Hindi Essay on “Yadi Main Doctor Hota ” , ” यदि मै डाक्टर होता” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
यदि मै डाक्टर होता
Yadi mein Doctor hota
निबंध नंबर : 01
संसार में कई प्रकार के व्यवसाय हैं, उद्योग-धन्धे हैं, नौकरियाँ और कार्य-व्यापार हैं। उनमें से कई बड़े ही मानवीय माने जाते हैं। यों तो सभी का सम्बन्ध मनुष्य के साथ ही हुआ करता है; पर कुछ कार्य-व्यापार इस तरह के भी हैं कि जिन की स्थिति मानवीय दृष्टि से बड़ी ही सम्वेदनशील हुआ करती है। उसका सीधा सम्बन्ध मनुष्य की भावनाओं, मनुष्य के प्राणों और सारे जीवन के साथ हुआ करता है। डॉक्टर का धन्धा कुछ इसी प्रकार का ही पवित्र, मानवीय सम्वेदनाओं से युक्त, प्राण-दान और जीवन-रक्षा की दृष्टि से ईश्वर के बाद दूसरा, बल्कि कुछ लोगों की दृष्टि में ईश्वर के समान ही हुआ करता है। मेरे विचार में ईश्वर तो केवल जन्म देकर संसार में भेज दिया करता है। उसके बाद मनुष्य-जीवन की रक्षा का सारा उत्तरदायित्व वह डॉक्टरों के हाथ में सौंप दिया करता है। इस कारण अक्सर मेरे मन-मस्तिष्क में यह प्रश्न उठा करता है कि यदि मैं डाक्टर होता, तो ?
यह सच है कि डॉक्टर का व्यवसाय बड़ा ही पवित्र हुआ करता है। पहले तो यहाँ तक कहा और माना जाता था कि डॉक्टर का पेशा केवल सेवा करने के लिए हुआ करता है, कमाई करने के लिए नहीं ! मैंने ऐसे कई डॉक्टरों की कहानियाँ सुन रखी हैं जिन्होंने मानव-सेवा में सारा जीवन खुद भूखे-प्यासे रह कर बिता दिया, पर किसी बेचारे मरीज़ को इसलिए नहीं मरने दिया कि उसके पास फीस देने या दवाई खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। यदि मैं डॉक्टर होता, तो ऐसा ही करने की कोशिश करता। किसी भी आदमी को बिना इलाज, बिना दवाई मरने नहीं देता। मैंने यह भी सुन रखा है के कुछ ऐसे डॉक्टर भी हुए हैं, जिन्होंने अपने बाप-दादा से प्राप्त की गई सारी सम्पत्ति लोगों की सेवा-सहायता में खर्च कर दी। यदि मैं बाप-दादा से प्राप्त की गई सम्पत्ति वाला डॉक्टर होता. तो एक-एक पैसा आम आदमियों की सेवा-सहायता में ही खर्च करता, इसमें शक नहीं।
मैंने सुना और पढ़ा है कि भारत के दूर-दराज के देहातों में डॉक्टरी-सेवा का बड़ा अभाव है, जबकि वहाँ तरह-तरह की बीमारियाँ फैलकर लोगों को आतंकित किये रहती हैं; क्योंकि पढे-लिखे वास्तविक डॉक्टर वहाँ जाना नहीं चाहते. इस कारण वहाँ नीम-हकीमों की बन आती है या फिर झाड़-फूंक करने वाले ओझा लोग बीमारों का भी इलाज करते हैं। इस तरह नीम हकीम और ओझा बेचारे अनपढ़-अशिक्षित गरीब देहातियों को उल्लू बना कर दोनों हाथों से लूटा तो करते ही हैं, उनके प्राण लेने से भी बाज नहीं आते और उनका कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं पाता। यदि मैं डॉक्टर होता तो आवश्यकता पटने पर ऐसे ही दूर-दराज के देहातों में जाकर लोगों के प्राणों की तरह-तरह की बीमारियों से तो रक्षा करता ही; लोगों को ओझाओं, नीम-हकीमों और तरह-तरह के अन्धविश्वासों से छुटकारा दिलाने का प्रयत्न भी करता। मेरे विचार में अन्ध विश्वास भी एक तरह के भयानक रोग ही हैं। इनसे लोगों को छुटकारा दिलाना भी एक बड़ा महत्त्वपूर्ण पुण्य कार्य ही है।
यह ठीक है कि डॉक्टर भी आदमी होता हैं अन्य सभी लोगों के समान उसके मन में भी धन-सम्पत्ति जोड़ने जीवन की सभी तरह की सुविधाएँ पाने और जुटाने, भौतिक सुख भोगने की इच्छा हो सकती है। इच्छा होनी ही चाहिए और ऐसा होना उसका भी अन्य लोगों की तरह बराबर का अधिकार है। लेकिन इस का यह अर्थ तो नहीं कि वह अपने पवित्र कर्त्तव्य को भुलाये। यह सब पाने के लिए बेचारे रोगियों के रोगों पर परीक्षण करते रह कर दोनों हाथों से उन्हें लूटना और धन बटोरना शुरू कर दे। यदि मैं डॉक्टर होता, तो इस दृष्टि से न तो कभी सोचता और न व्यवहार ही करता। सभी तरह की सुख सुविधाएँ पाने का प्रयत्न ज़रूर करता; पर पहले अपने रोगियों को ठीक करने का उचित निदान कर, उन पर तरह-तरह के परीक्षण करके नहीं कि जैसा आजकल बड़े-बड़े डिग्रीधारी डॉक्टर किया करते हैं। अफसोस उस समय और भी बढ़ जाता है, जब मैं यह देखता हूँ कि रोग की वास्तविक स्थिति की अच्छी-भली पहचान हो जाने पर भी जब लोग कई तरह के परीक्षणों के लिए जोर देकर रोगियों को इसलिए तथाकथित विशेषज्ञों के पास भेजते हैं कि ऐसा करने पर उन परिचितों-मित्रों की आमदनी तो बढ़े ही भेजने वाले डॉक्टरों को भी अच्छा कमीशन मिल सके। मैं यदि डॉक्टर होता, तो इस तरह की बातों को कभी भूल कर भी बढ़ावा न देता।
मैंने निश्चय कर लिया है कि आगे पढ़-लिख कर डॉक्टर ही बनूँगा। डॉक्टर बन कर उपर्युक्त सभी प्रकार के इच्छित कार्य तो करूँगा ही, कुछ लोगों ने अपनी धाँधलेबाजी द्वारा इस पवित्र और सेवाभावी मानवीय पेशे को बदनाम कर रखा है, कलंकित बना दिया है, उस बदनामी और कलंक को धोने की भी हर तरह से कोशिश करूँगा। मेरे विचार में सेवा कर के मानव-जाति को स्वस्थ बनाए रखना ही डॉक्टरी पेशे की सब से बड़ी उपलब्धि है बाकी सभी बातें, सभी तरह के फल और मेवे तो बस आने-जाने हैं। उनके लिए इस पवित्र पेशे का स्तर गिराना, उसके पवित्र आदर्श से धन के लिए गिरना सबसे बड़ी हीनता और अमानवीयता है। इस तरह की बातों से बचकर ही कोई डॉक्टर अपने पेशे की पवित्रता बचाए और बनाए रख सकता है।
निबंध नंबर : 02
यदि मै डाक्टर होता
Yadi mein Doctor hota
संसार में अनेक प्रकार के आजीविका के साधन है | उनमे से कई साधन तो मानवीय दृष्टि से बड़े ही संवेदनशील हुआ करते है जिनका सीधा सम्बन्ध मनुष्य की भावनाओं , उसके प्राणों तथा सारे जीवन के साथ हुआ करता है | डाक्टर का धन्धा कुछ इसी प्रकार का पवित्र , मानवीय संवेदनाओ से युक्त, प्राण – दान और जीवन – रक्षा की दृष्टि से ईश्वर के बाद दूसरा परन्तु कभी- कभी तो ईश्वर के समान ही मन जाता है | क्योकि ईश्वर तो मनुष्य को केवल जन्म देकर संसार में भेजने का काम करता अहि जबकि डाक्टर के कन्धो पर उसके सारे जीवन की रक्षा का भार पढ़ा होता है | इन बातो को ध्यान में रखकर मै प्राय : सोचा करता हूँ कि – यदि मै डाक्टर होता, तो ?
यह तो सत्य ही है कि डाक्टर का व्यवसाय बड़ा ही पवित्र हुआ करता है | पहले तो लोग यहा तक कहते थे डाक्टर केवल सेवा करने के लिए होता है . जिन्होंने मानव – सेवा में अपना सारा जीवन लगा दिया तथा मरीजो को इसलिए नही मरने दिया क्योकि उनके पास फीस देने या दवाई खरीदने के लिए पैसे नही थे | धन्य है ऐसे डाक्टर ! होता तो मै भी ऐसा करने का प्रयत्न करता |
सामान्यतया मैंने ऐसा पढ़ा तथा सुना है की दूर – दुराज के देहातो में डाक्टरों – सेवा का बड़ा अभाव है | वहां तरह – तरह की बीमारियाँ फैलती रहती है जिनके प्रणामस्वरूप अनेक लोग बिना दवा के मर जाते है | वहा देहातो में डाक्टरों के स्थान पर निम- हकीमो का बोलबाला है | या फिर झाड-फुक करने वाले ओझा लोग बीमारी का भी इलाज करते है | यदि मै डाक्टर होता तो आवश्यकता पड़ने पर ऐसे ही देहातो में जाकर वहा के निवासियों की तरह – तरह की बीमारियो से रक्षा करता | ओंझाओ तथा निम- हकीम की प्रैकिटस के विरुद्ध कानूनी रोक लगवाने का प्रयास करता |
आज के युग में प्राय : डाक्टर अपने लिए धन – सम्पति जुटाने में लगे रहते है | कुछ डाक्टर पैसो के लिए बिलकुल ही अमानवीय कार्य करते है जैसे ‘गुर्दे’ (kidney) की तस्करी में तस्करों को साथ देना | अपना वेतनवृद्धि के लिए हडताल कर रोगियों को उनके भाग्य पर मरते हालत में छोड़ देना, जो डाक्टरी पेशे पर एक बदनुमा दाग है | ऐसा नही है की हमे अपने और अपने परिवार के लिए धन-सम्पति या सुख – सुविधाओ की आवश्यकता नही है | सभी को इसके आवश्यकता होती है , इसीलिए मै भी धन – सम्पत्ति इकटठा तो करता परन्तु सच्ची सेवा द्वारा मानव – जाती को स्वस्थ रखना मेरे जीवन का ध्येय होता | यही डाक्टरी पेशे की सबसे बड़ी उपलब्धि है |
Mujhe yah essay bahut pasand aaya