Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Bhrashtachar ki Samasya ”, ”भ्रष्टाचार की समस्या” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
भ्रष्टाचार की समस्या
Bhrashtachar ki Samasya
स्वतंत्र भारत में यदि किसी दिशा में अच्छी प्रगति हुई है तो वह भ्रष्टाचार की दिशा में है। कोई भी क्षेत्र भ्रष्टाचार से अछूता नहीं बचा है। किसी समय कहा जाता था कि शिक्षा का क्षेत्र ही ऐसा क्षेत्र है, जहाँ भ्रष्टाचार के लिए कोई स्थान नहीं, पर आज शिक्षा का क्षेत्र ही सर्वाधिक भ्रष्टाचार का अखाड़ा बना हुआ है।
वैसे भ्रष्टाचार की जड़ प्रशासन में है। हमारा नैतिक पतन भ्रष्टाचार की अग्नि में घी डालने की भूमिका प्रस्तुत कर रहा है। धन का लोभ और निजी स्वार्थ इतना बढ़ गया है कि इतने बड़े देश में आज ईमानदार व्यक्ति उँगलियों पर ही गिने जासकते हैं। हमें आज वह युग याद आता है जब व्यक्ति त्याग और देश भक्ति के कारण अपना तन मन धन देकर, यातनाएँ सहकर भी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते थे। लोगों की दृष्टि में आदर पाते थे। और यह युग भी देखना पड़ रहा है जिसमें देश की सर्वोच्च हस्ती पर भी उगलियाँ उठाई जारही हैं, और वह संतोष जनक समाधान देने में असमर्थ हैं। पहले केवल सरकारी कार्यालयों में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी रुपया दो रुपया इनाम मांग लिया करते थे। उसे ही भ्रष्टाचार कहा जाता था। पर अब तो जितना बड़ा नेता या अधिकारी उतनी ही अधिक रिश्वत की मांग रहती है।
सर्व प्रथम व्यापारियों ने अधिकारियों को कोटा परमिट के लिए रिश्वतें दे देकर उनको गलत आदतें डाल दी। उसके पश्चात राजनैतिकों का क्रम आता है। नेतागीरी को एक व्यापार मान लिया गया है।
चुनाव के समय नेता अनाप शनाप व्यय करके अनैतिक आचरण करके चुनाव जीतकर अधिकार प्राप्त करते हैं, फिर अपनी लागत मरा ब्याज के रिश्वतखोरी द्वारा वसूल करते हैं। एक समय था जब कि भ्रष्टाचार चोरी चुपके किया जाता था। भेद खुलने पर भ्रष्टाचारी का सिर शर्म से झुक जाता था। पर अब वातावरण इतना बदल गया है कि भ्रष्टाचारी गर्व से कहता है कि मैंने रिश्वत ली तो क्या बरा किया। धीरे-धीरे समाज को भी भ्रष्टाचार में रहने की आदत हो गई है।
आज राजनीतिक दलों की चरित्र हीनता ही भ्रष्टाचार का कारण बना हआ है। धन लेकर अपना दल बदल लेना सबसे बड़ा राजनीतिक भ्रष्टाचार है। पर आज बड़े से बड़े नेता को दल बदलने में लज्जा नहीं आती। सांसद एवं अधिकारी पूँजीपतियों के प्रभाव में आकर धन के लालच में संसद में उनका पक्ष लते हैं। कुर्सी पर बैठा अधिकारी येन केन प्रकारेण अपने निकट संबन्धियों को लाभ पहुँचाने के प्रयत्नों में लगा रहता है।
पाश्चात्य सभ्यता के भारत में अधिक प्रचार के कारण भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है। भारत का प्राचीन जीवन नैतिकता त्याग तथा बलिदान का आदर्श प्रस्तुत करता है। पर आज पाश्चात्य प्रभाव से वह भौतिकतावादी हो गया है। शान-शौकत ठाठबाट का प्रदर्शन हमारे समाज का अंग बन गया है।
आज एक भ्रष्टाचारी पर कोई उंगली उठाए तो सारे भ्रष्टाचारी एक होकर उसका बचाव करते हैं। भ्रष्टाचारियों के संगठन बन गए हैं। उनका बहुमत होने के कारण सदाचारियों को कष्टमय जीवन जीना पड़ रहा है। अपनी बढ़ती हुई भौतिकवादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भ्रष्टाचार का रास्ता अपनाया जाता है। आधुनिक भारत में बोफर्स घोटाला, प्रतिभूति घोटाला जैसे महान घोटाले भारतीय भ्रष्टाचार के उदाहरण हैं। इनके लिए उत्तरदायी भी महान व्यक्ति ही हो सकते हैं।
आज शासन ऐसे लोगों के हाथों में है, जो भ्रष्टाचारियों को दण्ड देना तो दूर उनका बचाव ही करते हैं। कहा जाता है कि चोर चोर मौसेरे भाई। अतएव एक दूसरे का बचाव करते हुए शासन अपनी गति से चलता रहना चाहता है।
भ्रष्टाचार दूर करने के लिए सबसे पहले नैतिकता का पाठ समाज को पढाना होगा। शासन को कठोर होने, दोषी को दण्ड देने का कार्य करना होगा। पर वही कहावत चरितार्थ होती है – कि जो काँच के घर में रहता है उसे दूसरे के घरों में पत्थर नहीं मारना चाहिए। यही स्थिति भ्रष्टाचार को दूर करने के प्रयत्नों को सफल नहीं होने देती।
भ्रष्टाचार के दिग्गजों ने अपनी स्थिति इतनी सुदृढ़ बनाली है कि उन्हें उखाड़ फेंकना साधारण काम नहीं है। समाज जब भ्रष्टाचार से थक जाएगा, तभी वह चुनाव से उन्हें उखाड़ने का संकल्प लेगा। ऐसे दृढ़ संकल्प से ही निहित स्वार्थ सत्ता से हट सकेंगे। केवल सदाचारी निष्ठावान, आदर्शवान, सच्चरित्र लोगों को सत्ता सैंपने से ही भ्रष्टाचार का उन्मूलन हो सकेगा।
भगवान से प्रार्थना है कि भारतवासियों को सद्बुद्धि और इतनी शक्ति प्रदान करे कि वे इस देश से भ्रष्टाचार को दूर भगाकर फिर से नैतिक शक्तियों को अधिकार दिलाने में सक्षम सिद्ध हो।