Hindi Essay on “Sarv Shiksha Abhiyan” , ”सर्वशिक्षा अभियान” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
सर्वशिक्षा अभियान
Sarv Shiksha Abhiyan
शिक्षा के बिना कोई भी बनता नहीं सत्पात्र है।
इसे पाने के लिए कुछ भी प्रयास करना मात्र है।।
सबसे पहला कर्तव्य है, शिक्षा बढ़ाना देश में।
शिक्षा के बिना ही हैं हम सभी क्लेश मंे।
मनुष्य सुख-शांति के लिए जन्म से ही प्रयास करता रहता है। शिक्षा के द्वारा उसे मानसिक शक्ति प्राप्त होती रही है। समाज का शिष्ट एवं सभ्य नागरिक बनाने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है।
व्यक्ति की सच्ची स्वतंत्रता निरक्षरता में नहीं, साक्षरता में हैं इसलिए हमारे देश के नेताओं ने देश की स्वतंत्रता से भी काफी पहले राष्ट्रीय विकास के माध्यम के रूप में शिक्षा के महत्व को अनुभव कर लिया था। वे यह जान चुके थे कि नैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान के लिए शिक्षा आवश्यक है। तभी गांधी जी ने बुनियादी शिक्षा की बात उठाई थी। हमारा नारा होना चाहिए था-
’’कदम से कदम मिलाना है,
सबको साक्षर बनाना है।
सपना साकार कर दिखाना है,
बापू के सपनों का भारत बनाना है।।’’
साक्षरता प्रतीक है-स्वतंत्रता एवं विकास की। शिक्षा की गुलामी की जंजीरों तथा शोषण से हमारी रक्षा करती है। जब कोई व्यक्ति सूदखोर जमींदार को पढने व समझने लगता है, जब एक खाली व कोरे कागज पर अँगूठा लगाने से इंकार कर देता है-तब होता है एक विस्फोट, जिसकी गूँज व ली दूर-दूर तक महसूस की जा सकती है। फिर जन्म होता है-एक नए मानव का, एक साक्षार मानव का, एक स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर मानव का। इसके साथ ही समाज लेता है-एक नई अँगड़ाई, एक नई दिशा, एक नया मोड़। इसलिए-
’’पहले-सा जीवन नहीं लाचार, बहुत आगे बढ़ गया है संसार।
शिक्षा में हमें बना के समर्थ, खोले सभी प्रगति के द्वार।।
प्रजातंत्र की सफलता, पूर्णयता देश के नागरिकों पर निर्भर है और ऐसा तभी संभव है जब व्यक्ति उचित व अनुचित में भेद करना सीख जाए। ऐसा मात्र शिक्षा द्वारा ही संभव है। शिक्षा ही प्रजातंत्र को जीवातं बनाती है। अतः शिक्षा ही प्रजातंत्र में प्राण फूँकती है, इसको सार्थक बनाती है तथा सही अर्थों में शिक्षा ही प्रजातंत्र की आत्मा है।
शिक्षा के द्वारा ही शारीरिक, मानसिक व सांस्कृतिक विकास संभव है। इसी के द्वारा मन, मस्तिष्क की शक्तियों को एकजुट किया जा सकता है। शिक्षा के द्वारा ही समय और स्थान के अनुसार घटनाओं, विचारों एवं अपने दृष्टिकोण को व्यक्ति अधिक सहजता से प्रकट करने में समर्थ हो जाता है। शिक्षा जानकारी को संप्रेक्षित करने के साथ-साथ संकलित करने का भी माध्यम है।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह मनुष्य, मनुष्य कहलाने योग्य नहीं है जो निरक्षर है। वह पशु-तुल्य प्रवृतियों को अपनाता है। मनुष्य को पृथ्वी का स्वामी माना गया है परन्तु यदि वह निरक्षर होगा जो वह स्वामी की उपाधि के लिए उपयुक्त भूमिका नहीं निभा पाएगा। शिक्षित व्यक्ति ही अपने साथ-साथ दूसरों को भी प्रगति प्रदान करता है।
भारत सरकार ने स्वतंत्रता पाने के पश्चात् बहुत से विद्यालय खोले। प्रौढ़-शिक्षा, सह-शिक्षा एवं अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र भी खोले गए। आज शिक्षा का स्तर पहले से अधिक बढ़ गया है। लेकिन अभी भी स्थिति अपनी दृढ़ नहीं है, जितनी की होनी चाहिए। यह स्थिति बालिकाओं के मामले में तो और भी बदतर है। आज का समाज नारी-शिक्षा में रूकावट है इसलिए बालिकाओं का विद्यालय छोड़ने का प्रतिशत अब भी अपेक्षतया अधिक है। अतः भारत में जब भी कोई नीति बने, उसमें इस प्रतिशत पर विशेष ध्यान देना होगा। कहा गया है-
’’बालिका क्यों भुगतती है, मानव के सामने क्यों झुकती है।
देश का गौरव है बालिका, कल का समाज है बालिका।।’’
वे सभी लोग, जो अभी निरक्षर हैं, उन सबको राष्ट्र की मुख्यधारा में लाना है, जिससे वे अपना हित-अहित पहचानकर उचित मतदान करें, अपने दैनन्दिन क्रिया-कलापों मंे आत्मनिर्भर बन सकें और यह भी जान सकें कि देश द्वारा बनाई गई नीतियाँ स्वयं से व देश से किस प्रकार संबद्व हैं। वे अपने अधिकार जानें व अपने कर्तव्य के विषय में भी जागरूक हों।
सभी को शिक्षा देने के आंदोलन में युवावर्ग एवं सेवानिवृत लोगों को बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए। इनका समाज के प्रति दायित्व भी है और उन्हें पूरा करना भी चाहिए। सभी शिक्षित होंगे तो भारत शिक्षित बन जाएगा और तरक्की के रास्ते पर बढ़ चलेगा। इसी में हम सभी की भलाई है।
this is very good essay
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