Hindi Essay on “Lal Bahadur Shastri , लाल बहादुर शास्त्री” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
लाल बहादुर शास्त्री
Lal Bahadur Shastri
Essay No. 01
लाल बहादुर शास्त्री भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय नामक स्थान में 2 अक्तूबर, सन् 1904 को हुआ था। इनके पिता शारदा प्रसाद एक शिक्षक थे। इनकी माता का नाम रामदुलारी देवी था। इनका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। स्वतंत्रता आंदोलन के क्रम में स्कूल में पढ़ते हुए ये जेल भी गए। जेल से आने पर पुनः काशी विद्यापीठ में पढ़ाई शुरू की। यहीं इन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त हुई।
इनका रहन-सहन बिल्कुल साधारण था और विचार काफी ऊँचे थे। शास्त्री जी ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के प्रतीक थे। निर्धनों के प्रति इनके हृदय में काफी करुणा थी। शास्त्री जी 9 जून, सन् 1964 को भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री बने। इन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था। शास्त्री जी के नेतृत्व में सन् 1965 में भारत ने पाकिस्तान के साथ युद्ध में विजय प्राप्त की।
शास्त्री जी का शारीरिक गठन अच्छा था लेकिन कद छोटा था। उनका कद छोटा था लेकिन प्रतिष्ठा बहुत बड़ी थी।
उनके जीवन की सादगी और उनकी महानता से हम भारतवासियों को प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए। उनका पूरा जीवन संघर्ष, सादगी तथा उच्च विचारों का प्रतीक है।
लाल बहादुर शास्त्री
Lal Bahadur Shastri
Essay No. 02
लाल बहादुर शास्त्री जी जिन्हें आप और हम भारत के दूसरे प्रधानमंत्री का तरह याद रखे हुए हैं । लाल बहादुर शास्त्री जी ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम रोल अदा किया, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और 1964 में देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने 1966 में हुए पाकिस्तान के साथ युद्ध में उनके निर्णयों की वजह से भारत ने पाकिस्तान को मार भगाया था। लाल बहादुर शास्त्री को चाहे लोग किसी भी बात के लिए जानें लेकिन जो शब्द उनके व्यक्तित्व को बखूबी दर्शाते थे वह हैं सादगी व उच्च विचार और शिष्टाचार।
लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उनका जन्मदिवस गांधी जी के जन्मदिवस के समान होने की तरह व्यक्तित्व और विचारधारा भी गांधी जी के जैसे ही थे। शास्त्री जी गांधी जी के विचारों और जीवनशैली से बेहद प्रेरित थे। शास्त्री जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में गांधीवादी विचारधारा का अनुसरण करते हुए देश की सेवा की और आजादी के बाद भी अपनी निष्ठा और सच्चाई में कमी नहीं आने दी।
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रुप में नियुक्त किया गया था। वो गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में प्रहरी एवं यातायात मंत्री बने। जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई 1964 को देहावसान हो जाने के बाद, शास्त्री जी ने 9 जून1964 को प्रधान मंत्री का पद भार ग्रहण किया। शास्त्री जी का प्रधानमंत्री पद के लिए कार्यकाल राजनैतिक सरगर्मियों से भरा और तेज गतिविधियों का काल था। पाकिस्तान और चीन भारतीय सीमाओं पर नजरें गडाए खड़े थे तो वहीं देश के सामने कई आर्थिक समस्याएं भी थीं, लेकिन शास्त्री जी ने हर समस्या को बेहद सरल तरीके से हल किया। किसानों को अन्नदाता मानने वाले और देश के सीमा प्रहरियों के प्रति उनके अपार प्रेम ने हर समस्या का हल निकाल दिया। “जय जवान, जय किसान” के नारे के साथ उन्होंने देश के नौजवानों और किसानों में एक नयी ऊर्जा का संचार किया। भारत में हरित क्रांति कि शुरुवात इन्हीं के कार्यकाल में हुई थी।
जिस समय वह प्रधानमंत्री बने उस साल 1965 में पाकिस्तानी हुकूमत ने कश्मीर घाटी को भारत से छीनने की योजना बनाई थी। लेकिन शास्त्री जी ने दूरदर्शिता दिखाते हुए पंजाब के रास्ते लाहौर में सेंध लगा पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस हरकत से पाकिस्तान की विश्व स्तर पर बहुत निंदा हुई। पाक हुक्मरान ने अपनी इज्जत बचाने के लिए तत्कालीन सोवियत संघ से संपर्क साधा जिसके आमंत्रण पर शास्त्री जी 1966 में पाकिस्तान के साथ शांति समझौता करने के लिए ताशकंद गए। इस समझौते के तहत भारत.पाकिस्तान के वे सभी हिस्से लौटाने पर सहमत हो गया जहाँ भारतीय फौज ने विजय के रूप में तिरंगा झंडा गाड़ दिया था।
इस समझौते के बाद दिल का दौरा पड़ने से 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में ही शास्त्री जी का निधन हो गया। हालांकि उनकी मृत्यु को लेकर आज तक कोई आधिकारिक रिपोर्ट सामने नहीं लाई गई है, उनके परिजन समय.समय पर उनकी मौत पर सवाल उठाते रहे हैं। यह देश के लिए एक शर्म का विषय है कि उसके इतने काबिल नेता की मौत का कारण आज तक साफ नहीं हो पाया है।
साल 1966 में ही उन्हें भारत का पहला मरणोपरांत भारत रत्न का पुरस्कार भी मिला था जो इस बात को साबित करता है कि शास्त्री जी की सेवा अमूल्य है।
आज राजनीति में जहां हर तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला है वहीं शास्त्री जी एक ऐसे उदाहरण थे जो बेहद सादगी पसंद और ईमानदार व्यक्तित्व के स्वामी थे। अपनी दूरदर्शिता की वजह से उन्होंने पाकिस्तान को गिड़गिडाने पर विवश कर दिया था। हालांकि ताशकंद समझौता भारत की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा पर फिर भी उन्होंने दुनिया को भारत की ताकत का अंदाजा दिला दिया था ।
लाल बहादुर शास्त्री
Lal Bahadur Shastri
Essay No. 03
लाल बहादुर शास्त्री बहुत ही साधारण एंव सहज व्यक्तित्व के थे। वे तडक़-भडक़ से बहुत दूर रहते थे। उनमें बाह्य आडंबर नहीं के बराबर था। कोई भी व्यक्तिगत कठिनाई उन्हें उनके पथ से डिगा नहीं सकती थी।
शास्त्रीजी का आदर्शन कल्पना की वस्तु नहीं था। उनके लिए उनका आदर्शन एक ऐसी प्रकाश-किरण के समान था, जो सदैव चलते रहने के लिए प्रेरित करता था।
शास्त्रीजी मानवता की, भारतीयता की सतह पर सदैव खड़े रहे। इसलिए वे अपनों से कभी भिन्न प्रतीत नहीं हुए। उनकी सादकी हमें पूरी तरह आकृष्ट करती है। उनकी करुणा ठोस थी। उनका तेज तरल था। उनकी अनेक स्मृतियां जनमानस के मन में भरी पड़ी हैं।
ऐसे महान व्यक्ति का जन्म 2 अक्तूबर 1904 को मुगलसराय में हुआ था। उनके परिवार में सुख-वैभव नाम मात्र का था। जब लाल बहादुर मात्र डेढ़ वर्ष के थे तब उनके पिताजी की मृत्यु हो गई थी। इस कारण बालक लाल बहादुर की शिक्षा-दीक्षा पर आगे चलकर कुप्रभाव पड़ा। उनकी प्रारंभिक शिक्षा वहीं की एक साधारण सी पाठशाला में हुई थी। सन 1915 में लाल बहादुर ने गांधीजी को पहली बार वाराणसी में देखा था। उस समय उनकी अवस्था मात्र 11 वर्ष की थी। अंत में सोलर वर्ष की अवस्था में ही गांधीजी के आह्वान पर वे जेल चले गए थे। यह सन 1920 की घटना है।
वहां से सन 1921 में वापस आने पर उन्होंने काशी विद्यापीठ में पुन अध्ययन प्रारंभ किया था। वहीं पर आचार्य नरेंद्रदेव, डॉ. भगवानदास, उनके सुपुत्र श्रीप्रकाश, डॉ. संपूर्णानंद और आचाय्र कुपलानी के संपर्क में आने का उन्हें सौभाज्य प्राप्त हुआ।
काशी विद्यापीठ से ‘शास्त्री’ की उपाधि ग्रहण करने के बाद उनका जीवन ‘सर्वेंट्स ऑफ द पीपल्स सोसाइटी’ की सेवा में बीतने लगा। लाला लाजपत राय का वरदहस्त लाल बहादुरजी के सिर पर था। यह सन 1926 की बात है।
सन 1927 में उनका विवाह ललिताजी के साथ हुआ। उनके छह संताने हुई-चार पुत्र एंव दो पुत्रियां।
शास्त्रीजी शरीर से क्षीण होते हुए भी लौह संकल्पवाले राजनेता था। आचरण विनम्र और कोमल होते हुए भी शास्त्रीजी का मस्तिष्क और उनकी दृष्टि अत्यंत तीव्र थी। यह गुण दुर्लभ होता है। अपने नौ वर्षों के जेल-जीवन में शास्त्रीजी ने मुस्कुराना सीखा। क्रोध करना तो वे जानते ही नहीं थे।
हां, उनके कोमल व्यक्तित्व के भीतर शक्ति का ज्वालामुखी छिपा हुआ था। यह ज्वालामुखी उस समय प्रकाश में आया, जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया। यह ठीक था कि शास्त्रीजी शांति के प्रमी थे, पर वह शांति को समर्पण का पर्याय नहीं मानते थे।
सच्चे अर्थों में शास्त्रीजी आत्मनिर्मित व्यक्ति थे। उनके राजनीतिक जीवन पर गोविंद बल्लब पंत और पंडित नेहरू का अधिक प्रभाव था, किंतु पुरुषोत्तमदास टंडन से वे अत्याधिक प्रभावित थे।
वे जनता के सुख-दुख से सुपरिचित थे। उनकी जनप्रियता का यह सबसे बड़ा कारण था। उनका निधन इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। 11 जनवरी 1966 में ताशंकद में अचानक उनका स्वर्गवास हो गया। युद्ध और शंाति के नेता के तौर में देश ने जिस राजनेता को अत्याधिक गौरव प्रदान किया, वे शास्त्रीजी ही थे।
महत्वपूर्ण ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय वार्ता में गौरवपूर्ण कार्य पूरा करके वे विश्व में प्रतिष्ठा और गौरव के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचे थे।
उनकी मृत्यु के पूर्व 10 जनवरी 1966 की प्रात: ही भारत-पाकिस्तान के बीच रूस के एक नगर ताशंकद मेें समझौता हुआ। उस पर भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अय्यूब खां ने हस्ताक्षर किए। जय-परजय का वातावरण सदभाव के पगचाप में ढक गया। दोनों देशों के नेता यों गले मिले जैसे दोनों बिछुड़ी आत्मांए मिल रही हों। संसार भर में खुशी के साथ यह समाचार सुना गया।
यह भारत के इतिहास की अविस्मरणीय घड़ी थी, जो चिर-स्मरणीय हो गई। क्योंकि उसी तारीख को रात्री के समय शास्त्रीजी का देहांत हो गया।
लाल बहादुर शास्त्री
Lal Bahadur Shastri
Essay No. 04
लाल बहादुर शास्त्री देश के सच्चे सपूत थे जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देशभक्ति के लिए समर्पित कर दिया । एक साधारण परिवार में जन्में शास्त्री जी का जीवन गाँधी जी के असहोयग आंदोलन से शुरू हुआ और स्वतंत्र भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री के रूप में समाप्त हुआ । देश के लिए उनके समर्पण भाव को राष्ट्र कभी भुला नहीं सकेगा ।
शास्त्री जी का जन्म 2 अक्तूबर 1904 ई0 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय नामक शहर में हुआ था । उनके पिता स्कुल में अध्यापक थें । दुर्भाग्यवश बाल्यावस्था में ही उनके पिता का साया उनके सिर से उठ गया । उनकी शिक्षा-दिक्षा उनके दादा की देखरेख में हुई । परंतु वह अपनी शिक्षा भी अधिक समय तक जारी न रख सकें । उस समय में गाँधी जी के नेतृत्व में आंदोलन चल रहे थे । चारों ओर भारत माता को आजाद कराने के प्रयास जारी थे । शास्त्री जी स्वयं को रोक न सके और आंदोलन में कूद पड़े । इसके पश्चात् उन्होंने गाँधी जी के असहोयग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया । मात्र सोलह वर्ष की अवस्था में सन् 1920 ई0 को उन्हें जेल भेज दिया गया ।
प्रदेश कांग्रेस के लिए भी उनके योगदान को भुलाया नही जा सकता । 1935 ई0 को राजनीति में उनके सक्रिय योगदान को देखते हुए उन्हें ‘उत्तर प्रदेश प्रोविंशियल कमेटी’ का प्रमुख सचिव चुना गया। इसके दो वर्ष पश्चात् अर्थात् 1937 ई0 में प्रथम बार उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् 1950 ई0 तक वे उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री के रूप में कार्य करते रहे ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् वे अनेक पदों पर रहते हुए सरकार के लिए कार्य करते रहे । 1952 ई0 को वे राज्यसभा के लिए मनोनित किए गए । इसके पश्चात् 1961 ई0 में उन्होंने देश के गृहमंत्री का पद सँभाला । राजनीति में रहते हुए भी उन्होंने कभी अपने स्वंय या अपने परिवार के स्वार्थो के लिए पद का दुरूपयोग नहीं किया । निष्ठापूर्वक ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों के निर्वाह को उन्होंने सदैव प्राथमिकता दी । लाल बहादुर शास्त्री सचमुच एक राजनेता न होकर एक जनसेवक थे जिन्होंने सादगीपूर्ण तरीके से और सच्चे मन से जनता के हित के सर्वोपरि समझते हुए निर्भीकमापूर्वक कार्य किया । वे जनता के लिए नहीं वरन् आज के राजनीतिज्ञों के लिए भी एक आदर्श हैं । यदि हम आज उनके आदर्शों पर चलने का प्रयास करें तो एक समृद्ध भारत का निर्माण संभव है ।
नेहरू जी के निधन के उपरांत उन्होने देश के द्वितीय प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र की बागडोर सँभाली । प्रधानमंत्री के रूप में अपने 18 महीन केे कार्यलय में उन्होंने देश को एक कुशल व स्वच्छ नेतृत्व प्रदान किया । सरकारी तंत्र में व्यापत भ्रष्टाचार आदि को समाप्त करने के लिए उन्होंने कठोर कदम उठाए । उनके कार्यकाल के दौरान 1965 ई0 को पाकिस्तान ने भारत पर अघोषित युद्ध थोप दिया । शास्त्री जी ने बड़ी ही दृढ़ इच्छाशक्ति से देश को युद्ध के लिए तैयार किया । उन्होंने सेना को दुश्मन से निपटने के लिए कोई भी उचित निर्णय लेने हेतु पूर्ण स्वतंत्रता दे दी थी । अपने नेता का पूर्ण समर्थन पाकर सैनिकों ने दुश्मन को करारी मात दी ।
ऐतिहासिक ताशकंद समझौता शास्त्री द्वारा ही किया गया परंतु दुर्भाग्यवश इस समझौते के पश्चात् ही उनका देहांत हो गया । देश उनकी राष्ट्र भावना तथा उनके राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव के लिए सदैव ऋणी रहेगा । उनके बताए हुए आदर्शों पर चलकर ही भ्रष्टाचार रहित देश की हमारी कल्पना को साकार रूप दिया जा सकता है । ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ की धारणा से परिपूरित उनका जीवन-चरित्र सभी के लिए अनुकरणीय है ।