Hindi Essay on “Vigyan Aur Yudh” , ”विज्ञान और युद्ध” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
विज्ञान और युद्ध
Vigyan Aur Yudh
विज्ञान और युद्ध यानी दो विपरीत धु्रव, फिर भी आज एक-दूसरे का पर्याय बनते जा रहे हैं। युद्ध! अपने-आप में ही एक बहुत बड़ी विभीषिका, मृत्यु एंव सर्वनाश को दिया जाने वाला निमंत्रण हुआ करता है यह युद्ध। फिर भी सदियों से, शायद उसी दिन से कि जब तनधारी जीवों ने धरती पर पदार्पण किया होगा, ये युद्ध लड़े जा रहे हैं। युद्ध लड़े ही नहीं जाते रहे, बल्कि एक पवित्र धर्म मानकर लड़े जाते रहे हैं। युद्ध और धर्म, हैं न विडंबना। परंतु जब युद्ध को धर्म समझा जाता था, तब एक तो युद्ध विशेष भू-भाग तक सीमित हुआ करते थे और दूसरे उसके कुछ कठोर नियम-धर्म भी अवश्य थे। तब एक भू-भाग पर योद्धा लड़ते रहते थे, जबकि उसके आस-पास किसान हल जोतते या फसलें बोते-काटते रहा करते थे। ऐसा करते समय उन्हें अपने प्राणों या फसलों की हानि होने की कोई आशंका नहीं हुआ करती थी। पर जब से आधुनिक ज्ञान-विज्ञान ने इस धरा पर कदम रखे हैं, विशेषकर युद्धक सामग्रियों का निर्माण शुरू किया है, युद्ध की अवधारणा और स्वरूप ही एकदम बदल गए हैं। आज का युद्ध मैदानों के बिना दफ्तर या जमीनदोज तहखानों में वैसे जनरलों द्वारा लड़ा जाता है। युद्ध हमसे हजारों मील दूर ही क्यों न हो रहा हो, प्राण जाने का भय सर्वत्र, हर पल-क्षण, छोटे-बड़े हर प्राणी को समान रूप में बना रहता है। आज के युद्धों का प्रभाव भी विश्वव्यापी होता है।
आज युद्ध लउऩे के लिए सेनापतियों को किसी कुरुक्षेत्र, पानीपत या ट्रॉय के मैदान में आकर, बिगुल आदि बजाकर चुनौती देने और नारे लगाने नहीं पड़ते, बल्कि जैसा कि ऊपर कह आए हैं, सेनापति तो किसी सुरक्षित भूमिगत स्थान पर बैठे हो सकते हैं। उनके सामने एक और नक्शा दूसरी ओर इलेक्ट्रॉनिक पर्दा रहता है। उस पर कुछ धब्बे उठते हैं। कोई बटन दबकर अलार्म बजता है और युद्धक विमान शब्द की गति से भी तेज उडक़र जब बम बरसा वापिस आ चुके होते हैं, तब पता चल पाता है कि कहीं युद्ध हो रहा है। प्रथम विश्व-युद्ध तक तो फिर भी कुछ कुशल रही, पर द्वितीय विश्वयुद्ध में जब अमेरिका द्वारा हिराशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम छोड़े गए, तब से युद्धों का स्वरूप बहुत ही भयानक से भयानकतम हो गया है। इसी कारण आज छोटे-बड़े सभी चिंतित हैं कि यदि वैज्ञानिक निर्माणों में कोई गुणात्मक परिवर्तन न लाया जा सका, तो किसी दिन कोई निहित स्वार्थी मौत का सौदागर कहीं अणु, उदजन, कोबॉल्ट या अन्य प्रकार का कोई भीषणतम बम फेंककर सारी स्वतंत्रता सारी मानवता का दम घोंटकर रख देगा। कितना भयावह होगा वह दिन। ऊपर जिन भयानकतम बमों का उल्लेख किया गया है, वे तो हैं ही, उनके अतिरिक्त आज के विज्ञान ने ऐसे-ऐसे दूरमारक अस्त्रों, दमघोंटू गैसों, जैविक रसायनों का निर्माण कर लिया है कि इनके प्रयोग से एक देश दूसरे को घर बैठे ही विनिष्ट कर सकता है विनाश से अप्रभावित चाहे वह स्वंय भी नहीं रहेगा। बमों से, गैसों से निकलने वाले विषैले तत्व हमवा में घुलकर जानदार प्राणियों के ही नहीं वनस्पतियों तक के गले घोंटकर रख देंगे। वह सैलानी हवा जिधर भी रुख कर गुजर जाएगी, उधर ही विनाश-बल्कि महानाश बरपा हो जाएगा। फिर भला किसी के भी इस प्रकार के मारक शस्त्रों-गैसों का प्रयोग करने वालों का भी सुरक्षित रह पाना कहां संभव हो पाएगा? दूसरों को मारने के इच्छुक स्वंय भी बच नहीं पाएंगे। इस प्रकार आज के वैज्ञानिक युग में युद्ध का अर्थ है न केवल मानवता का, बल्कि अन्य सभी प्राणियों, वनस्पतीयों एंव प्राणदायक तत्वों का भी सर्वनाश! उस भावी सर्वनाश की कल्पना से ही प्रकंपित होकर आज का वैज्ञानिक मानव बचाव का उपाय सोचने को विवश हो उठा है।
भावी युद्ध एंव विनाश से बचने का एक ही उपाय है। वह यह कि इस अथा्रत युद्धक सामग्रियों के निर्माण की दिशा में मानवता के कदम जहां तक बढ़ चुके हैं, वहीं रुक जाएं। तेयार सामग्रियों को पूर्णतया अटलांटिक साग की गहराइयों में डुबोकर विनष्ट कर दिया जाए। आगे से किसी भी स्तर पर, किसी भी रूप में युद्धक सामग्रियों के निर्माण पर सभी राष्ट्र सच्चे मन से प्रतिबंध लगा दें। विज्ञान की शक्तियों का प्रयोग मानवीय भाईचारे के निर्माण-विस्तार की दिशा में करें। यदि ऐसा न किया गया और किसी की भी भूल से युद्ध छिड़ गया तो विज्ञान का यह युद्धक अजगर बैठे-बिठाए सारी मानवता को निगल जाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं। तब या तो मानवता बचेगी ही नहीं, यदि कोई बचेगा भी तो अपने आधे-अधूरेपन में मानवता के लिए धिक्कार और पश्चताप बनकर ही ज्यों-त्यों जी पाएगा। इन विषम स्थितियों को आने से रोकने की हरचंद्र कोशिश करनी चाहिए। वैज्ञानिक और राजनीतिज्ञ इस दिशा में प्रयासमूलक नारे तो अवश्य उछाल रहे हैं, पर लगता है कि ऐसा सच्चे मन से नहीं कर रहे हैं। तभी तो अभी तक कोई परिणाम सामने नहीं आ पाया है। निश्चय ही चिंता की बात है।