Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Manavta”, ”मानवता” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
मानवता
Manavta
मानवता की प्राप्ति धन, मकान, आभूषण और विद्या से नहीं होती है। इसकी प्राप्ति तो आत्मा की स्वच्छता, आचरण की शुद्धता और हृदय की उदारता से होती है। काइ भी मनुष्य कुत्सित भावनाओं को रखकर, दूसरे के ऐश्वर्यों को लूटकर और किसी आत्मा को सता कर इस आभूषण से अपनी देह को अलंकृत नही कर सकता है.
आज ज्यों-ज्यों हम त्यों-त्यों हम मनुष्यता आपस में वैमनस्य विश्वासकर टुस आभूषण से अपनी देह को अलंकृत नहीं कर सकता है। गों-ज्यों हमारा समाज और राष्ट्र उन्नति के शिखर पर चढ़ता जाता है. म मनुष्यता के आभूषण को अपने से दूर करते जाते हैं। इसकी दरी के कारण वैमनस्य के अंकुर खड़े हो चुके हैं। पति-पत्नी अपने कर्तव्यों को भुला कर विश्वास खो बैठे हैं। शिक्षक और छात्र का अनुशासन टूट चुका है। पुत्र की लोलुप दृष्टि पिता को तुच्छ समझने लगी है. ब्लैक मार्केटिंग ने अपने को पराया बना डाला है। भाई-भाई का खून करने के लिए तत्पर है। सत्य है कि मानवता दानवता में बदल चुकी है। इन सब के कारण ही हम मानवता को खो बैठे हैं।
इतना ही नहीं, बहुत से राष्ट्र मानवता को भुला कर दूसरे देशवासियों के साथ बरा व्यवहार करते हैं। उन्हें निकृष्ट समझ कर पशुओं के समान घृणा का पात्र बना देते हैं। ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए। हमें सबको अपने समान समझ कर उनके साथ मानवता का व्यवहार करना चाहिए। मानवता ही वास्तव में मानव के नेत्रों की सच्ची ज्योति है। इसके चले जाने के बाद वह अंधा हो जाता है, जिसके कारण पथ भ्रष्ट होकर अपनी आत्मा और अपने भाइयों को कष्ट पहुँचाता है। धन के लोभ और झूठे यश के पीछे दौड़ लगाने के कारण इस ज्योति को नष्ट नहीं करना चाहिए। बहुत से मनुष्य दूसरों के सम्मान को कुचलने का प्रयत्न करते हैं, अपने यौवन की मादकता में दूसरे को ठोकर लगाने के लिए तत्पर रहते हैं, ऐसे मनुष्यों की गणना सज्जन पुरुष पशुओं में करते हैं। ऐसे विवेकहीन मनुष्य का विश्व में कहीं भी सत्कार नहीं होता है।
मानवता मानव जीवन का सच्चा आभूषण है। इसके पहनने वाले का समाज में सत्कार होता है। उसके साथी सम्मान के साथ व्यवहार करते हैं। कभी आपत्ति पड़ने पर उसकी हर प्रकार से सहायता करते हैं। सारे पृथ्वीवासी उसके परिजन बन जाते हैं। इसके कारण मात्र से आत्मिक शांति, हर्ष, वैभव, यश और उच्च पद प्राप्त होता है।
यदि हम मानवता को अपनाना चाहते हैं, तो हमें ईर्ष्या, दम्भ, काम, मद, लालच और पापादि को त्यागना होगा। हमें बड़ों के प्रति नम्रता और छोटों के प्रति सच्चा अनुराग रखना होगा। मानवता चाहती है कि हम यथाशक्ति दीन-हीन की रक्षा करके उसकी सहायता करें। यह गुण विश्व भर में पूजा जाता है और इसको धारण करने वाले भी सदा पूजनीय होते हैं।