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Hindi Essay on “Diwali ka Tyohar” , ”दिवाली  का त्यौहार ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

दिवाली  का त्यौहार 

Diwali ka Tyohar 

निबंध नंबर :- 01

दीपावली हिंदुओं का प्रमुख पर्व है। यह पर्व समूचे भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। वर्षा और शरद ऋतु के संधिकाल का यह मंगलमय पर्व है। यह कृर्षि से भी संबंधित है। ज्वार, बाजरा, मक्का, धान, कपास आदि इसी ऋतु की देन हैं। इन फसलों को ‘खरीफ’ की फसल कहते हैं।

इस त्योहार के पीछे भी अनेक कथांए हैं। कहा जाता है कि जब श्रीरामचंद्र रावण का वध करके अयोध्या लौटे, तब उस खुशी में उस दिन घर-घर एंव नगर-नगर में दीप जलाकर यह उत्सव मनाया गया। उसी समय से दीपावली की शुरुआत हुई। यह भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने नरकासुर का इसी दिन संहार किया था। यह भी कहा जाता है कि वामन का रूप धारण कर भगवान विष्णु ने दैत्यराज बलि की दानशीलता की परीक्षा लेकर उसके अहंकार को मिटाया था। तभी तो विष्णु भगवान की स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है।

जैन धर्म के अनुसार, चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर ने इसी दिन पृथ्वी पर अपनी अंतिम ज्योति फैलाई थी और वे मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु भी इसी अवसर पर हुई थी। इस प्रकार इन महापुरुषों की स्मृतियों को अमर बनाने के लिए भी यह त्योहार बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है।

यह त्योहार पांच दिनों तक चलता रहता है। त्रयोदशी के दिन ‘धनतेरस’ मनाया जाता है। उस दिन नए-नए बरतन खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। एक कथा प्रचलित है कि समुद्र-मंथन से इसी दिन देवताओं के वैद्य ‘धनवंतरी’ निकले थे। इस कारण इस दिन ‘धनवंतरी तयंती’ भी मनाई जाती है। दूसरे दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को छोटी दीपावली का उत्सव मनाया जाता है। श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर के वध के कारण यह दिवस नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। अपने-अपने घरों से गंदगी दूर कर देना ही एक प्रकार से नरकासुर के वध को प्रतीक रूप में मना लिया जाता है।

तीसरे दिन अमावस्या होती है। दीपावली उत्सव का यह प्रधान दिन है। रात्रि के समय लक्ष्मी-पूजन होता है। उसके बाद लोग अपने घरों को दीप-मालाओं से सजाते हैं। बच्चे-बूढ़े फुलझड़ी और पटाखे छोड़ते हैं। सारा वातावरण धूम-धड़ाके से गुंजायमान हो जाता है। इस प्रकार अमावस्या की रात रोशनी की रात में बदल जाती है।

चौथे दिन ‘गोवद्र्धन-पूजा’ होती है। यह पूजा श्रीकृष्ण के गोवद्र्धन धारण करने की स्मृति में की जाती है। स्त्रियां गोबर से गोवद्र्धन की प्रतिमा बनाती है। रात्रि को उनकी पूजा होती है। किसान अपने-अपने बैलों को नहलाते हैं और उनकी शरीर पर मेहंदी एंव रंग लगाते हैं। इस दिन ‘अन्नकूट’ भी मनाया जाता है।

पांचवें दिन ‘भैयादूज’ का त्योहार होता है। इस दिन बहनें अपने-अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनके लिए मंगल-कामना करती हैं। कहा जाता है कि इसी दिन यमुना ने अपने भाई यमराज के लिए कामना की थी। तभी से यह पूजा चली आ रही है। इसलिए इस पर्व को ‘यम द्वितीया’ भी कहते हैं।

दरअसल दीपावली का पर्व कई रूपों में उपयोगी है। इसी बहाने टूटे-फूटे घरों, दुकान, फैक्टरी आदि की सफाई-पुताई हो जाती है। वर्षा ऋतु में जितने कीट-पतंगे उत्पन्न हो जाते हैं, सबके सब मिट्टी के दिये पर मंडराकर नष्ट हो जाते हैं।

जहां दीपावली का त्योहार हमारे लिए इतना लाभप्रद है, वहीं इस त्योहर के कुछ दोष भी हैं। कुछ लोग आज के दिन जुआ आदि खेलकर अपना धन बरबाद करते हैं। उनका विश्वास है कि यदि जुए में जीत गए तो लक्ष्मी वर्ष भर प्रसन्न रहेंगी। इस प्रकार से भाज्य आजमाना कई बुराइयों को जन्म देता है, एक बात और, दीपावली पर अधिक आतिशबाजी से बचना चाहिए, क्योंकि इसका धुआं हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक है।

निबंध नंबर :- 02

दीवाली का त्यौहार

हमारे देश में आए दिन कोई-न-कोई त्योहार मनाया जाता है, किन्तु मुझे दीवाली सबसे अच्छी लगती है। यह खील-खिलौनों और दीपमालाओं का त्योहार है जो हमें असीम आनन्द से भर देता है। स्थान-स्थान पर फुलझड़ी, पटाखे छोड़ते हुए बच्चे दिखाई पड़ते हैं, स्त्रियां रसोई घरों में पकवान बनाते हुए व्यस्त दिखाई देती हैं और पुरुष भी हंसी-खुशी की इस दौड़ में पीछे नहीं रहते।

दीवाली का शाब्दिक अर्थ है दीपों की कतार। वास्तव में यही वह त्योहार है जबकि सभी घरों के छज्जों और कंगूरों पर रंग-बिरंगी रोशनियां जगमगा उठती हैं। इस त्यौहार की तैयारियां लोग महीनों पहले शुरू कर देते हैं। घरों की सफेदी की जाती है और रंग-रोगन से उन्हें आकर्षक व साफ-सुथरा बनाया जाता है तथा रंग-बिरंगी झालरें आकाश दीप व तस्वीरों का उपयोग भी घरों की सजावट के लिये किया जाता है।

इस त्योहार की उत्पत्ति के बारे में भी लोगों के बीच एक अन्तर्कथा प्रसिद्ध है। कहते हैं कि लंकाधिपति रावण को हराकर भगवान राम इसी दिन अयोध्या लौटे थे। उनके आगमन की खुशी में लोगों ने घरों को और रास्तों को दीपमालाओं से सजाया था और प्रफल्लता के वातावरण में अवधपति का स्वागत किया था। तभी से यह त्योहार सारे देश में मनाया जाता है।

दीवाली की रात में विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है और व्यावसायिक लोग अपने ‘बही-बसनी’ बदलते हैं। दीवाली के दिन से ही व्यापारी अपना नया वर्ष प्रारम्भ करते हैं।

यह त्योहार भी सारे देश के लोग मनाते हैं। कस्बों, गांवों और शहरों के बाजारों में आतिशबाजी, खील, खिलौनों और मिठाइयों की दुकानें बेहद सजी दिखाई देती हैं और रंग-बिरंगे व नये-नये कपड़े पहले लोग दुकानों पर खरीददारी करने में व्यस्त रहते हैं।

गांवों, कस्बों और शहरों में हर जगह लोगों के हुजुम इकट्ठे हो जाते हैं। बच्चों के आतिशबाजी छोड़ते समय लोग खुशियों से तालियां पीटते और उछल-उछलकर नाचने लगते हैं।

यह त्योहार प्रति वर्ष प्रायः नवम्बर के महीने में पड़ता है।

इस त्योहार को गरीब और अमीर समान रूप से मनाते हैं। लोगों की खुशी उनके कार्यकलापों से झलक उठती है। दीवाली की रात लोग प्रायः मंदिरों में जाते हैं और भक्ति रस से सराबोर भजनों और कीर्तनों में शामिल होते हैं। प्रायः सभी मन्दिरों में देवी-देवताओं की झांकियां सजाई जाती हैं और रोशनियां की जाती हैं। इस प्रकार हजारों लोग दीवाली की सजावट देखने के लिये मन्दिरों और सार्वजनिक स्थानों पर एकत्रित होते हैं और इस सांस्कृतिक पर्व को पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं।

बच्चे इस त्योहार पर विशेष रूप से प्रसन्न दिखाई देते हैं। बड़े चाव से वे अपने माता-पिता के साथ बाजार जाते हैं और आतिशबाजी, खिलौने व मिठाइयां खरीदकर लाते हैं। घरों में दीपमालाएं सजाने में भी वे अपने माता-पिता की मदद करते हैं और प्रसन्नता के साथ खूब नाचते-गाते हैं।

सोने-चांदी के व्यापारी और बैंकर्स दीवाली का त्योहार और अधिक उत्साह से मनाते हैं। वे अपने घरों, दुकानों व कार्यालयों में हवन का आयोजन करते हैं। वे अपने निकट सम्पर्क के लोगों के यहां मिठाई के डिब्बे भिजवाते हैं।

दीवाली के अवसर पर मंदिरों की सजावट अदभुत रूप से दर्शनीय होती है। बिजली के हजारों बल्बों की रोशनी से आस-पास का वातावरण तक जगमगा उठता है और स्वर्गीय वातावरण सजीव हो उठता है। मुझे एक बार अमृतसर का स्वर्ण मन्दिर देखने का मौका मिला था। वह रंग-बिरंगी रोशनियों से बेहद सजा हुआ था और ऐसा लगता था, मानो एक छोटा-सा स्वर्ग धरती पर उतर आया हो। हजारों लोगों की भीड स्वर्ण मन्दिर देखने के लिए वहां एकत्र थी। बिजली के बल्बों की प्रतिच्छाया पवित्र सरोवर के जल में झिलमिला रही थी और एक अत्यन्त दर्शनीय दृश्य की सृष्टि कर रही थी।

दीवाली के पर्व का एक आध्यात्मिक महत्त्व भी है। इसी दिन भगवान महावीर को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। स्वामी रामतीर्थ ने इसी दिन गंगा में जल समाधि ली थी और स्वामी दयानन्द का स्वर्गवास भी इसी दिन हुआ था।

इस प्रकार इस त्योहार का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व बहुत अधिक है। विदेशों में बसे भारतीय प्रवासी भी इस त्योहार को मनाते हैं।

कुछ लोग दीवाली की रात्रि में जुआ भी खेलते हैं। यह एक बुरी आदत है; हमें चाहिये कि दीवाली की रात्रि में हम प्रत्येक वर्ष यह संकल्प लें कि निरन्तर अच्छाइयों की ओर अग्रसर होंगे।

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