Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Parishram ka Mahatva” , ”परिश्रम का महत्त्व” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
परिश्रम का महत्त्व
Parishram ka Mahatva
निबंध नंबर :- 01
कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता। सभी जीवन जीने के लिए कमाते हैं। यदि कोई व्यापारी है तो कोई नौकरी करता है। यदि कोई वकील है तो कोई डॉक्टर है। एक मजदूर या खेतों में काम करता है या सड़क के किनारे। चाहे उनका यह कार्य बहुत सख्त है किन्तु यही उनका सम्मान है। जो लोग अमीरी में पैदा होते हैं तथा बड़े होते हैं आसान कार्य करना पसन्द करते हैं। मेहनत करना वे समझते हैं कि आम आदमी का काम है। वे यह भूल जाते हैं कि आम आदमी द्वारा किया गया कार्य अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। एक मजदूर, किसान, सफाई कर्मचारी तथा फैक्टरी के कर्मचारी समाज की रीढ़ की हड्डी हैं। यही लोग हैं जो हमें खाना, रहने के लिए घर तथा पहनने के लिए कपड़े प्रदान करते हैं। समाज के इस वर्ग द्वारा किए गए कार्य की भरपाई कोई नहीं कर सकता। उनको कभी इस कार्य के लिए छोटा नहीं महसूस करवाना चाहिए। अन्यथा वे अपने कार्य को करना पसन्द नहीं करते। जो लोग परिश्रम का कार्य करते हैं, उन्हें यह महसूस करवाना चाहिए कि उनका कार्य भी सम्मान वाला है। यह उनके परिश्रम पर ही निर्भर करता है कि दुनिया के लोगों का जीवन कैसा होगा।
निबंध नंबर :- 02
परिश्रम का महत्त्व
Parishram ka Mahatva
परिश्रम आदर्श जीवन का मूलमंत्र है। हमारे ऋषि-मुनियों ने वेद, शास्त्रों ने सभी ने एक स्वर से श्रम के महत्त्व को स्वीकार किया है। कहा गया है “बैठने वाले का भाग्य भी बैठ जाता है और खड़े होने वाले का भाग्य भी खड़ा हो जाता है। इस संसार में जितने भी चेतन प्राणी हैं, कोई भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। प्रकृति के सभी पदार्थ नियमपूर्वक अपना कार्य करते हैं। फिर मनुष्य तो सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। संसार का ऐसा कौन-सा कार्य है जिसे मनुष्य अपने श्रम से साध नहीं सकता।” वास्तव में श्रम के बिना मनुष्य के जीवन की गाड़ी चल नहीं सकती। मानव ने निरंतर परिश्रम करके ही अपने विकास का पथ प्रशस्त किया है। आज संसार में जो कुछ दिख रहा है, मनुष्य के परिश्रम का ही फल है। वह परिश्रम के सहारे ही जंगली अवस्था से वर्तमान विकसित अवस्था तक पहुँचा है। आलसी, अनदयोगी और अकर्मण्य व्यक्ति जीवन के किमी क्षेत्र में सफल नहीं होता। विश्व में जितने भी महान व सफल प्राणी हुए हैं वे प्रतिभाशाली होने के साथ-साथ परिश्रमी हो। नेपोलियन, अब्राहम लिंकन, गांधी, विश्व के तेज धावक, खिलाड़ी, वक्ता, नेता, अभिनेता, गायक सभी संघर्ष और परिश्रम द्वारा ही शिखर पर पहुंचे हैं। उद्योग और कठिन परिश्रम से ही मनुष्य की कार्यसिद्धि होती है, केवल इच्छामात्र से नहीं। जैसे सोते हुए सिंह के मुख में मृग स्वयं नहीं घुसते। मनुष्य ने जितना अधिक संघर्ष किया, परिश्रम किया, अंत में उतनी ही अधिक उन्नति की
जितने कष्ट संकटों में है जिनका जीवन समन खिला।
गौरव ग्रंथ उन्हें उतना ही यत्र तत्र सर्वत्र मिला।
परिश्रम करने से मन ही नहीं शरीर भी स्वस्थ और प्रसन्न रहता है। जो लोग दिन-रात मेहनत करते हैं वे स्वस्थ रहते हैं, रोग उनसे दूर भागता है। उनका शरीर हृष्ट-पुष्ट और ताकतवर बनता है। परिश्रम करने से मनुष्य में नई शक्ति, नई चेतना का उदय होता है।
परिश्रम का महत्त्व
Parishram Ka Mahatva
निबंध नंबर :- 03
मनुष्य परिश्रम द्वारा ही जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है। हमारी धन-संपत्ति और सफलताएँ परिश्रम का ही परिणाम हैं। उद्योग या परिश्रम करने वाले व्यक्ति के पास ही लक्ष्मी का निवास होता है। परिश्रम द्वारा मनुष्य के सभी कार्य पूरे हो जाते हैं। कोई भी व्यक्ति, जाति या राष्ट्र परिश्रम के बिना सफलता के शिखर पर नहीं पहुँच सकता है।
परिश्रम शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार से हो सकता है। वही देश खुशहाल हो सकता है जहाँ के नागरिक परिश्रम करने से कतराते नहीं। दुनिया के देशों में जापान उसका उदाहरण है। बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, जवाहल लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री आदि नेताओं ने परिश्रम के दवारा ही देश को नई चेतना दी तथा नया मार्ग दिखलाया।
परिश्रम ईश्वर की वह उपासना है जिसके द्वारा मनुष्य दोनों लोकों (इहलोक और परलोक) का सुधार कर सकता है। यह बहुत गंभीर बात है कि हमें अपने जीवन में नित्य परिश्रम करते रहना चाहिए। महाकवि तुलसीदास ने बहुत ठीक कहा है-
‘सकल पदारथ है जग माहीं
कर्महीन नर पावत नाहीं।’
कर्महीन का अर्थ है वह मनुष्य जो कर्म या काम या परिश्रम करने से कतराता है। इसलिए हमें परिश्रम करना ही चाहिए। फल तो ईश्वर देंगे ही। गीता में श्रीकृष्ण का वचन है-‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचना’ अर्थात् कर्म करते जाओ, फल की चिंता मत करो।
जीवन में परिश्रम का महत्व
निबंध नंबर :- 04
मानव जीवन की गतिशीलता परिश्रम पर आधारित है। परिश्रम जीवन को अर्थवान बनाता है। परिश्रम के बिना कोई काम सफल और सार्थक नहीं होता। दुनिया में जितने भी बदलाव हुए हैं, उनमें परिश्रम की ही अहम् भूमिका रही है। पहिये के निर्माण से लेकर अंतरिक्ष यान तक की गाथा परिश्रम द्वारा ही लिखी गयी है।
परिश्रम चाहे शारीरिक हो या मानसिक वंदनीय है। मनुष्य के भरण-पोषण के लिये यह जरूरी है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास तथा देश की उन्नति इसी पर आधारित होती है। परिश्रम से मनुष्य में आत्म-सम्मान जागता है, उसकी कार्य क्षमता बढ़ती है और सार्थक दृष्टिकोण का विकास होता है। परिश्रम से ही मनुष्य आलस्य, ईर्ष्या-द्वेष, निर्धनता, दैन्यता, ग्लानि आदि अनेक बुराईयों से मुक्ति पाता है तथा शांति, सद्भाव, सुख, प्रसन्नता, संतोष आदि से ओत-प्रोत बना रहता है।
एक विद्यार्थी के लिये पढ़ाई और खेलकूद; एक मजदूर के लिये श्रम; व्यवसायी के लिये उद्यम; खिलाड़ी, संगीतज्ञ या गायक के लिये अभ्यास विद्वान के लिये अध्ययन, वैज्ञानिक के लिये निरंतर शोध में जुटे रहने की प्रवृत्ति ही उन्हें सफलता की दिशा में अग्रसर करती है। अज्ञान के अंधकार को मिटाने और अंध-विश्वासों पर विजय पाने में परिश्रम की ही प्रमुख भूमिका रही है।
शारीरिक परिश्रम से जहाँ मनुष्य का स्वास्थ्य ठीक रहता है, वहीं मानसिक परिश्रम से बुद्धि, विचार और चेतना का विकास होता है। दुनिया भर की किताबों के पन्ने कर्म की महत्ता से सजे पड़े हैं।
गीता में श्रीकृष्ण ने संसार को कर्म के महत्व का महामंत्र देते हुए कहा है – कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। लोकमान्य तिलक ने स्वाधीनता संग्राम में ‘कर्म ही पूजा है’ की अलख जगाई थी।
परिश्रमी व्यक्ति कभी थकता नहीं, हार नहीं मानता और अपने कार्य में लगातार जुटा रहता है। विपरीत परिस्थितियाँ उसे रोक नहीं पातीं; निंदा, आलोचना से वह प्रभावित नहीं होता और आत्म-विश्वास उसमें कूट-कूटकर भरा होता है। इसी कारण कर्मठ और श्रमशील व्यक्ति जीवन में सफलता की नयी-नयी मंजिलें तय करते हैं।
कर्मठता, आत्मनिर्भरता, दृढ़ता, सतत चेष्टा, समर्पण और त्याग जैसे गुण भी मनुष्य में परिश्रमशीलता से ही उपजते हैं। जिस देश के व्यक्ति परिश्रमी नहीं होते, उदास, निराश, हताश, आलसी, नकारा, व्यसनी और बकवादी होते हैं, वह देश पराधीन हो जाता है और पराधीन सपनेहु सुख नाहीं। कहा भी गया है – ऐसे व्यक्ति, ऐसा समाज और ऐसा देश स्वाभिमान खो देते हैं। उनकी उन्नति और विकास रुक जाता है। ऐसे व्यक्ति, समाज और देश ही शोषण के शिकार होते हैं।
दुनिया में जितने भी आश्चर्यजनक निर्माण हुए हैं, उनकी बुनियाद परिश्रम के बल पर ही रखी गयी है। परिश्रम को हम जीवन का आधार कह सकते हैं। सफलता, संतोष, आशा और विश्वास की कल्पना परिश्रम के बिना व्यर्थ है। किये बिना परिश्रम के रहस्य और महत्व को समझा भी नहीं जा सकता।