Hindi Essay on “Dhwani Pradushan ” , ”ध्वनि-प्रदूषण ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
ध्वनि-प्रदूषण
Dhwani Pradushan
आज समूचे विश्व में ध्वनि-प्रदूषण की समस्या हलचल मचाए हुए हैं। क्षेत्रीय पर्यावरण में इसका बड़ा प्रतिकूल असर पड़ता है। मानसिक रोगों को बढ़ाने एंव कान, आंख, गला आदि के रोगों में शोर की जबरदस्त भूमिका है।
‘तीखी ध्वनि’ को शोर कहते हैं। शोर की तीव्रता को मापने के लिए ‘डेसीबेल’ की व्यवस्था की गई है। चाहे विमान की गडग़ड़ाहट हो अथवा रेलगाड़ी की सीटी, चाहे कार का हॉर्न हो अथवा लाउड-स्पीकार की चीख-कहीं भी शोर हमारा पीछा नहीं छोड़ता। दिनों दिन यह प्रदूषण फैलता ही जा रहा है।
शोर से दिलो-दिमाग पर भी असर पड़ता है। इससे हमारी धमनियां सिकुड जाती हैं। हदय धीमी गति से काम करने लगता है। गुरदों पर भी इसका प्रतिकूल असर पडऩे लगता है।
लगातार शोर से ‘कोलेस्टेरॉल’ बढ़ जाता है। इससे रक्त-शिराओं में हमेशा के लिए खिंचाव पैदा हो जाता है। इससे दिन का दौरा पडऩे की आशंका बनी रहती है। अधिक शोर से स्नायु-तंत्र प्रभावित होता है। दिमाग पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। यही कारण है कि हवाई अड्डे के आस-पास रहने वालों में से अधिकतर लोग संवेदनहीन हो जाते हैं।
बच्चों पर शोर का इतना बुरा असर पड़ता है कि उन्हें न केवल ऊंचा सुनाई पड़ता है, बल्कि उनका स्नायु-तंत्र भी प्रभावित हो जाता है। परिणामस्वरूप बच्चों का सही ढंग से मानसिक विकास नहीं हो पाता।
शोर संतानात्पति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। हवाई अड्डे के आसपास रहने वाली गर्भवती महिलांए कम वजनवाले शिशु को जन्म देती हैं। अगर गर्भवती महिला गर्भावस्था के दौरान लगातार शोरगुल के बीच रहे तो उसके भु्रण पर भी बुरा असर पड़ता है।
किसी भी शहर में अधिकतम 45 डेसीबल तक शोर होना चाहिए। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई में इससे कई अधिक शोर मापा गया है। मुंबई को ‘विश्व का तीसरा सबसे शेरगुलवाला शहर’ माना जाता है। ध्वनि-प्रदूषण के मामले में दिल्ली भी मुंबई के समकक्ष ही है। यही हाल रहा तो सन 2010 तक 50 प्रतिशत दिल्लीवासी इससे गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।
अंतर्राष्ट्रीय मापदंड के अनुसार 56 डेसीबल तक शोर सहन किया जा सकता है। हालांकि अस्पतालों के आस-पास यह 34 से 40 डेसीबेल तक ही होना चाहिए।
पश्चिमी देशों में ध्वनि-प्रदूषण रोकने के लिए ध्वनि-विहीन वाहन बनाए गए हैं। वहां शोर रोकने के लिए सडक़ों के किनारे बाड़ लगाई गई है। भूमिगत रास्ता बनाया गया है। ध्वनि-प्रदूषण फैलानेवाली गाडिय़ों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इनके अलावा अधिकतर देशों ने रात में विमान-उड़ानें बंद कर दिए हैं।
भारत में ध्वनि-प्रदूषण के खिलाफ आंदोलन की गति बहुत धीमी है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, इसका प्रमुख कारण यह है कि हममें से अधिकतर इसे प्रदूषण नहीं, बल्कि दैनिक जीवन का एक हिस्सा मानते हैं।
एक सर्वेक्षण के अनुसार व्यक्ति यदि लगातार बहुत अधिक शोर-शराबेवाले स्थान में रहे तो वह स्थायी तौर पर अथवा हमेशा के लिए बहरेपन का शिकार हो जाता है। इस तरह के सबसे ज्यादा मामले 40 प्रतिशत फाउंड्री उद्योग में तथा सबसे कम 32.7 प्रतिशत तेल मिलों में पाए गए। कपड़ा मिलों में 32.6 प्रतिशत, रिफाइनरी में 27.2 प्रतिाशत, उर्वरक कारखानों मे ं17.6 प्रतिशत, बिजली कंपनियों में सबसे कम यानी 9.2 प्रतिशत पाए गए।
बासुरी की आवाज यदि बहुत तेज होती है तो व्यक्ति बीमारी का शिकार हो जाता है। कई मामलों में वह आक्रामक व्यवहार करने लगात है। सबसे ज्यादा शोर लाउड-स्पीकरों से होता है। इसके अतिरिक्त सडक़ व रेल में तथ विमान-यामायात औद्योगिक इकाइयों का शोर, चीखते सायरन, पटाखे आदि शामिल हैं।
भारत में अभी तक शोर पर नियंत्रण पाने के लिए कोई व्यापक कानून नहीं बनाया गया है। यदि इस प्रदूषण से बचने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं किया गया तो अगले बीस वर्षों में इसके कारण अधिकांश लोग बहरे हो जाएंगे।
केंद्रीय पर्यावरण विभाग तथा केंद्र और राज्यों के प्रदूषण बोर्डों की वरीयता सूची में ध्वनि-प्रदूषण नियंत्रण का स्थान सबसे नीचे है।
ध्वनि-प्रदूषण पर नियंत्रण निम्रलिखित उपायों के द्वारा पाया जा सकता है-
– धीमी और तेज गति के वाहनों के लिए अलग-अलग मार्ग बनाए जांए तथा इनमें प्रेशर हॉर्न बजाने पर पाबंदी हो।
झुज्गी-झोंपड़ी और कॉलोनियों का निर्माण इस प्रकार हो कि वे सडक़ से काफी फासले पर रहें।
– मुख्य सडक़ और बस्तियों के बीच जमीन का एक बड़ा भाग खाली छोड़ा जाए।
-ध्वनि-प्रदूषण के प्रति लोगों को जागरुक बनाने के लिए जन-जागरण कार्यक्रम बनाए जांए।
-विवाह समारोह एंव पार्टी आदि के समय लाउड-स्पीकरों के बजाने पर पूर्णत: प्रतिबंध हो तथा पर्व-त्योहारों या खुशी के मौकों पर अधिक शक्तिवाले पटाखों के चलाने पर रोक लगाई जाए।
-वाहनों के हॉर्न को अनावश्यक रूप से बजाने पर रोक लगाई जाए।
– इस प्रकार के कानून बनाए जांए, जिससे सडक़ों, कारखानों तथा सार्वजनिक स्थानों पर शोकर कम किया जा सके।