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Hindi Essay on “Jeevan me Khelo ka Mahatva ”, “जीवन में खेलों का महत्त्व” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

जीवन में खेलों का महत्त्व

Jeevan me Khelo ka Mahatva 

अथवा

व्यायाम और खेल

Vyayam aur Khel

Hindi-Essay-Hindi-Nibandh-Hindi

Essay No. 1

प्रस्तावना

जीवन में स्वास्थ्य का ही सबसे अधिक महत्व है। शक्तिशाली मानव ही भूमण्डल पर हर प्रकार का सुख भोग सकता है। इसके लिए दुष्कर कृत्य भी सुगम हो जाते है।उससे शत्रु भी सदैव भयभीत रहता है। और उपलब्धियाँ उसके पगों में लोटती है। कार्य सिद्धि सहचरी के समान उसके पीछे चलती है। उसमें अदम्य साहस, उत्साह और धैर्य आ जाता है। आत्म-विश्वास के कारण उसका हृदय सदैव प्रफुल्लित रहा है।  और निडरता उसमें कूट-कूटकर भरी रहती है। अत: पूर्वजों का उद्देश्य था- शक्ति की अर्चना जिसके पास स्वास्थ्य रूपी निधि नहीं वह कुबेर होते हुए भी जीवन को भार समझ कर काटता है। ऐसी अवस्था में घर में बने हुये षट्रस व्यंजन भी उसके लिए विष समान हो जाते है।इच्छा होते हुए  भी वह उनका उपभोग नहीं कर सकता है। अल्पकाल में ही मृत्यु का ग्रास बन जाता है। उसके जीवन से आनन्द रूपी खिलौना कोसों दूर चला जाता है। जिसे पाने में वह अपने को असमर्थ समझता है। अत: कहा गया है। कि ‘पहला सुख निरोगी काया’ वास्तव में स्वस्थ देह ही ईश्वरीय देन है। स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ, सुन्दर वस्त्रालंकार और सांसारिक ऐश्वर्य स्वस्थ मानव के लिए भोग्य तथा अस्वस्थ मानव के लिए भार होते है। महाकवि कालिदास ने भी कहा है।  कि देह रक्षा हीधर्म का पहला साधन है।

 

विभिन्न प्रकार के व्यायाम व खेल

व्यायाम के अनेक प्रकार है और खेल भी अनेक प्रकार के होते है।हमारे देश में व्यायाम की अनेक पद्धतियाँ प्रचलित है। जैसे दण्ड-बैठक लगाना, कुश्ती लड़ना, भ्रमण, घुड़सवारी, तैराकी और मुग्दर घुमाना आदिइनके अतिरिक्त विविध प्रकार के आसन, लेजिम, लाठी और जिमनास्टिक आदि भी इसके अन्तर्गत आते है।खेलों के अन्तर्गत फुटबॉल, हॉकी, वॉलीबॉल, क्रिकेट, कबड्डी, लम्बी कूद, ऊंची कूद और हर प्रकार की दौड़ आदि आते है।इनके द्वारा शारीरिक शक्ति एवं मनोरंजन होता है। वास्तव में देखा जाये, तो खेल और व्यायाम दोनों ही शक्ति के स्रोत है।जो इस स्रोत के अनुयायी रहते है।, वे सदैव शक्तिशाली, चुस्त और निरोगी रहते है।शिथिलता एवं आलस्य उनसे कोसों दूर रहता है। देह में रक्त की गति तीव्र रहती है।  जिससे पाचन शक्ति ठीक रहती है। सारी देह सुडौल, सुसंगठित एवं सुदृढ़ हो जाती है। पुढे शक्तिशाली हो जाते है।नेत्रों की ज्योति बढ़ जाती है। और मुखारबिन्द अद्भुत क्रांति से दमक उठता है।  तथा हृदय उत्साह, आत्म-विश्वास और निडरता से युक्त रहता है। मन उल्लासपूर्ण रहता है। रोग रूपी दैत्य उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। ; क्योंकि उसकी देह बज्र बन जाती है।

 

व्यायाम और खेल का मानव चरित्र पर प्रभाव

किसी ने सच ही कहा है  कि स्वस्थ देह में मानसिक स्वास्थ्य भी ठीक रहता है  और बौद्धिक विकास में प्रगति होती है। इसके अतिरिक्त व्यायाम और खेल का मानव के चरित्र पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। व्यायाम दारा मन की कुत्सित भावनाएँ दूर हो जाती है। और इन्द्रियों में संयम आ जाता है। संयम चरित्र का आभूषण है। इसके अंगीकार कर्ता में धैर्य, सहनशील और क्षमा आदि गुण भी स्वयं ही प्रकट हो जाते है। छल, कपट और झूठ से घृणी हो जाती है। यही कारण है।  कि व्यायामप्रिय और खिलाड़ी सच्चरित्र एवं न्यायप्रिय, देखे जाते है।।

 

हमारे देश के व्यायामशील पुरुष

हमारा देश व्यायामशील पुरुषों का भण्डार रहा है। यहाँ के वीरों की यश पताका एवं गाथाएँ सारे ब्रह्माण्ड में फहराई एवं गायी गई है।पृथ्वीराज चौहान के शब्द-भेदी बाण, प्रताप और शिवा का शत्रुदमन किससे गोपनीय है।  ? मुगल सम्राट अकबर की घुड़सवारी और स्वामी रामतीर्थ की तैराकी और व्यायाम की प्रवृत्ति से कौन परिचित नहीं ? आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती में शक्ति और स्वास्थ्य का चरमोत्कर्ष हुआ थाराष्ट्रपिता गाँधी जी को भ्रमण की आदत थीजवाहरलाल नेहरू जी को तैरने में अत्यन्त रुचि थोगामा पहलवान ने मल्लयुद्ध में ख्याति प्राप्त की थीराममूर्ति ने इसी शक्ति के बल पर हाथी को अपनी छाती पर उठा कर विश्व में भारत के नाम को उज्ज्वल किया था।

 

व्यायाम और खेल के नियम

व्यायाम और खेल के कुछ नियम होते है।इन नियमों की उपेक्षा लाभ के स्थान पर हानि पहुँचाती है। भोजन के पश्चात् व्यायाम करना अथवा खेलना बहुत ही हानिकारक है। ; परन्तु व्यायाम अथवा खेल के उपरांत थोड़ा-बहुत जलपान आवश्यक है। व्यायाम शक्ति के अनुसार ही करना चाहिएइसके आधिक्य से शक्ति क्षीण हो जाती है। इसके लिए स्थान स्वच्छ,  खुला और हवादार होना चाहिएव्यायाम एवं खेल की स्थिति में मुख को बन्द रखना चाहिएतेल मलकर स्नान करना, सादा एवं सात्त्विक भोजन, दूध, शाक तथा फलों का आहार स्वास्थ्य के अमोघ शस्त्र है।स्वच्छ जल और स्वच्छ वस्त्र शारीरिक उन्नति में सहायक है।उच्च विचार शरीर के पोषक है।

 

उपसंहार

मनुष्य को दीर्घावस्था के लिए व्यायाम एवं खेल का अनुसरण करना नितांत आवश्यक है। पाश्चात्य देशों ने इस दिशा में आशातीत. प्रगति की है। 40 वर्ष की अवस्था में वहाँ के पुरुष युवावस्था में पदार्पण करते है। और इस अवस्था में भारतवासी वृद्धों मेंगिने जाते है।शिक्षार्थियों को चाहिए कि वे समय निकालकर व्यायाम किया करें या किसी न किसी प्रकार के खेलों में भाग लिया करेंइससे उनका स्वास्थ्य बना रहेगा और वे देश का कल्याण कर सकेंगे।

 

जीवन में खेलों का महत्त्व

Jeevan mein Khelon ka Mahatva

Essay No. 2

 

खेलों का महत्त्व

खेल मनोरंजन और शक्ति के भंडार हैं। खेलों से खिलाड़ियों का शरीर स्वस्थ और मज़बूत बनता है। खेलों के द्वारा उनके शरीर में चुस्ती, स्फूर्ति, शक्ति आती है। पसीना निकलने से अंदर के मल बाहर निकल जाते हैं। हड्डियाँ मज़बूत हो जाती हैं। शरीर हलका-फुलका बन जाता है। पाचन क्रिया तेज हो जाती है।

खेलों का दूसरा लाभ यह है कि ये मन को रमाते हैं। खिलाड़ी खेल के मैदान में खेलते हुए शेष दुनिया के तनावों को भूल जाते हैं। उनका ध्यान फुटबाल, गेंद या खेल में लीन रहता है। संसार के चक्करों को भूलने में उन्हें गहरा आनंद मिलता है।

 

खेल और चरित्र

खेलों की महिमा का वर्णन करते हुए स्वामी विवेकानंद कहा करते थे- “मेरे नवयुवक मित्रो! बलवान बनी। तुमको मेरी यही सलाह है। गीता के अभ्यास की अपेक्षा फुटबाल खेलने के द्वारा तुम स्वर्ग के अधिक निकट पहुँच जाओगे। तुम्हारी कलाई और भुजाएँ अधिक मज़बूत होने पर तुम गीता को अधिक अच्छी तरह समझ सकोगे।” स्पष्ट है कि खेलों से मनुष्य का चरित्र ऊँचा उठता है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन और स्वस्थ आत्मा निवास करती है। स्वस्थ व्यक्ति ही दुनिया से अन्याय, शोषण और अधर्म को हटा सकता है।

महापुरुषों के जीवन पर दृष्टि डालें। जिन्होंने समाज में बड़े-बड़े परिवर्तन किए, वे स्वयं बलवान व्यक्ति थे। स्वामी विवकानंद, दयानंद, रामतीर्थ, महाराणा प्रताप, शिवाजी, भगवान कृष्ण, पुरुषोत्तुम राम, युधिष्ठिर, अर्जुन सभी शक्तिशाली महापुरुष थे। वे किसी-न-किसी प्रकार की शारीरिक विद्या में अग्रणी थे। इसी कारण वे यशस्वी बन सके। बीमार व्यक्ति तो स्वयं ही अपने ऊपर बोझ होता है।

 

खेलभावना का विकास

खेल-भावना का अर्थ है-हार-जीत में एक-समान रहना। इसी से आदमी दुख-सुख में एक-समान रहना सीखता है। यह खेल-भावना खेलों द्वारा सीखी जा सकती है। रोज़-रोज़ हारना और हार को सहजता से झेलना, रोज-रोज जीतना और जीत को सहजता से लेना-ये दोनों गुण खेलों की देन हैं। अतः खेल जीवन के लिए अनिवार्य हैं।

 

जीवन में खेलों का महत्त्व

Importance of Games in Life

Essay No. 3

जीवन का सुख उसी को प्राप्त हो सकता है जिसका शरीर स्वस्थ है। हम यह जानते हैं कि स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए निरंतर सक्रिय रहना पड़ता है।

इसलिए हमें व्यायाम एवं खेलों को जीवन का अंग बना लेना चाहिए। खेल मनोरंजन का साधन होने के साथ-साथ हमारे स्वास्थ्य को भी बनाए रखते हैं। खेल से स्वतः व्यायाम हो जाता है। खेल से मन-मस्तिष्क का भी विकास होता है। खेल के मैदान में एक और लाभ प्राप्त होता है, वहाँ मित्रता और भाईचारे का विकास होता है। खेल भावना हमें जीवन की खुशी और घर के दुख से ऊपर उठाकर समरसता की ओर ले जाती है। यही समरसता व्यक्ति को जीवन में संपन्न और सफल बनाती है। खेल अनुशासन, संगठन, पारस्परिक सहयोग, साहस, विश्वास, आज्ञाकारिता, सहानुभूति, समरसता आदि गुणों का विकास करके हमें देश का सभ्य तथा सुसंस्कृत नागरिक बनाते हैं। खेल हमारे अंदर निर्णय लेने की शक्ति का विकास करते हैं। ऐसा कोई गुण नहीं है, जो खेलों से प्राप्त न होता हो। खेलों से हमारे अंदर सामाजिकता एवं सहनशीलता की भावना का उदय होता है तथा हमारी संकुचित वृत्ति नष्ट होती है।

Essay No. 4

 

जीवन में खेलों का महत्व

मानव जीवन संघर्ष और जटिलताओं से भरा हुआ है। काम और पढ़ाईलिखाई का बोझ मानसिक तनाव और शारीरिक थकान उत्पन्न करता है। इस तनाव और थकान को मिटाने और शरीर में पुनः स्फूर्ति लाने के लिये खेल, सबसे सहज और सरल साधन हैं।

खेलों का इतिहास मानव के जन्म से ही माना जा सकता है। कुछ गुफा चित्रों में पाये गये आदि-मानव के आखेट के चित्र यही प्रमाणित करते हैं। विभिन्न पौराणिक गाथाओं में मल्ल युद्ध, तीरंदाजी, कौरव-पांडवों की द्यूत-क्रीड़ा, श्री कृष्ण और गोप-गोपियों के खेल आदि यही दर्शाते हैं कि खेल अनादि काल से चले आ रहे हैं।

समय-समय पर उनका स्वरूप बदलता गया है। आज क्रिकेट, शतरंज, बैडमिंटन, लूडो, तैराकी, दौड़, भाला फेंक, कबड्डी, गोल्फ, गिल्ली-डंडा जैसे हजारों तरह के खेल सारी दुनिया में खेले जाते हैं।

कहते हैं, स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। स्वस्थ शरीर के लिये व्यायाम सबसे आवश्यक है। खेल शरीर के व्यायाम का सबसे उत्कृष्ट साधन हैं। खेलों से शरीर में सजगता, सतर्कता और स्फूर्ति आती है। इसी कारण मस्तिष्क भी सक्रिय कार्यों में लगा रहता है। मस्तिष्क ही हमारी सम्पदा और शक्ति है।

स्वस्थ मस्तिष्क में ही नये और अच्छे विचारों का जन्म सम्भव है। राष्ट्र की एकता और मजबूती इसी पर निर्भर है।

उत्तम स्वास्थ्य के अतिरिक्त खेल हमारे अंदर अनेक सामाजिक गुणों का विकास करते हैं। समूह खेल हमें सहयोग, समन्वय, संगठन और सामूहिक प्रयल से कार्य करने की प्रेरणा देते हैं। खेलों में प्रतिदिन जय-पराजय का सामना करना होता है।

खेलों की जीत हमें सिखाती है कि जीवन में कोई उपलब्धि हासिल होने पर हम अहंकार न करें, क्योंकि आज जीत हुई है, तो कल हार भी हो सकती है। इसी तरह व्यवहारिक जीवन में जब कोई बड़ी पराजय या हानि होती है, तो खिलाड़ी उससे अपना हौसला नहीं खोते।

खेल अनशासन की पाठशाला भी है। नियमों का पालन करते हुए उपलब्धियों की ओर बढ़ना खेलों से सीखा जा सकता है। नियमों के उल्लंघन पर सजा स्वीकार करना, दल की विजय के लिये योगदान करना जैसे गुण व्यक्ति में

आंतरिक अनुशासन उपजाते हैं। दो दल या खिलाड़ी अपनी पूरी ताकत के साथ भिड़ते हैं, किन्तु उनमें बैर भावना नहीं होती है।

ऊँच-नीच, छोटा-बड़ा, अवर्ण-सवर्ण जैसे भेदभाव भी खेलों में लापता हो जाते हैं। खेल प्रसिद्धि पाने का भी महत्वपूर्ण माध्यम हैं।

कहा जाता है – अति सर्वत्र वर्जयेत्। विद्यार्थी जीवन में केवल खेलों में ही जुटे रहना और अध्ययन को बिल्कुल ही भूलकर दर-किनार कर देना समझदारी का काम नहीं है। इससे परीक्षा परिणाम पर बुरा असर पड़ सकता है और भविष्य अंधकारमय हो सकता है।

कमजोर और बीमार विद्याथियों के लिये अधिक श्रम वाले खेल नुकसानदायक भी हो सकते हैं। खेलों से गुटबाजी व आपसी मनमुटाव भी पनप सकता है। खेल भावना से ही इन दुष्प्रवृतियों से बचा जा सकता है।

खेल हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं। ये हमारे सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक हैं। पढ़ाई के साथ खेलकूद में भी अव्वल रहें, तो इससे विद्यार्थी का व्यक्तित्व निखरता है, पर विद्यार्थी जीवन में खेलों की अतिशयता से बचना चाहिये।

हमें अपने समय का इस तरह समायोजन करना चाहिये, जिससे अध्ययन और खेलों में परस्पर तालमेल बैठ सके।

 

Essay No. 5

खेलों का महत्त्व

या

खेलों का हमारे जीवन में महत्त्व

या

क्या खेल जरूरी है ?

एक स्वस्थ दिमाग, स्वस्थ शरीर में रहता है। राष्ट्र का धन क्या है? क्या यह बैंकों में पड़ा सोना या वहाँ के नागरिकों का जीवन स्तर है? यह वहाँ के नागरिकों का स्वास्थ है।

एक व्यक्ति स्वस्थ कैसे रह सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर खेल-कूद के रूप में मिल सकता है। जैसे कि पुस्तकालय मस्तिष्क के विकास के लिए आवश्यक है। वैसे ही शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खेल के मैदान जरूरी है। मस्तिष्क में यह रखते हुए खेल और कूद आवश्यक है। इस लिए खेल-कूद-क्रीड़ा हमारे शिक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग बनाया गया है।

जो कोई भी खेल खेलते हैं, हमारा व्यायाम हो जाता है। हमें पसीना आता है और पसीना सेहत के लिए अच्छा होता है। हमारी शारीरिक वृद्धि और स्वास्थ्य के विकास में सहायता करती है। खुले में खेली जाने वाली सभी क्रीड़ाए खिलाड़ियों को ताज़ा हवा में सांस लेने के लिए और शारीरिक थकावट के बाद भूख लगने में सहायता करती है। वे ताकत के लिए जरुरी खाने और फलों को पचा देती है। खेल कूद न केवल हमें तन्दरुस्त रखते हैं। अपितु हमारे व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास भी करते हैं। जोकि शिक्षा का असली उद्देश्य है। वे हमें खिलाड़ी के गुण, सहयोग और नेतृत्व सिखाते हैं। वे हमें अनुशासन सिखाते हैं। हम किसी भी खेल को उसे खेलने के भाव से ही, बिना कोई गलत तरीका प्रयोग किए हुए खेलते हैं। ये हमें ईमानदारी भी खिखाती है।

हमें विभिन्न स्थानों के लोगों और देशों के बारे में जानने को मिलता है। जब वे हमारे दल के खिलाफ खेलते हैं या फिर हम उनके देश में जाते हैं। हम उनके सभ्याचार, खानपान, भाषा और बहुत-सी चीज़ों के बारे में सीखते हैं। हम दूसरे देशों के लोगों के समीप आते हैं।

किसी व्यक्ति को मानसिक रूप से सशक्त बनाने का श्रेय पुस्तकों को जाता है। जब कि खेल-कूद भी लोगों को मानसिक रूप से सशक्त और जागरुक बनाने में बराबर का महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। खेलें लोगों को साहसी और बहादूर बनाती है। वह हर हालात में अपना मानसिक संतुलन बनाए रखना सीखता है। वह अपने जीवन में मुस्कुराते हुए मुश्किलों का सामना करने की कला सीखता है।

आजकल क्रिकेट, फुटबाल, टैनिस जैसे खेलों से भी खिलाड़ी न केवल अपने लिए अपितु अपने देश के लिए भी नाम, प्रसिद्धि और ध न कमा रहे हैं। वे लोग जो कभी नहीं खेलते उन्हें समाज के सचेतन लक्ष्णों और नैतिक संरचना को भंग करते देखा जा सकता है।

इसलिए यह कहा जा सकता है कि खेलकूद मनुष्य और राष्ट्र के जीवन में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। वे राष्ट्र को महान बनाने के लिए आवश्यक हैं। केवल स्वस्थ नागरिक ही अपने देश के विकास के लिए कार्य कर सकते हैं।

 

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commentscomments

  1. Ashish Singh says:

    Amazing Essay

  2. Ashish nair says:

    this really helped in my project work

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