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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Bharat ki Pramukh Samasyaye ”, “भारत की प्रमुख समस्याएँ” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

भारत की प्रमुख समस्याएँ

Bharat ki Pramukh Samasyaye 

प्रस्तावना : जीवन और संघर्ष परस्पर समानार्थी हैं। शिशु ‘बीज’ रूप में जन्म पाते ही संघर्षरत हो जाता है। यहाँ तक कि कोमलता की प्रतीक सौन्दर्यानुभूति भी रूप-किरण और नयन-पटल के संघर्ष के बिना असम्भव है। एक राष्ट्र को सबल बनने के लिए। समस्याएँ आती हैं। 15 अगस्त सन् 1947 के बाद सूर्य की। प्रभा में जब शिशु (स्वतन्त्र भारत) ने जन्म लिया, तभी से अनेक समस्याओं के रोगों ने इसे चारों ओर से जकड़ लिया। यद्यपि इन समस्याओं को समूल नष्ट करने के लिए हमारे राष्ट्र-निर्माताओं ने अनेक पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण किया, फिर भी अभी भी अनेक समस्याएँ हमारे सम्मुख मुँह बाये खड़ी हैं। हम इनसे बराबर जूझते रहेंगे, हमें इनसे डरना नहीं है। क्योंकि देवराज के शब्दों में, “अभावों एवं समस्याओं से संघर्ष का । नाम ही जीवन है और इनसे पलायन ही मृत्यु है।”

काश्मीर की समस्या : देश स्वतन्त्र हो जाने पर भी अंग्रेज भारत में हिन्दू एवं मुसलमानों के अन्दर वह फूट डाल गये जो देश को आज तक विकसित नहीं होने दे रही हैं। काश्मीर के बँटवारे की। समस्या को लेकर भारत एवं पाकिस्तान में आपस में मतभेद पैदा हो गया। इस मतभेद को मिटाने के लिए दोनों राष्ट्रों के नेताओं ने शिमला में एकत्रित होकर आपस में समझौता किया; परन्तु तत्कालीन समझौता हो जाने पर भी आज तक पाकिस्तान भारत से जुलता है।

भाषा, सम्प्रदाय तथा प्रान्तवाद : सम्पूर्ण देश की भाषा हिन्दी या अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा हो। इस प्रश्न को लेकर भारत में आपस में लोगों में मनमुटाव बहुत दिनों तक बना रहा और आज राष्ट्रभाषा हिन्दी निर्धारित हो जाने पर भी कभी-कभी अन्य भाषा-भाषी क्षेत्र इसका विरोध कर बैठते हैं। आज भाषावाद राजनैतिक रंग में रंग गया है। इस समस्या का निदान यह है कि हम भाषा को संकीर्ण दृष्टि से न देखकर उसे समाज की अभिव्यक्ति मानकर उसका सम्मान करें। इससे सभी भाषाओं का एक समान सम्मान किया जा सकता है। इसी प्रकार जातीयता और साम्प्रदायिकता आदि भी कुछ ऐसी ही। संकीर्ण भावनाएँ हैं। जो भारत की प्रगति में बाधक सिद्ध होती हैं। जातीय प्रथा के कारण एक जाति दूसरी जाति के प्रति घृणा और द्वेष की भावना रखती है। इससे देश में साम्प्रदायिक भावना की प्रबलता दिखाई पड़ती है। इससे धर्म-भेद बढ़ता है; परन्तु वास्तव में गुप्त जी के शब्दों में हम सभी का मनुष्यत्व धर्म होना चाहिए।

इस जातीयता का ही विशाल रूप आज हमें प्रान्तीयता की भावना में परिवर्तित हुआ प्राप्त होता है। प्रान्तीयता के पचड़े में पड़कर पंजाबी-पंजाबी का और मद्रासी-मद्रासी का तथा गुजराती-गुजराती का ही विकास चाहता है। इससे आपस में प्रान्तों में कलह उत्पन्न होता है; परन्तु हमें संकीर्णता त्याग कर किसी महापुरुष की भावनाओं का सत्कार करना चाहिए, “हम सब भारतीय हैं, एक ही देश के निवासी हैं, एक ही धरती के अन्न-जल से हमारा पोषण होता है।”

अस्पृश्यता की समस्या : अस्पृश्यता वर्तमान भारत की एक महत्त्वपूर्ण समस्या है। यह हिन्दू समाज का सबसे बड़ा कलंक है। प्राचीन काल में धर्म की दुहाई देकर धर्म के ठेकेदारों ने समाज के एक आवश्यक अंग को समाज से दूर कर उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया। इन्हें शूद्र कहकर छुआछूत की प्रथा को जन्म दिया। संतोष का विषय है कि वर्तमान. भारत में इस ओर ध्यान दिया गया है। संविधान ने हरिजनों को सामाजिक समानता का अधिकार प्रदान किया है। उनके लिए स्थान सुरक्षित किए हैं। उन्हें छात्रवृत्ति भी दी जा रही है। पहले राजा राममोहन राय तथा दयानन्द सरस्वती ने इस ओर विशेष प्रयत्न किये थे। अब धीरे-धीरे हरिजनों की दशा काफी सुधर रही है।

जनसंख्या एवं बेरोजगारी की समस्या : जनसंख्या के दृष्टिकोण से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् । बढ़ते-बढ़ते अब एक अरब से भी अधिक जनसंख्या पहुँच गई है। प्रो० माल्थस के अनुसार कि मनुष्य में संतान पैदा करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है, इसे इच्छा और प्रवृत्ति के कारण जनसंख्या बढ़ती है। जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात में उद्योग-धन्धों का विकास नहीं हो रहा है। अत: देश में बेकारी ने जन्म लिया। आज भूमि की कमी में कृषक तथा पदों के अभाव में शिक्षित लोग बेकार बैठे हैं। खाली मस्तिष्क शैतान का घर होता है। ‘बुभुक्षितः, किम् न करोति पापम्’ के सिद्धान्त के अनुसार आज बेरोजगारी के कारण वही हो रहा है जो स्वामी रामतीर्थ ने आकाशवाणी से कहा था, “जब किसी देश में जनसंख्या इतनी बढ़ जाती है कि आवश्यकतानुसार सभी को सामग्री नहीं प्राप्त होती है, तब देश में भ्रष्टाचार का जन्म होता है।”

आज दसरों को उपदेश देने वाले तो अनेक हैं, किन्त बेरोजगार भूखा मानव देशद्रोही या आत्महन्ता बन जाता है। आये दिन अखबारों में कितने भूखों को मरते पढ़ता हूँ।

कृषि व कृषक सम्बन्धी अपूर्णताएँ – भारत कृषिप्रधान देश है। यहाँ की 70 प्रतिशत जनता गाँवों में निवास करती है; किन्तु खेद का विषय है कि आज हमें स्वतन्त्र हुए पाँच दशक से अधिक समय हो गया फिर भी भारतीय ग्रामों व वहाँ के निवासी कृषकों की दशा अत्यन्त दयनीय है। गाँव में शिक्षा की कमी के कारण किसान खेती को वैज्ञानिक ढंग से नहीं कर पाते। भूमिहीन मजदूर काफी दिनो खाली बैठे रहते हैं। उद्योग धन्धों की कमी है। आज आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक परिस्थिति के कारण मध्य वर्ग के लोगों को भी बेकारी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। बेकारी हमें क्या बनाती है ? देखिए किसी मनीषी के विचार, “बेरोजगार व्यक्ति स्वयं को निकम्मा और अनावश्यक समझकर अप। दृष्टि में स्वयं ही गिरने लगता है।” खैर इधर कुछ दिनों से हमारी जनप्रिय सरकार ने कृषि एवं कृषकों की दशा सुधारने का प्रबन्ध किया है।

नारी-शिक्षा की समस्या : समाजरूपी गाड़ी को चलाने के लिये नर व नारी दो पहिये हैं। एक के अभावग्रस्त या कमजोर होने पर समाज का सन्तुलन बिगड़ सकता है। अत: समाज में पुरुष के समान नारी को भी शिक्षित, समर्थ एवं योग्य होना परमावश्यक है। प्राचीन काल में समचित शिक्षा के कारण स्त्रियाँ विदषी हुआ करती। थीं। राजा भोज की पुत्री तो अति विद्यावान होने के कारण ही विद्योत्तमा कहलायी। मध्य युग में यवन शासन ने पर्दा प्रथा को जन्म दिया। स्त्रियाँ विवेकहीन एवं अन्धविश्वासी बन गई। आज इस ओर सरकार का विशेष ध्यान है। आज स्त्रियाँ पुरुष के समान ही शिक्षा प्राप्त कर प्रोफेसर, इन्जीनियर, डॉक्टर, वकील, जज या उच्चाधिकारी, मुख्यमंत्री बनने लगी हैं।

खाद्यान्न समस्या : खाद्य समस्या भी आज महत्त्वपूर्ण समस्या बनी हुई है। 19 वीं शताब्दी से पहले इस प्रकार की कोई समस्या नहीं थी; किन्तु जनसंख्या की निरन्तर वृद्धि से खाद्यान्नों के अभाव की समस्या उत्पन्न हो गई। कुछ शताब्दियों पूर्व इस देश के वासियों का विश्वास था कि-

उत्तम खेती, मध्यम बान।।

अधम चाकरी, भीख निदान ।।”

आज लोग खेती के कार्य को हेय दृष्टि से देखते हैं। पहले बुजुर्ग जहाँ अपने बच्चों को नौकरी कराना अधम(नीच) कार्य मानते थे। वहाँ आज लोग इसी में गौरव का अनुभव कर ट्रकों की नौकरी । करते हैं और अपनी सैकड़ों बीघे जमीन को परती रखते हैं जिसके कारण आज खाद्यान्नों का अति अभाव है। आज अच्छे बीज, समान । वितरण के साथ ही पौष्टिक पदार्थ भी खाद्यान्न में प्रयुक्त किए जाएँ। तो इस समस्या का समाधान सम्भव है।

अनुशासनहीनता : यों तो अगर विस्तृत दृष्टिकोण से देखा जाए, तो समाज का प्रत्येक व्यक्ति अनुशासनहीन हो रहा है। वैसे विद्यार्थी वर्ग तो विशेष रूप से अनुशासनहीन हो रहा है। आज का विद्यार्थी ही कल समाज के विभिन्न पदों पर आसीन होता है और वहाँ भ्रष्ट तरीकों से धनार्जन कर समाज को खोखला करता है तथा समाज में सभी को जीने नहीं दे रहा है। इस प्रकार वह अप्रत्यक्ष रूप से खाद्यान्न समस्या को और भी जटिल बना रहा है।

बाल विवाह व दहेज प्रथा : अभी तक बहुत छोटी अवस्था में। विवाह होते रहे। आज भी अशिक्षित समाज में बहुत ही छोटी अवस्था में विवाहों का प्रचलन है। इससे वर-वधू दोनों ही अपना हित नहीं।  सोच पाते हैं और बड़े होने पर एक-दूसरे का परित्याग कर देते हैं। आयु पर भी इस बाल-विवाह का प्रभाव पड़ता है। आजकल इन विवाहों में पर्याप्त धन की माँग वर पक्ष की ओर से की जाती है। जिससे समाज लड़की होने को बड़ा ही बुरा समझता है। मध्य युग में तो लड़की अभिशाप ही मानी जाती थी तथा जन्म लेते ही उसे मार दिया जाता था। आज इस दहेज प्रथा का उन्मूलन करना चाहिए; क्योंकि दहेज लेकर वर का पिता केवल शान-शौकत में ही इसे । अपव्यय करता है। इस बाल-विवाह एवं दहेज प्रथा के समापन के लिए शिक्षाओं को और अधिक प्रभावी बनाना चाहिए।

महँगाई एवं भ्रष्टाचार की समस्या : आजकल कमरतोड़ महँगाई अपना प्रभाव सम्पूर्ण समाज पर जमाये हुए है। आज के युग में मानव अपने वेतन से भरपेट भोजन नहीं कर पा रहा है। फलत: वह भ्रष्ट साधनों को अपनाता है। रिश्वत, सिफ़ारिश, काला बाजार, अनुचित साधनों की प्रवृत्ति सब इसी प्रवृत्ति के विभिन्न रूप हैं। बड़े-बड़े नेता, मन्त्री, अधिकारी और व्यापारी सभी इससे प्रभावित हैं। श्री निर्भय हाथरसी की, उक्ति, “चमचों की सरकार, जमाना चमचों का ” आज के भ्रष्टाचारियों से भरे इस पतनोन्मुख समाज पर शत। प्रतिशत लागू होती है।

उपसंहार : आज इन समस्याओं के मध्य भारत पिस रहा है। आज तो भक्त प्रहलाद के शब्दों में, “मो में तो में खरग खंभ में व्याप रही संसारा” की क्या अपितु “दाल-तेल में चीनी गुड़ में व्याप रहा संसारा।” आज के व्यक्ति को रात-दिन यही प्रार्थना करनी पड़ रही है।

 

सदा पतीली दाहिनी सन्मुख रहे पटा।

पाँच देव रक्षा करें, कंडा, कनक, भटा।”

आइए, हम सभी मिलकर इन समस्याओं का निराकरण करें और भारत को एक बार फिर सोने की चिड़िया बना दें।

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