Hindi Essay on “Mera Priya Kavi Surdas ” , ” मेरा प्रिय कवि सूरदास” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
मेरा प्रिय कवि सूरदास
भारत में आदिकाल से ही महान लेखको , कवियों, विद्वानों व् साहित्यकारों की परम्परा रही है | हिन्दी साहित्य में एक-से-एक महान कवियों ने साहित्य रचनाए की है | जिनमे गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई , जयशंकर प्रसाद , सन्त कबीर, मैथिलिशारर्ण गुप्त आदि महान कवियों ने हिन्दी में श्रेष्ठ रचनाएँ दी है | मै इन समस्त कवियों का सम्मान करता हूँ | परन्तु इनमे से मुझे सबसे अधिक प्रिय कृष्ण –भक्त कवि ‘सूरदास’ लगते है | कवि सूरदास को हिन्दी साहित्य के गगन का सूर्य मन जाता है |
सूरदास का जन्म संवत , 1535 में दिल्ली से कुछ दुरी पर बल्लबढ़ के निकट सीही नामक ग्राम में हुआ | इनके पिता का नाम रामदास था | वे जाति के सारस्वत ब्राह्मण थे | उनके विषय में कहा जाता है की वे जन्म से अन्धे थे | वे बचपन से ही साधु – संगति में रहते थे | प्रभु भक्ति ने इनके मन में वैराग्य की भावना भर दी थी, जिस कारण ने गाँव छोडकर श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में जाकर रहने लगे | बाद में मथुरा छोडकर मथुरा और आगरा के बीच युमन – तक स्थित गऊ घाट पर रहने लगे |
गऊ घाट पर इनकी भेट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई | उन्होंने सूरदास को अपना शिष्य बना लिया | अपने गुरु वल्लभाचार्य जी की आग्रह पर उन्होंने आजीवन श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओ के पदों की रचना की | उन्होंने अपने जीवन में लगभग सवा लाख पदों की रचना की थी जिनमे से आज केवल पाँच हजार के लगभग पद उपलब्ध है | उनके पद उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘सूरसागर’ , साहित्य लहरी’ तथा ‘सुर सारावली’ में संकलित है | इनके पदों को प्रमुखत : तीन भागो में बांटा जा सकता है | – विनय के पद बाल – लीला के पद तथा श्रृगार के पद | विनय के पदों में कवि ने प्रभु के सम्मुख अपने दोषों का उल्लेख किया है | बाल लीला के पदों में प्रभु के श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन बड़े मनोहारी ढंग से किया है | इसमें श्रीकृष्ण के पालने में सोने, घुटनों के बल चलने, माखन चोरी करने, गौए चराने, बाल सखाओ के साथ खेलने आदि के प्रसंग है | श्रृगार के पदों में गोपियों के साथ रास, मुरली- वादन और मथुरा चले जाने पर गोपियों का वियोग – वर्णन है |
सुर की भाषा ब्रज भाषा रही है इसलिए उनके पदों की रचना ब्रजभाषा में ही हुई है | उनके पदों में भाषा की मधुरता तथा संगीत का अमर जादू है | साहित्यकारों का ऐसा मानना है की संसार की किसी भी भाषा के साहित्य में बाल-लीला का इतना सजीव वर्णन नही मिलता जितना की सुर के पदों में मिलता है | इसी कारण से सूरदास को वात्सल्य वर्णन का सम्राट कहा जाता है | इन उपरोक्त विशेषताओ व् गुणों के कारण ही सूरदास मेरे सर्वाधिक प्रिय कवि है |