Hindi Essay on “Sadachar , सदाचार” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
सदाचार
निबंध नंबर : 01
सदाचार दो शब्दों के मेल से बना है सत + आचार अर्थात हमेशा अच्छा आचरण करना । सदाचार मानव को अन्य मानवों से श्रेष्ठ साबित करता है। सदाचार का गुण मानवों में महानता का गुण सृजित करता है। सदाचार ही वह गुण है जिसे हर व्यक्ति लोगों में देखने की इच्छा रखता है।
मानव को समस्त जीवों में श्रेष्ठतम माना जाता है, क्योंकि मानव ने अपने विवेक और सदाचार से अपनी महानता सर्वत्र साबित की है। सदाचार का गुण व्यकित में सामाजिक वातावरण तथा पारिवारिक माहौल से उत्पन्न होता है। जो व्यकित इन गुणों को आत्मसात कर पाता है, वह समाज के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणादायी होता है। हम इतिहास के पन्नों में झांक कर देखें तो पाते हैं कि जितने भी महापुरूष, कवि, लेखक तथा महान व्यकित उत्पन्न हुए सभी ने सदाचार के गुणों को आत्मसात किया और उसे अपने जीवन में अपनाया। आज भी स्वामी विवेकानन्द, महर्षि दयानंद सरस्वती, महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, अब्राहम लिंकन, कार्ल मार्क्स, मदर टेरेसा आदि को उनके सदाचारी प्रवृत्ति के कारण ही याद किया जाता है।
हमें अपने जीवन में सदाचार को पूरी गंभीरता से शामिल करना चाहिए। इस प्रकार हम अपने जीवन को तो श्रेष्ठ करेंगे ही, साथ ही औरों के लिए भी मार्गदर्शक और प्रेरणादायी बनेंगे। आज के युवाओं में सदाचार के गुणों का अभाव होता जा रहा है- जिससे आए दिन भ्रष्टाचार, अपराध और आपराधिक घटनाओं को बढ़ावा मिल रहा है। जिसका प्रतिकूल प्रभाव हमारे राष्ट्र के विकास पर भी पड़ रहा है। अत: आज के युवाओं को यह प्रण लेना चाहिए कि वे सदाचार को अपने जीवन में अपनाएंगे।
निबंध नंबर : 02
सदाचार का महत्त्व
Sadachar ka Mahatva
प्रस्तावना- संसार को सभ्यता और संसार का पाठ पढ़ाने वाले देश के महापुरूष, साधु-संत, भगावान अपने सदाचार के बल पर ही संसार को शंति एवं अहिंसा का पाठ पढ़ाने में सफल रहे। गौतम बुद्ध सदाचार जीवन अपना कर भगवान कहलाये-उनके विचार, आचरण और बौद्ध धर्म भारत से फैलता हुआ एशिया के अनेक देशों में पहुंचा। मनुष्य सदाचार की राह पकड़ कर मनुष्य से ईश्वर तुल्य हो जाता है।
सदाचारी मनुष्य को सदा सुख की प्राप्ति होती है। वह धर्मिक, बुद्धिमान और दीर्घायु होता है। सदाचार के बहुत से रूप हैं; जैसे माता-पिता और गुरू की आज्ञा का पालन करना उनकी वन्दना, परोपकार, अहिंसा, नम्रता और दया करना। इसीलिये नीतिकारों ने कहा है-
आचाराल्लभते हयायुराचारादीप्सिताः प्रजा।
आचाराद्धनमक्ष्यामाचारो हन्त्यलक्षणम््।।
इसका अर्थ है-सदाचार से आयु और अभीष्ट सन्तान प्राप्न होती है। सदाचार से ही अक्षय धन मिलता है। सदाचार ही बुराइयों को नष्ट करता है।
सदाचार का अर्थ-सज्जन शब्द संस्कृृत भाषा के सत्् और आचार शब्दों से मिलकर बना है। इसका अर्थ है-सज्जन का आचरण ! सत्य, अहिंसा, ईष्वर, विष्वास, मैत्री-भाव, महापुरूषों का अनुसरण करना आदि बातें, सदाचार में आती हैं। सदाचार को धारण करने वाले व्यक्ति सदाचारी कहलाता है। इसके विपरीत आचरण करने वाले व्यक्ति दुराचारी कहलाते हैं। सदाचार का संधिविच्छद सद््$आचार बनता है। जो इन सबमें अच्छा है, वहीं सदाचारी है।
दुराचारी व्यक्ति सदैव दुःख प्राप्त करता है-वह अल्पायु होता है और उसका सब जगह निरादर एवं अपमान होता है। सदाचाररहित व्यक्ति धर्म एवं पुण्य से हीन होता है।
कहा गया है-“आचारहीन व्यक्ति को वेद भी पवित्र नही कर पाते।“
सदाचारी व्यक्ति से देश, राष्ट्रय और समाज का कल्याण होता है। सदाचार से मनुष्य का आदर होता है, संसार में उसकी प्रतिष्ठा होती हैै। भारतवर्ष में हर काल में सदाचारी महापुरूष जन्म लेते रहे हैं।
श्री रामचन्द्र मर्यादा पुरूषोत्तम, भरत, राणा प्रताप आदि सदाचारी यहां पुरूष थे। सदाचार से मनुष्य राष्ट्र और समाज का कल्याण करता है। इसीलिये हमें सदाचार का पालन करना चाहिये। मनु ने कहा है-
“समस्त लक्षणों से हीन होने पर भी जो मनुष्य सदाचारी होता है, श्रद्धा करने वाला एवं निन्दा न करने वाला होता है, वह सौ वर्षों तक जीवित रहता है।“
सदाचार का महत्त्व-भारतीय संस्कृृति पूरे भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस संस्कृति में सदाचार का विशेष महत्त्व है। जिस आचरण से समाज का सर्वाधिक कल्याण होता है, जिससे लौकिक और आत्मिक सुख प्राप्त होता है, जिससे कोई व्यक्ति कष्ट का अनुभव नहीं करता, वह आचरण ही सदाचार कहलाता है। सदाचार और दुराचार में भेद करने की सामथ्र्य केवल मनुष्य में है। पशु, कीट आदि में नही! इसीलिये नीतिकारों ने शास्त्रों में सदाचार था। पालन करने का निर्देश दिया है।
सच्चरिता-सच्चरित्रा सदाचार का महत्त्वपुर्ण अंग है। यह सदाचार का सर्वोत्तम साधन है। इस विषय में कहा गया है-“यदि धन नष्ट हो जाये तो मनुुष्य का कुछ भी नहीं बिगड़ता, स्वास्थ्य बिगड़ जाने पर कुछ हानि होती है पर चरित्रहीन होने पर मनुष्य का सर्वस्व नष्ट हो जाता है।“
शील अथवा सदाचार की महिमा हमारे धर्म-ग्रन्थों में अनेक प्रकार से की गई है। मह््ाभारत की एक कथा के अनुसार-एक राजा का शील के नष्ट होने पर उसका धर्म नष्ट हो गया, यश तथा लक्ष्मी सभी उसका साथ छोड़ गयीं। इस प्रकार भारतीय और पाश्चात्य सभी विद्वानों ने शील, सदाचार एवं सच्चरित्रता को जीवन में सर्वाधिक महत्त्व दिया है। इसे अपना कर मनुष्य सुख-शान्ति पाता है समाज में प्रतिष्ठित होता है।
धर्म की प्रधानता- भारत एक आध्यात्मिक देश है। यहां की सभ्यता एवं संस्कृृति धर्मप्रधान है। धर्म से मनुष्य की लौकिक एवं अध्यात्मिक उन्नति होती है। लोक और परलोक की भलाई भी धर्म से ही सम्भव है। धर्म आत्मा को उन्नत करता है और उसे पतन की ओर जाने से रोकता है। धर्म के यदि इस रूप को ग्रहण किया तो धर्म को सदाचार का पर्यायवाची कहा जा सकता है।
दुसरे शब्दों मेें सदाचार में वे गुण हैं, जो धर्म में हैं। सदाचार के आधार पर ही धर्म की स्थिति सम्भव है। जो आचारण मनुष्य को ऊंचा उठाये, उसे चरित्रवान बनाय, वह धर्म है, वही सदाचार है। सदाचारी होना, धर्मात्मा होना है। इस प्रकार सदाचार को धारण करना धर्म के अनुसार ही जीवन व्यतीत करना कहलाता है। सदाचार को अपनाने वाला आप ही आप सभी बुराइयों से दूर होता चाला जाता है।
सदाचार की शक्ति- सदाचार मनुष्य की काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार आदि तुच्छ वृृत्त्यिों से रक्षा करता है। अहिंसा की भावना जाग्रत होती है। इस प्रकार सदाचार का गुण धार करने से मनुष्य का चरित्र उज्ज्वल होता है, उसमें कत्र्तव्यनिष्ठा एवं धर्मनिष्ठा पैदा होती है। यह धर्मनिष्ठा उसे अलौकिक शक्ति की प्राप्ति में सहायक होती है। अलौकिक शान्ति को प्राप्त करके मनुष्य देवता के समान पूजनीय और सम्मानित हो जाता है।
सदाचार सम्पूर्ण गुणों का सार-सदाचार मनुष्य के सम्पूर्ण गुणों का सार है। सदाचार मनुष्य जीवन को सार्थकता प्रदान करता है। इसकी तुलना में विश्व की कोई भी मूल्यवान वस्त नहीं टिक सकती। व्यक्ति चाहे संसार के वैभव का स्वामी हो या सम्पूर्ण विधाओं का पण्डित यदि वह सदाचार से रहित है तो वह कदापि पूजनीय नहीं हो सकता। पूजनीय वही है जो सदाचारी है।
मनुष्य को पूजनीय बनाने वाला एकमात्र गुण सदाचार ही है। सदाचार का बल संसार की सबसे बड़ी शक्ति है, जो कभी भी पराजित नहीं हो सकती। सदाचार के बल से मनुष्य मानसिक दुर्बलताओं का नाश करता है तथा इसके बिना वह कभी भी अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता है। इसलिए जीवन में उन्नति करना हो तो सदाचारी होने का संकल्प सवसे पहले लेना चाहिये।
उपसंहार-वर्तमान युग में पाश्चात्य पद्धति की शिक्षा के प्रभाव से भारत के युवक-युवतियों सदाचार को निरर्थक समझ्ाने लगे हैं। वे सदाचार विरोधी जीवन को आदर्श मानने लगे हैं। इसी कारण आज हमारे देश और समाज की दुर्दशा हो रही है। युवक पतन की ओर बढ़ रहा है।
बिगड़े हुए आचरण की रक्षा के लिए युवक वर्ग को होना चाहिये। उन्हें राम, कृृष्ण, युधिष्ठिर, गांधी एवं नेहरू के चरित्र आदर्श मानकर सदाचरण अपनाना चाहिये, अन्यथा वे अन्धकार में भटकने के अतिरिक्त और कुछ भी प्राप्त नहीं कर पायेगे।
सदाचार आचरण निर्माण का ऐसा प्रहरी है जो मन को कुविचारों की ओर जाने से रोकता है। मन की चंचलता पर मानव ने काबू पा लिया तो उसने पूरे विश्व को अपने काबू में कर लिया। स्वामी राम कृृष्ण नरमहंस, स्वामी रामतीर्थ, स्वामी विवेकानन्द ऐसे सदाचारी पुरूष हुए हैं, जिन्होंने अपने आचरण और विचारों से पूरे विश्व को प्रभावित किया। जिस पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करने में आज का युवा लगा हुआ है, उसी पाश्चात्य सभ्यता के देशों में जाकर स्वामी विवेकानन्द ने अपने विचारों से वहां के बड़े-बडे विद्वानों को नतमस्तक होने पर विवश कर दिया।
निबंध नंबर : 03
सदाचार
Sadachar
संकेत बिंदु -“सदाचार‘ शब्द से तात्पर्य –सदाचारी कौन? –सदाचार और नैतिकता –सदाचार के गुण
सदाचार शब्द दो शब्दों के मेल से बना है- सतआचार। इसका अर्थ है- अच्छा आचरण। सत्य, अहिंसा, प्रेम, उदारता, सदाशयता आदि सदाचार के कुछ प्रमुख लक्षण हैं। जो व्यक्ति अपने जीवन में इन्हें चरितार्थ करता है, वह सदाचारी कहलाता है। सदाचरण से व्यक्ति अपने जीवन में तो सुख और शांति का अनुभव करता ही है, उससे औरों का भी भला होता है। हर व्यक्ति अपने निजी जीवन में सदाचार के कुछ विशिष्ट नियम या सिद्धांत स्थिर कर सकता है। यह बात स्मरणीय है कि सदाचरण वह है जिससे व्यक्ति के साथ पूरे समाज के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और नैतिकता को प्रश्रय मिले। सदाचार का नैतिकता से गहरा संबंध है। इन्हें एक-दूसरे का पर्याय कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी। सदाचार का संबंध मनुष्य के मन की भावनाओं से भी और उसके बाहरी आचरण या व्यवहार से भी है। वास्तव में मन की भावनाएँ और बाहरी आचरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। शिष्टाचार सदाचार का एक अंग ही नहीं, बल्कि सामाजिक व्यवहार में तो वह सदाचार का पर्याय ही हो जाता है। देश-काल के अनुसार शिष्टाचार के नियमों में न्यूनाधिक परिवर्तन होते रहते हैं। सदाचार तभी संभव होगा जब मनुष्य संयम, सत्यनिष्ठा, अध्यवसाय, कर्तव्यपराणता, क्षमाशीलता आदि गुणों का अपने व्यक्तित्व में विकास करे।
Very small please post big essays this is not even like a essay it’s like a anuched in hindi
dude chill stop being a showoff … u wont be able to learn this whole thing and ur saying to post bigger essays