुल्य है। लोग अपने संस्कार, मर्यादा तथा संस्कृति को भुलाकर समाज विरोधी कार्यों में लीन हैं। अनुशासनहीनता सुरसा के मुख की भाँति बढ़ता जा रहा है।

विद्यार्थी वर्ग की अनुशासनहीनता से अछूता नहीं है। आजकल विद्यार्थी विद्या का अर्थ करने का इच्छुक न होकर विद्या की अर्थी निकालने वाला बन गया है। विद्यार्थियों की उदंडता शिक्षा के प्रति नकल करना, अपने से बड़ों का सम्मान न करने की आदत, उसकी फैशन परस्ती, मद्यपान, धूम्रपान आदि की लत, नैतिक मूल्यों का ह्रास आदि उनकी अनुशासन हीनता का ही द्योतक है। इस अनुशासनहीनता के कारण छात्र अपने वास्तविक उद्देश्य से भटक गया है। वह नहीं जानता कि अनुशासनहीन विद्यार्थी आगे चलकर न तो अपना भला कर सकता है और न ही समाज और राष्ट्र की सेवा।

छात्र-वर्ग इस अनुशासनहीनता के लिए केवल छात्र ही दोषी हो ऐसी बात नहीं। इसके लिए हमारी दुषित शिक्षा पद्धति राजनैतिक दलों का छात्रों की अपरिपक्व बुद्धि से लाभ उठाकर उन्हें अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग किया जाना, दूरदर्शन तथा चलचित्रों के द्वारा हो रहा है सांस्कृतिक प्रदूषण भी किसी हद तक जिम्मेदार है। आज शिक्षा एक पवित्र कार्य न रहकर व्यवसाय बन गई है। शिक्षित युवकों का रोजगार न पा सकना भी उन्हें अनुशासनहीन बना देता है। अच्छे आचार्यों का अभाव भी इस समस्या को बढ़ा रहा है क्योंकि वे स्वयं छात्रों के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करने मे असमर्थ है।

अनुशासन समाज का एक आवश्यक गुण है। जब भी किसी राष्ट्र में अनुशासन का अभाव हो जाता है तो वह या तो पराधीन की बेड़ियों में जकड़ा जाता है या पतन के गर्त में गिर जाता है। भारतवासियों ने जब अनुशासन त्याग कर दिया तो उन्हें पराधीन होना पड़ा। पर जब गांधी जी के नेतृत्व में अनुशासित होकर स्वाधीनता के लिए संपर्क किया तो अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। अत: भावी जीवन को अनंदमय बनाने के लिए देश के उज्जवल भविष्य के निर्माण के लिए विद्यार्थी का अनुशासित होना आवश्यक है।

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