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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Bharat Bangladesh Sambandh”, ”भारत-बाँग्लादेश सम्बन्ध” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

भारत-बाँग्लादेश सम्बन्ध

Bharat Bangladesh Sambandh

आज जिसे बांग्ला देश कहा जाता है, सन् 1971 तक वह उस पाकिस्तान का एक भाग था, जिस का निर्माण धर्म और जाति के आधार पर विशाल भारत को तोड़ कर किया गया था। वह विभाजन और उसका आधार गलत था, पाकिस्तान से अलग हो कर बांग्लादेश के अस्तित्व में आने की घटना से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है। यदि धर्म और जाति का आधार आज के परिपेक्ष्य में किसी देश का निर्माण उचित होता, तो एक ही मस्लिम देश के इस प्रकार दो भाग न हो पाते।

खैर, जो हुआ सो हुआ। इस तथ्य से सभी भीतरी-बाहरी लोग भली-भाँति परिचित कि बाँग्ला देश के निर्माण में भारत का बहुत बड़ा हाथ रहा है। सत्य तो यह है कि भारत के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष योगदान और सक्रिय सहयोग के बिना बांग्ला नामक किसी देश का अस्तित्व में आ पाना सम्भव ही नहीं था। भाषा और जातीय अस्तित्व-रक्षा के प्रश्न को लेकर जब पश्चिम पाकिस्तान और पूर्व पाकिस्तान में जबर्दस्त संघर्ष चल रहा था. असीमित पाक-सेना पूर्व पाक-स्थित बंगालियों का हर प्रकार से दमन कर रही थी. वहाँ की अपनी सभ्यता-संस्कृति, भाषा और पहचान तक नष्ट कर देना चाहती थी और उनके नेता बंगबन्धु मुजीबुर्रहमान पाक-जेल में बन्द थे; तब भारत ने शरणार्थी बनकर आने वाले लाखों पूर्वी पाकिस्तानियों या बंगालियों को अपने यहाँ शरण तो दी ही, संघर्षरत क्रान्तिकारियों को नैतिक समर्थन करने के साथ-साथ धन और शस्त्र सैन्य बल से भी सहायता पहुँचाकर एक नए देश-बाँग्लादेश का निर्माण कराया। इस दृष्टि से वहाँ के निवासियों को भारत का आभारी तो होना ही चाहिए था, भारत-बाँग्ला देश के पारस्परिक हित और संबन्ध भी बहुत अच्छे तथा साझे होने चाहिए थे। बंग बंधु मुजीबुर्रहमान के वहाँ का पहला प्रधानमंत्री बनने पर यह आशा भी बँधी थी; पर कट्टरवादियों ने षड्यत्र कर के शीघ्र ही इन की सपरिवार हत्या कर दी और यहीं से दोनों देशों के परम्परागत एवं सभी तरह के सम्बन्धों में दरारें पड़ना भी आरम्भ हो गया।

यो पूर्वी बंगाल या आज बाँग्ला देश हमारे एक राज्य (पश्चिम) बंगाल का ही एक जगह, जिसे कभी अपनी कूटनीति से ब्रिटिश सरकार ने बँटवारा कर के अलग कर दिया था। इस बंग-भंग के विरुद्ध आन्दोलन भी चला था। भाषा, संस्कृति, वेश-भूषा, न, रहन-सहन की दृष्टि से आज भी भारतीय बंगाल और बांग्लादेश में किसी प्रकार का बुनियादी अन्तर नहीं है। लेकिन बंग बंधु मुजीबुर्रहमान के कत्ल के बाद से भारत-बांग्लादेश के सम्बन्ध कभी एक दिन भी सामान्य नहीं रहे, यह एक ऐतिहासक सत्य है। वहाँ जो भी सरकार बनी, कट्टरपंथियों की बनी और उसका प्रत्यक्ष न सही; पर परोक्ष झुकाव हमेशा पाकिस्तान की ओर रहा। आज भी स्थिति वैसी ही है। एक वह सम था, जब बाँग्ला देश के अस्तित्व में आने पर पाकिस्तान के साथ उसके राजदूत तक के सम्बन्ध नहीं रह गए थे, एक आज का यह जमाना है कि जब बाँग्ला देश पाकिस्तानी भाषा-भावना में भारत के प्रति बोलता तो रहता ही है, उसके साथ संघ जैसी व्यवस्था कायम करके भारत को घेर भी लेना चाहता है। भारत-पाक दोनों में नदी-जल-विवाद तो है ही सही, बाँग्ला नेताओं की हठ धर्मिता अपने आकार-प्रकार की सीमा में रहकर उसे सुलझने भी नहीं देना चाहती। कुछ द्वीपों और सीमांचलों को लेकर भी यह विवाद उठाता रहता है।

बाँग्ला देश के कट्टरपंथियों और उन की सरकार का झुकाव पाकिस्तान की और रहते हुए भी भारत कई बार चावल, अन्य खाद्य-पदार्थ, खाद्य तेल आदि भेजकर उसे भखमरी से बचा चुका है, पैट्रोलियम पदार्थों से सहायता पहँचा कर भी उसके वाहनों का चक्का जाम न होने देकर उसे संकट से उबार चुका है; कई तरह की आवश्यक मशीनरी यंत्र एवं उपकरण आदि खरीदने के लिए उसकी नकद टका में आर्थिक सहायता भी कर चुका है, फिर भी अपने जातिगत स्वभाव के कारण बाँग्लादेश अक्सर भारत-विरोध और भारत को नाहक बदनाम करते रहने के प्रयासों में ही रत दिखाई दिया करता है। ऐसे में प्रत्येक समझदार व्यक्ति स्वय ही दोनों देशों के सम्बन्धों के बारे में अनुमान कर सकता है। सच तो यह है कि उदारचेता बंगबन्धु की हत्या के बाद छोटी-सी अवधि में ही बांग्लादेश को सैनिक शासन के तले दबकर रहना पड़ा है। सेनिक तंत्र में सही सूझ-बूझ का विकास हो पाना संभव ही नहीं हुआ करता। यही पाकिस्तान के साथ हुआ और यही बाँग्ला देश में भी हुआ। आज भी जिन लोगों के हाथों में वहाँ के शासन की बागडोर है, वे भी वस्तुतः सैनिक शासकों और उनके तंत्र से सम्बन्धित लोग ही हैं । अतः भारत जैसे जनतंत्री व्यवस्था वाले देश के साथ सामान्य धरातल के या व्यावहारिक सम्बन्धों की कल्पना कर पाना संभव नहीं कहा जा सकता।

वास्तव में पड़ोसियों के साथ रहने के लिए जिस प्रकार की समझ का होना जरूरी होता है, उसका विकास अभी तक कम-से-कम पाक-बाँग्ला देश जैसे देशों में हो ही नहीं पाया। प्रायःद्वीप की चिन्ता तो क्या करना, जिन्हें अपने हित-अहित तक की पहचान और परख नहीं है, वे भला अच्छे सम्बन्धों का विकास क्या कर पाएँगे। सो भारत-बांग्ला देश के सम्बन्ध भारत-पाक सम्बन्धों के समय एकदम तलख तो नहीं; पर दोनों की बुनियादी जहानत में विशेष अन्तर नहीं, यह अवश्य कहा जा सकता है। हो सकता है, कल किसी अन्य दल का शासन होने पर सम्बन्धों का धरातल कुछ ऊँचा भी हो जाए, पर अभी तो स्थिति उत्साहवर्द्धक नहीं कही जा सकती।

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