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Hindi Essay on “Varsha ki ek Bhayanak Raat” , ” वर्षा की एक भयानक रात” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

वर्षा की एक भयानक रात

भारत अनेक ऋतुओ का देश है | यहाँ प्रत्येक ऋतु समयानुसार आती-जाती रहती है | तथा प्रत्येक ऋतु अपनी कोई-न कोई छाप हमारे दिलो पर छोड़ जाती है | गर्मी से तपती हुई धरती की प्यास बुझाने हेतु पावस ऋतु का आगमन होता है | इस ऋतु के आने पर प्रकृति आनन्द – विभोर हो उठती है | नदी नाले फुले नही समाते है | पशु-पक्षी भी गर्मी से राहत पाते है | किसान की बाछे खिल उठती है | परन्तु यह सुखदायिनी वर्षा ऋतु कभी कभी अपना विनाशकारी रूप भी हमे दिखा जाती है जो भुलाने पर भी नही भुला जाता है | गत वर्ष ऐसा ही एक ह्रदय विदारक दृश्य मैंने बुहत समीप से देखा था |

2 अगस्त सन 2001 की बयानक रात्रि का आखोंदेखा दृश्य मै कदापि नही भूल सकता हूँ | मेरे जीवन की यह अविस्मर्णीय रात्रि थी | दो दिन पूर्व अर्थात ३१ जुलाई सन 2001 को मै अपने गाँव जखौली गया था | 2 अगस्त को दोपहर बाद लगभग 4 बजे से ही जोर से वर्षा प्रारम्भ हो गई थी | उस तेज वर्षा के कारण 5 बजते ही गाँव में अधेरा छा गया था | वर्षा ने प्रारंभ होने के बाद तो अगले दिन प्रात:ककल होने तक रुकने का नाम ही नही लिया | काले –काले बादल घुमड़-घुमड़ कर चारो और अपना आतंक फैला रहे थे | दामिनी रह-रह कर जोरो से दमक रही थी | गाँव की कच्ची गलिया पानी से भर गई थी | बिजली की गडगडाहट कच्चे घरो में बैठे लोगो के दिलो को दहला रही थी | चारो और भयंकर अधेरा छाया हुआ था | बाहर निकलना बुहत कठिन हो रहा था | रह रह कर हम बाहर की और झाक – झाक कर देखते रहते थे | कच्चे घरो के छप्पर चू थे थे | घर का सभी आवश्यक सामान प्राय : भीग गया था | हमारा घर तो फिर भी पक्का था सो हम सुरक्षित थे | सामने एक लुहार का कच्चा घर था, उसकी दशा तो बुहत दयनीय थी जो देखने पर भी देखी नही जा रही थी |

अर्द्धरात्री बीतने पर किसी के कच्चे घर के गिरने की आवाज सुनाई दी | बीएस फिर क्या था में उसी के विषय में सोचता रहा | थोड़ी देर बाद किसी के चीखने की आवाज आई | हम दो व्यक्ति टार्च लेकर बाहर निकले तो पता लगा की सामने जो घर गिर गया था वहा एक बच्चा तथा एक गाय दब कर मर गए थे | परन्तु वर्षा रुकने का नाम नही ले रही थी | लगभग एक घंटे बाद पता लगा की कुछ आगे किसी अन्य व्यक्ति के घर की दीवार बैठ गई | प्रात : काल बाहर निकल कर देखा की चारो और पानी ही पानी था | खेतो में पानी भर गया था | उस गाँव के लोगो के लिए तो यह प्रलय की रात्रि थी | पूरा-का पूरा गाँव जल –मग्न था | वहा का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था |  पूरे गाँव में लगभग पांच बच्चो की मौत हो गई थी | अनेक पशु भी अपने प्राणों से हाथ धो बैठे थे | अगले दिन में अपने गर लौटा आया | परन्तु उस विनाशकारी रात्रि को में आज तक भी नही भुला सका हूँ |

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